________________
आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- १३५०-१३५४
__ तब तक आयु थोड़ा सा भी भुगतना बाकी है, जब तक अभी अल्प भी व्यवसाय कर सकते हो, तब तक में आत्महित की साधना कर लो । वरना पीछे से पश्चात्ताप करने का अवसर प्राप्त होगा । इन्द्रधनुष, बिजली देखते ही पल में अदृश्य हो वैसे संध्या के व्याधि और सपने समान यह देह है जो कच्चे मिट्टी के घड़े में भरे जल की तरह पलभर में पीगल जाता है । इतना समझकर ये जब तक इस तरह के क्षणभंगुर देह से छूटकारा न मिले तब तक उग्र कष्टकारी घोर तप का सेवन करो, आयु का क्रम कब तूटेगा उसका भरोसा नहीं है । हे गौतम ! हजार साल तक अति विपुल प्रमाण में संयम का सेवन करनेवाले को भी अन्तिम वक्त पर कण्डरिक की तरह क्लिष्टभाव शुद्ध नहीं होता । कुछ महात्मा जिस प्रकार शील और श्रामण्य ग्रहण किया हो उस प्रकार पुण्डरिक महर्षि की तरह अल्पकाल में अपने कार्य को साधते हैं। सूत्र-१३५५-१३५६
जन्म, जरा और मरण के दुःख से घिरे इस जीव को संसार में सुख नहीं है, इसलिए मोक्ष ही एकान्त उपदेश-ग्रहण करने के लायक है । हे गौतम ! सर्व तरह से और सर्व भाव से मोक्ष पाने के लिए मिला हुआ मानव भव सार्थक करना।
अध्ययन-६-का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
Page 116