Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक महियारी उन के साथ समग्र कर्म का क्षय करके निर्वाण पाई थी? हे गौतम ! उस महियारी को तांदुल भाजन देने के लिए ढूँढ़ने जा रही थी तब यह ब्राह्मण की बेटी है ऐसा समझकर जा रही थी, तब बीच में ही सुज्ञश्री का अपहरण किया । फिर मधु, दूध खाकर सुज्ञश्रीने पूछा कि कहाँ जाओगे ? गोकुल में दूसरी बात उसे यह बताई कि यदि तुम मेरे साथ विनय से व्यवहार करोगे तो तुम्हें तुम्हारी ईच्छा के अनुसार तीन बार गुड़ और घी से भरे हररोज दूध और भोजन दूंगी। जब ऐसा कहा तब सुज्ञश्री उस महियारी के साथ गई । परलोक अनुष्ठान करने में बेचैन और
पिरोए मानसवाले उस गोविंद ब्राह्मण आदि ने इस सुज्ञश्री को याद भी न किया। उसके बाद जिस प्रकार उस महियारी ने कहा था ऐसी घी-शक्कर से भरी ऐसी खीर आदि का खाना देती थी।
अब किसी तरह से कालक्रम बारह साल का भयानक अकाल का समय पूरा हआ । सारा देश ऋद्धिसमृद्धि से स्थिर हुआ अब किसी समय अनमोल श्रेष्ठ सूर्यकान्त चन्द्रकान्त आदि उत्तम जाति के बीस मणिरत्न खरीदकर सुज्ञशिव अपने देश में वापस जाने के लिए नीकला है । लम्बा सफर करने से खेद पाए हुए देहवाला जिस रास्ते से जा रहा था उस रास्ते में ही भवितव्यता योग से उस महियारी का गोकुल आते ही जिसका नाम लेने में भी पाप है ऐसा वो पापमतिवाला सुज्ञशिव काकतालीय न्याय से आ पहुँचा । समग्र तीन भुवन में जो स्त्री है उसके रूप लावण्य और कान्ति से बढ़िया रूप कान्ति लावण्यवाली सुज्ञश्री को देखकर इन्द्रिय की चपलता से अनन्त दुःख-दायक किंपाक फल की उपमावाले विषय की रम्यता होने से, जिसने समग्र तीनों भुवन को जीता है ऐसे कामदेव के विषय में आए महापापकर्म करनेवाले सुज्ञशिवने उस सुज्ञश्री को कहा कि
हे बालिका ! यदि तुम तुम्हारे माता-पिता अनुमति दे तो में तुमसे शादी करूँ । तुम्हारे बन्धुवर्ग को भी दारिद्र रहित करूँ । फिर तुम्हारे लिए पूरे सों पलप्रमाण सुवर्ण के अलंकार बनवाऊं। जल्द यह बात तुम्हारे माँ-बाप को बताओ, उसके बाद हर्ष और संताप पानेवाली सुज्ञश्रीने महियारी को यह हकीकत बताई । महियारी तुरन्त सुज्ञशिव के पास आकर कहने लगी कि-अरे ! तुम कहते थे ऐसे मेरी बेटी के लिए सो-पल प्रमाण सुवर्ण बताओ, उसने श्रेष्ठ मणि दिखाए । महियारी ने कहा कि सो सोनैया दो, बच्चे को खेलने के लिए पाँचिका का प्रयोजन नहीं है सुज्ञशिव ने कहा -चलो, नगरमें जाकर इस पाँचिका का प्रभाव कैसा है उसकी वहाँ के व्यापारी के पास जाँच करे।
उस के बाद प्रभात के समय नगर में जाकर चन्द्रकान्त और सूर्यकान्त मणि के श्रेष्ठ जोडला राजा को दिखाया । राजाने मणिरत्न परीक्षक को बुलाकर कहा कि-इस श्रेष्ठ मणि का मूल्य दिखाओ । यदि मूल्य की तुलना - परीक्षा की जाए तो उसका मूल्य बताने के लिए समर्थ नहीं है । तब राजाने कहा अरे माणिक्य के शिष्य ! यहाँ कोई ऐसा पुरुष नहीं कि जो इस मणि का मूल्य जाँच कर सके ? तो अब किंमत करवाए बिना उपर के दश करोड़ द्रव्य ले जा । तब सुज्ञशिव ने कहा कि महाराज की जैसी कृपा हो वो सही है । दूसरी एक विनती यह है कि यह नजदीकी पर्वत के समीप में हमारा एक गोकुल है, उसमें एक योजन तक गोचरभूमि है, उसका राज्य की ओर से लेनेवाला कर मुक्त करवाना । राजाने कहा कि भले, वैसा होगा । इस प्रकार सबको अदरिद्र और करमुक्त गोकुल करके वो उच्चार न करने के लायक नामवाले सुज्ञशिवने अपनी लड़की सुज्ञश्री के साथ शादी की।
उन दोनों के बीच आपस में प्रीति पैदा हुई । स्नेहानुराग से रंगे हुए मानस वाले अपना समय बीता रहे हैं। उतने में घर आए हुए साधु को उनको वहोराए बिना वापस जाते देखकर हा हा पूर्वक आक्रंदन करती सुज्ञश्री को सुज्ञशिव ने पूछा कि हे प्रिये ! पहले किसी दिन न देखे हुए भिक्षाचर युगल देखकर क्यों इस तरह उदासीन अवस्था पाई ? तब उसने कहा मेरी मालकीन थी तब इस साधुओं को बहुत भक्ष्य अन्न-पानी देकर उनके पात्र भर देते थे। उस के बाद हर्ष पाई हुई खुश मालकीन मस्तक नीचा कर के उसके चरणाग्रमें प्रणाम करती थी। उन्हें देखते ही मुझे मालकीन याद आ गई । तब फिर उस पापिणी को पूछा कि - तुम्हारी स्वामिनी कौन थी ? तब हे गौतम ! गला बैठ जाए ऐसा रुदन करनेवाली दुःख न समझे ऐसे शब्द बोलते हुए व्याकुल अश्रु गिरानेवाली सुज्ञश्रीने आज दिन तक की सारी बाते बताई । तब महापापकर्मी ऐसे सुज्ञशिव को मालूम हुआ कि - यह तो सुज्ञश्री मेरी ही बेटी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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