Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक वैसी इन्द्रिय के दोष से हमेशा यथार्थ मार्ग को नष्ट करते हैं और उन्मार्ग का फैलावा करते हैं । उस समय वो सर्व तीर्थंकर परमात्मा का अलंघनीय प्रवचन है, उसकी भी आशातना करने तक के पाप करते हैं।
सूत्र - ८३५
हे भगवंत ! अनन्ता काल कौन-से दश अच्छेरा होंगे? हे गौतम ! उस समय यह दश अच्छेरा होंगे । वो इस प्रकार-१. तीर्थंकर भगवंत को उपसर्ग, २. गर्भ पलटाया जाना, ३. स्त्री तीर्थंकर, ४. तीर्थंकर की देशना में अभव्य, दीक्षा न लेनेवाले के समुदाय की पर्षदा इकट्ठी होना, ५. तीर्थंकर के समवसरण में चंद्र और सूरज का अपना विमान सहित आगमन, ६. कृष्ण वासुदेव द्रौपदी को वापस लाने के लिए अपरकंका में गए तब शंख ध्वनि के शब्द से कुतूहल से एक दूसरे वासुदेव को आपस में मिलना हुआ, ७. इस भरतक्षेत्र में हरिवंशकुल की उत्पत्ति, ८. चमरोत्पात, ९. एक समय में १०८ उत्कृष्ट कायावाले की सिद्धि, १०. असंयत की पूजा सत्कार करेंगे। सूत्र-८३६
हे भगवंत ! यदि किसी तरह से कभी प्रमाद दोष से प्रवचन-जैनशासन की आशातना करे क्या वो आचार्य पद पा सकते हैं ? हे गौतम ! जो किसी भी तरह से शायद प्रमाद दोष से बार-बार क्रोध, मान, माया या लोभ से, राग से, द्वेष से, भय से, हँसी से, मोह से या अज्ञात दोष से प्रवचन के किसी भी दूसरे स्थान की आशातना करे, उल्लंघन करे, अनाचार, असामाचारी की प्ररूपणा करे, उसकी अनुमोदना करे या प्रवचन की आशातना करे वो बोधि भी न पाए, फिर आचार्य पद की बात ही कहाँ ? हे भगवंत ! क्या अभवी या मिथ्यादृष्टि आचार्य पद पाए ? हे गौतम ! पा सकते हैं, इस विषय में अंगारपुरुषक आदि का दृष्टांत है । हे भगवंत ! क्या मिथ्यादृष्टि को वैसे पद पर स्थापित कर सकते हैं ? हे गौतम ! स्थापन कर सकते हैं।
हे भगवंत ! यह यकीनन मिथ्यादृष्टि है । ऐसा कौन-सी निशानी से पहचान सकते हैं? हे गौतम ! सर्व संग से विमुक्त होने के लिए जिस के सर्व सामायिक उचरी हो और सचित्त-प्राण सहित चीजे और पानी का परिभोग करे, अणगार धर्म को अंगीकार करके बार-बार मदिरा या तेऊकाय का सेवन करे, करवाए या सेवन करनेवाले को अच्छा मानकर उसकी अनुमोदना करे या ब्रह्मचर्य की बताई हुई नवगुप्तिओं की किसी साधु या साध्वी उसमें से एक का भी खंडन करे, विरोधे, मन, वचन, काया से खंडन करवाए या विराधना करवाए या दूसरा कोई खंडन या विराधना करता हो तो उसे अच्छा मानकर, उसकी अनुमोदना करे वो मिथ्यादृष्टि है । अकेला मिथ्यादृष्टि ही नहीं लेकिन आभिग्राहिक मिथ्यादृष्टि समझे ।
सूत्र-८३७
हे भगवंत ! जो कोई आचार्य जो गच्छनायक बार-बार किसी तरह से शायद उस तरह का कारण पाकर इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को अन्यथा रूप से-विपरीत रूप से प्ररूपे तो वैसे कार्य से उसे कैसा फल मिले? हे गौतम ! जो सावधाचार्य ने पाया ऐसा अशुभ फल पाए, हे गौतम ! वो सावधाचार्य कौन थे? उसने क्या अशुभ फल पाया? हे गौतम ! यह ऋषभादिक तीर्थंकर की चोबीस के पहले अनन्त काल गया उसके पहले किसी दूसरी चोबीसी में जैसा में सात हाथ प्रमाण की कायावाला हूँ वैसी कायावाले धर्म तीर्थंकर थे। उनके तीर्थ में सात आश्चर्य हए थे। अब किसी समय वो तीर्थंकर भगवंत का परिनिर्वाण हो गया तब कालक्रम से अनुरागी हुए समूह को पहचानकर उस समय न जाने हुए शास्त्र के सद्भाववाले, तीन गारव रूप, मदिरा में बेचैन, केवल नाम क आचार्य और गच्छनायक ने श्रावक के पास से धन पाकर द्रव्य इकट्ठा करके हजार स्तंभवाला ऊंचा ममत्वभाव से अपने नाम का चैत्यालय बनाकर वो दुरन्त पंत लक्षणवाले अधमाधमी उसी में रहने लगे।
उनमें बलवीर्य पराक्रम पुरुषार्थ होने के बावजूद भी वो पुरुषकार पराक्रम बल वीर्य को छिपाकर उग्र अभिग्रह करने के लिए अनियत विहार करने का त्याग करके-छोडकर नित्यवास का साश्रय करके
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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