Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 16
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-२१३ उद्गम उत्पादना एषणा भेदरूप आहार पानी आदि के बयालीस और पाँच मांडली के दोष से दूषित ऐसे जो भाजन-पात्र उपकरण पानी-आहार और फिर यह सब नौ कोटी- (मन, वचन, काया से करण, करावण, अनुमोदन) से अशुद्ध हो तो उसका भोगवटा करे तो चोरी का दोष लगे । (उसकी आलोचना करे ।) सूत्र-२१४-२१५ दिव्यकाम, रतिसुख यदि मन, वचन, काया से करे, करवाए, अनुमोदना करे, ऐसे त्रिविध-त्रिविध से रतिसुख पाए या औदारिक रतिसुख पाए या औदारिक रतिसुख मन से भी चिन्तवन करे तो उसे अ-ब्रह्मचारी मानो। ब्रह्मचर्य की नौ तरह की गुप्ति की जो कोई साधु या साध्वी विराधना करे या रागवाली दृष्टि करे तो वो ब्रह्मचर्य का पापशल्य पाती है । (उसकी आलोचना करना ।) सूत्र-२१६ गण के प्रमाण से ज्यादा धर्म-उपकारण का संग्रह करे, वो परिग्रह है। सूत्र - २१७-२१८ कषाय सहित क्रूर भाव से जो कलूषित भाषा बोले, पापवाले दोषयुक्त वचन से जो उत्तर दे, वो भी मृषाअसत्य वचन जानना चाहिए । रज-धूल से युक्त बिना दिया हुआ जो ग्रहण करे वो चोरी । हस्तकर्म, शब्द आदि विषय का सेवन वो मैथुन, जिस चीज में मूर्छा, लालच, कांक्षा, ममत्वभाव हो वो परिग्रह, उणोदरी न करना, आकंठ भोजन करना उसे रात्रि भोजन कहा है। सूत्र - २१९-२२१ इष्ट शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श में राग और अनिष्ट शब्द आदि में द्वेष, पलभर के लिए भी मुनि न करे, चार कषाय चतुष्क को मन में ही उपशान्त कर दे, दुष्ट मन, वचन, काया के दंड़ का परिहार करे, अप्रासुक-सचित्त पानी का परिभोग न करे-उपभोग न करे, बीज-स्थावरकाय का संघट्ट-स्पर्श न करे । सूत्र - २२२-२२४ ऊपर कहे गए इस महापाप का त्याग न करे तब तक शल्यरहित नहीं होता । इस महा-पाप में से शरीर के लिए एक छोटा-सूक्ष्म पाप करे तब तक वो मुनि शल्यरहित न बने । इसलिए गुरु समक्ष आलोचना यानि पाप प्रकट करके, गुरु महाराज ने दिया प्रायश्चित्त करके, कपट-दंभ-शल्य रहित तप करके जो देव या मानव के भव में उत्पन्न हो वहाँ उत्तम जाति, उत्तम समृद्धि, उत्तम सिद्धि, उत्तम रूप, उत्तम सौभाग्य पाए । यदि उस भवे सिद्धि न पाए तो यह सब उत्तम सामग्री जरुर पाए । उस मुताबिक भगवंत के पास जो मैंने सूना वो कहता हूँ। सूत्र- २२५ यहाँ श्रुतधर को कुलिखित का दोष न देखा । लेकिन जो इस सूत्र की पूर्व की प्रति लिखी थी । उसमें ही कहीं श्लोकार्ध भाग, कहीं पद-अक्षर, कहीं पंक्ति, कहीं तीन-तीन पन्ने ऐसे काफी ग्रन्थ हिस्सा क्षीण हुआ था। अध्ययन-१-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 16Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151