Book Title: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth
Author(s): Saubhagyamuni
Publisher: Ambalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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२० | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज–अभिनन्दन ग्रन्थ जनरल मानेकशाह के भी है । आपके शिष्यों में सन्त श्री सोभाग्य मुनि "कुमुद", महेन्द्र मुनि “कमल", मगन मुनि, सती प्रेमकुंवर जी लेखक, कवि व सुव्याख्याता रत्न हैं। २० के करीब शिष्य-शिष्याएं हैं। दीक्षा विघ्न योग
एक चारण साधु ने भिक्षा वृत्ति के समय इनके लिए भविष्य वाणी की, कि “यह साधु महात्मा बनेगा।" मेष का वृहस्पति व शुक्र भाग्य भवनस्थ होने से श्वेताम्बर जैन साधु बनने का योग बना है । मंगल की पूर्ण दृष्टि भाग्यभवन पर होने से दीक्षा में विघ्न आया व नेतृत्व का योग (मेवाड़ पूज्य होने का ) बना। यही शत्रुपक्ष को रोकता है । शिष्यों से भाग्योदय योग
चन्द्र लामस्थ होकर शिष्य भवन को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है । चन्द्र स्त्री ग्रह होने से शिष्याएं अधिक हैं। शिष्येश वृहस्पति भाग्य भवन में जाने से, पुरुष शिष्यों से ज्यादा भाग्योदय रहेगा। जीवन में भाग्योदय २५ से २८ . तक श्रेष्ठ रहा। धर्म-नेतृत्व योग
मेवाड़ पूज्य हैं । मंत्री प्रवर्तक भी रहे। मंगल की राज्य भवन पर पूर्ण दृष्टि व राज्यस्थ सूर्य, बुध से यह योग बना । "केन्द्र सूर्ये नेतृत्व कर्ता" बुध के साथ सूर्य की संगति में "धर्म नेतृत्व" योग बना । भाग्य भवन पर मंगल की पूर्ण दृष्टि होने से विपरीत धर्म में सदैव अनास्था रही है। जेलयात्रा योग
भाग्य में शुभ ग्रह स्थित है। भाग्य को शनि, मंगल पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। अतः धर्म कार्य में बढ़ने से रोकने हेतु सादी कैद तत्कालीन सामन्तों ने दी। प्रसन्नवदन योग
षष्ठेश शनि सप्तमस्थ होकर स्वगृही हुआ है । शत्रु भवन पर मंगल की पूर्ण दृष्टि होने से उपरोक्त योग बना है। प्रबल मस्तिष्क योग
सिंह लग्न पर राहु स्थित है। अत: “धर्म-क्रान्ति" करने का योग बना है । लग्नेश सूर्य राज्यस्थ होने से दिव्य ललाट व प्रबल मस्तिष्क योग बना है। शास्त्रवेत्ता योग
वृहस्पति विद्याधिपति है । भाग्य में शुक्र राज्येश होकर गया है । इसने उपरोक्त योग बनाया है । शुक्र भाग्य में जाने से धर्मनीतिज्ञ, व्याख्याता बनता है। शुक्र भाग्य में जाने से लाखों लोगों के सामने व्याख्यान देने की क्षमता, दक्षता होती है।
आप अभयदानी हैं। आप आत्मानन्द, विवेकानन्द, नित्यानन्द, दयानन्द, सत्यानन्द स्वरूप हैं। हृदय व्यापक महान है । करुणार्द्र हैं, कलापूर्ण, सोदाहरण व्याख्या करने की पूर्ण क्षमता है। त्यागी, अद्भुत साहसी, लक्ष्य सिद्धार्थ अटूट श्रद्धावान्, कर्तव्याधिकार सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तपयुक्त हैं।
आकाश के समान विशाल, सागरवत् गम्भीर, चन्द्र से भी निर्मल, करुणा निधान, मानव-जीवन नौका खेवैया, सरस्वती के अपूर्व भण्डार, मुक्तिपथ गामी, जिज्ञासु, कृतज्ञ, दूरदर्शी, निरहंकारी हैं। नीतिज्ञ, शास्त्रपारंगत, ज्ञान व कर्म समन्वय सोने में सुगन्धवत्, शास्त्रवाचन रस की पिचकारियाँ हैं। उससे श्रोतागण रससिक्त हो जाते हैं। आँखों के तारे, श्रमणवृन्द के सितारे, मनीषीवर की शिष्य वृद्धि होती जायगी। सितारा चमकता हुआ, ७७ या ७८ वर्ष अवस्था में दिवंगतकारी होगा। वर्ष ७१ व ७२वाँ जीवन का सर्वश्रेष्ठ वर्ष होगा । तीर्थस्थल में संथारा ग्रहण करके इहलोक को छोड़ देंगे । लम्बे व्याधिग्रस्त नहीं रहेंगे । जीवन व जगत में जय श्री पाते हुए, मुक्तात्मा, महात्मा रहेंगे।
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