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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक निरर्थक हो? हे गौतम ! हा, निरर्थक है । हे भगवंत ! किस कारण से? हे गौतम ! गधे, ऊंट, बैल आदि प्राणी भी संयम जयणा रहितपन से ईच्छा बिना आए हुए ताप-गर्मी भार मार आदि पराधीनता से ईच्छा बिना दुःख सहकर अकाम निर्जरा करके सौधर्मकल्प आदि में जाते हैं । वहाँ भी भोगावली कर्म का क्षय होने से च्यवकर तिर्यंचादिक गति में जाकर संसार का अनुसरण करनेवाला या संसार में भ्रमण करनेवाला होता है । और अशुचि बदबूं पीगले प्रवाही क्षार, पित्त, उल्टी श्लेष्म से पूर्ण चरबी शरीर पर लिपटे ओर परु, अंधेरा व्याप्त, लहूँ के कीचड़वाले, देख न सके ऐसी बिभत्स, अंधकार समूहयुक्त, गर्भवास में दर्द, गर्भप्रवेश, जन्म, जरा, मरणादिक और शारीरिक, मानसिक पैदा हुए घोर दारुण दुःख का भोगवटा करना भाजन होता है । संयम की जयणा रहित जन्म, जरा, मरणादिक के घोर, प्रचंड, महारौद्र, दारुण दुःख का नाश एकान्ते नहीं होता । इसीलिए जयणारहित संयम या अति महान कायक्लेश करे तो भी निरर्थक है।
हे भगवंत ! क्या संयम की जयणा को अच्छी तरह से देखनेवाला पालन करनेवाला अच्छी तरह से उसका अनुष्ठान करनेवाला, जन्म-जरा, मरणादिक के दुःख से जल्द छूट जाता है । हे गौतम ! ऐसे भी कोई होते हैं कि जल्द ऐसे दुःख छुट न जाए और कुछ ऐसे होते हैं कि जल्द छुट जाए । हे भगवंत ! किस कारण से आप ऐसा कहते हो ? हे गौतम ! कोई ऐसा भी होते हैं कि जो सहज थोड़ा सा भी सभास्थान देखे बिना अपेक्षा रखे बिना राग सहित और शल्य सहित संयम की यातना करे । जो इस प्रकार के हो तो लम्बे अरसे तक जन्म, जरा, मरण आदि कईं सांसारिक दुःख से मुक्त बने । कुछ ऐसे आत्मा भी होते हैं कि जो सर्व शल्य को निर्मूल्य उखेड़कर आरम्भ और परिग्रह रहित होकर ममता और अहंकार रहित होकर रागद्वेष मोह मिथ्यात्व कषाय के मल कलंक जिनके चले गए हैं, सर्व भाव-भावान्तर से अति विशुद्ध आशयवाले, दीनता रहित मानसवाले एकान्त निर्जरा करने की अपेक्षावाला परम श्रद्धा, संवेग, वैरागी, समग्र भय गारव विचित्र कई तरह के प्रमाद के आलम्बन से मुक्त, घोर परिषह उपसर्ग को जिसने जीता है, रौद्रध्यान जिसने दूर किया है, समग्र कर्म का क्षय करने के लिए यथोक्त जयणा का खप रखता हो, अच्छी तरह प्रेक्षा-नजर करता हो, पालन करता हो, विशेष तरीके से जयणा का पालन करता हो, यावत् सम्यक तरह से उसका अनुष्ठान करता हो । जो उस तरह के संयम और जयणा के अर्थी हो वो जल्द जरा, मरण आदि कईं सांसारिक ऐसे दुःख की जाल से मुक्त हो जाते हैं । हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि एक जल्द संसार से छूट जाता है और एक जल्द नहीं छूट सकता।
हे भगवंत ! जन्म, जरा, मरण आदि कईं सांसारिक जाल से मुक्त होने के बाद जीव कहाँ वास करे? हे गौतम ! जहाँ जरा नहीं, मौत नहीं, व्याधि नहीं, अपयश नहीं, झूठे आरोप नहीं लगते, संताप-उद्वेग कंकास, टंटा, क्लेश, दारिद्र, उपताप जहाँ नहीं होते । इष्ट का वियोग नहीं होता । ओर क्या कहना ? एकान्त अक्षय, ध्रुव, शाश्वत, निरूपम, अनन्त सुख जिसमें हैं ऐसे मोक्ष में वास करनेवाला होता है। इस अनुसार कहा।
अध्ययन-८-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण सूत्र-१५२७,१५२८
इस सूत्र में ''वर्धमान विद्या दी है । इसलिए उसकी हिन्दी-छाया नहीं दी । जिज्ञासु लोग हमारा आगम सुत्ताणि-भाग-३९ महानिसीह सूत्र पृष्ठ-१४२-१४३ देखे । 'महानिसीह' सूत्र ४५०४ श्लोक प्रमाण अभी मिलता हैं ।
३९ महानिसीह-छेदसूत्र-६ हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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