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*वर्ष २ किरण १]
अनेकान्तवाद और स्याद्वाद तरह उसका पीछा करनेको हमेशा तैयार रहेगा। अपने भानजे को अपेक्षा, वह भाई है स्यात्-किसी इसी तरह यदि श्रोता 'अनेकान्त'को मान्यताको प्रकार-अर्थात् अपने भाई की अपेक्षा। ध्यान में नहीं रक्खेगा तो वह दृष्टिभेद किस अब यदि श्रोता लोग उस मनुष्यसे इन विषय में करेगा ? क्योंकि दृष्टिभेदका विषय द्रप्रिय में से किसी भी दृष्टि से संबन्ध हैं तो वे अनेकान्त अर्थात् वस्तुके नाना धर्म ही तो हैं। अपनी अपनी दृष्टिसे अपने लिये उपयोगी धर्म
इसलिये ऊपरके कथनसे केवल इतना को ग्रहण करते जावेंगे । पुत्र उनको पिता कहेगा, तात्पर्य लेना चाहिये कि वक्ताके लिये विधान पिता उसको पुत्र कहेगा, भानजा उसको मामा प्रधान है-वह स्यात्की मान्यतापूर्वक अनेकान्तकी कहेगा और भाई उसको भाई कहेगा; लेकिन मान्यताको अपनाता है; और श्रोताके लिये अनेकान्तवादको ध्यान में रखते हुए वे एक दूसरे के उपयोग प्रधान है वह अनेकान्तकी मान्यतापूर्वक व्यवहारका असंगत नहीं ठहरावेंगे । अस्तु । स्यात्की मान्यता को अपनाता है।
इस प्रकार अनेकान्तवाद और स्याद्वादके मान लिया जाय कि एक मनुष्य है, अनेका- विश्लेषणका यह यथाशक्ति प्रयत्न है । आशा है न्तवादके जरिये हम इस नतीजेपर पहुँचे कि वह इससे पाठकजन इन दोनोंके स्वरूपको समझने मनुष्य वस्तुत्वके नाते नानाधर्मात्मक है-वह में सफल होनेके साथ साथ वीर-भगवानके शासन पिता है, पुत्र है, मामा है, भाई है आदि आदि को गम्भीरताका सहज ही में अनुभव करेंगे और बहुत कुछ है । हमने वक्ताको हैसियत से उसके इन दोनों तत्वोंके द्वारा सांप्रदायिकताके परदेको इन सम्पूर्ण धर्मोंका निरूपण किया। स्याद्वाद से हटा कर विशुद्ध धर्मको आराधना करते हुए यह बात तय हुई कि वह पिता है स्यात्-किसी अनेकान्तवाद और स्याद्वादके व्यावहारिक रूपको प्रकारसे-दृष्टिविशेषसे-अर्थात् अपने पुत्रकी अपेक्षा, अपने जीवन में उतार कर वीर-भगवानके वह पुत्र है, स्यात्-किसी प्रकार अर्थात् अपने पिताकी शासनकी अद्वितीय लोकोपकारिताको सिद्ध करने अपेक्षा, वह मामा है स्यात्-किसी प्रकार अर्थात् में समर्थ होंगे।
- 'मैं और मेरे' के जो भाव हैं, वे घमण्ड और बुदनुमाईके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। जो मनुष्य उनका दमन कर लेता है वह देवलोकसे भी उच्चलोक को प्राप्त होता है।'
'दुनियामें दो चीजें हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल नहीं मिलती। धन-सम्पत्ति एक चीज है और साधुता तथा पवित्रता बिल्कुल दूसरी चीज़' ।।
-तिरुवल्लुवर