Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, ‘महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ७९२-७९३
__भ्रष्टाचार करनेवाले, भ्रष्टाचार की उपेक्षा करनेवाले और उन्मार्ग में रहे आचार्य तीन मार्ग को नष्ट करनेवाले हैं । यदि आचार्य झूठे मार्ग में रहे हो, उन्मार्ग की प्ररूपणा करते हो, तो यकीनन भव्य जीव का समूह उस झूठे मार्ग का अनुसरण करते है, इसलिए उन्मार्गी आचार्य की परछाई भी मत लेना। सूत्र - ७९४-७९५
इस संसार में दुःख भुगतनेवाले एक जीव को प्रतिबोध करके उसे मार्ग के लिए स्थापन करते हैं, उसने देव और असुरवाले जगत में अमारी पड़ह की उद्घोषणा करवाई है ऐसा समझना । भूत, वर्तमान और भावि में ऐसे कुछ महापुरुष थे, है और होंगे कि जिनके चरणयुगल जगत के जीव को वंदन करने के लायक हैं, और परहित करने के लिए एकान्त कोशीष करने में जिनका काल पसार होता है, हे गौतम ! अनादिकाल से भूतकाल में हआ है। भावि में भी होगा कि जिन के नामस्मरण करने से यकीनन प्रायश्चित्त होता है।
सूत्र-७९६-७९९
इस तरह की गच्छ की व्यवस्था दुप्पसह सुरि तक चलेगी मगर उसमें बीच के काल में जो कोई उसका खंडन करे तो उस को यकीनन अनन्त संसारी जानना । समग्र जगत के जीव के मंगल और एक कल्याण स्वरूप उत्तम निरुपद्रव सिद्धिपद विच्छेद करनेवाले को जो प्रायश्चित्त लगे वो प्रायश्चित्त गच्छ व्यवस्था खंडन करनेवाले को लगे । इसलिए शत्रु और मित्र में समान मनवाले, परहित करने में उत्सुक, कल्याण की इच्छावाले को और खुद को आचार्य की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
सूत्र-८००-८०३
तीन गारव में आसक्त ऐसे कईं आचार्य गच्छ की व्यवस्था का उल्लंघन करके आज भी बोधि-सच्चा मार्ग नहीं पा सकते । दूसरे भी अनन्त बार चार गति रूप भव में और संसार में परिभ्रमण करेंगे लेकिन बोधि की प्राप्ति नहीं करेंगे । और लम्बे अरसे तक काफी दुःखपूर्ण संसार में रहेंगे । हे गौतम ! चौदराज प्रमाण लोक के बारे में बाल के अग्रभाग जितना भी प्रदेश नहीं है कि जहाँ इस जीव ने अनन्तबार मरण प्राप्त न किए हो । चौराशी लाख जीव को पैदा होने की जगह है, उसमें एक भी योनि नहीं है कि हे गौतम ! जिसमें अनन्ती बार सर्व जीव पैदा न हुए हो।
सूत्र-८०४-८०६
तपाए हए लाल वर्णवाले अग्नि समान सूई पास-पास शरीर में लगाई जाए और जो दर्द हो उससे ज्यादागर्भ में आँठ गुना दर्द होता है । गर्भ में से जब जन्म हो और बाहर नीकले तब योनियंत्र में पिले जाने से जो दर्द हो (उस से) करोड़ या क्रोडाक्रोड़ गुना दर्द हो जब पैदा हो रहा हो और मौत के समय का जो दुःख होता है, उस समय तो उसके दुःखानुभव में अपनी जात भी भूल जाता है।
सूत्र-८०७-८१०
हे गौतम ! अलग-अलग तरह की योनि में परिभ्रमण करने से यदि उस दुःखविपाक का स्मरण किया जाए तो जी नहीं सकते । अरे ! जन्म, जरा, मरण, दुर्भाग्य, व्याधि की बात एक ओर रख दे । लेकिन कौन महामतिवाला गर्भावास से लज्जा न पाए और प्रतिबोधित न हो । काफी रुधिर परु से गंदकीवाले, अशुचि बदबूवाले, मल से पूर्ण, देखने में भी अच्छा न लगे ऐसे दुरभिगंधवाले गर्भ में कौन धृति पा सके ? तो जिसमें एकान्त दुःख बिखर जाना है, एकान्त सुख प्राप्त होना है वैसी आज्ञा का भंग न करना । आज्ञा भंग करनेवाले को सुख कहाँ से मिले?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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