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आमंत्रण आरोग्य को
सकती । वह आती है, उस पर गिरती है और लुढ़ककर नीचे चली जाती है । इस दुनिया में यह संभव नहीं है कि गंदगी न हो । वह है और रहेगी । संभव है— मन की ऐसी चट्टान बना देना, जिससे गंदगी आए, गिरे और लुढ़ककर नीचे चली जाए । हम असंभव को संभव बनाने की बात सोच रहे हैं और जो संभव है, उसकी उपेक्षा कर रहे हैं । यह चिन्तन की त्रुटि ही समस्या का एक चक्र बना रही है । मकड़ी अपने लिए जाला बुन रही है और उसी में उलझ रही है । क्या इस जाले को तोड़ने की दिशा में आदमी का प्रस्थान होगा?
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