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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अपनाते हुए, राग-द्वेष का दूर से त्याग करते हुए, आर्त, रौद्र ध्यान से रहित, विकथा करने में अरसिक हो । सूत्र - १३७४-१३७५
जो कोइ बावन चंदन के रस से शरीर और और बाहूँ पर विलेपन करे, या किसी बाँस से शरीर छिले, कोई उसके गुण की स्तुति करे या अवगुण की नींदा करे तो दोनो पर समान भाव रखनेवाला उस प्रकार बल, वीर्य, पुरुषार्थ पराक्रम को न छिपाते हए, तृण और मणि, ढेफा और कंचन की ओर समान मनवाला, व्रत, नियम, ज्ञान, चारित्र, तप आदि समग्र भुवन में अद्वितीय, मंगलरूप, अहिंसा लक्षणयुक्त क्षमा-आदि दश तरह के धर्मानुष्ठान के लिए एकान्त स्थिर लक्षणवाला, सर्व जरुरी उस समय करने लायक स्वाध्याय ध्यान में उपयोगवाला, असंख्याता अनेक संयम स्थानक के लिए अस्खलित करणवाला, समस्त तरह से प्रमाद के परिहार के लिए कोशीशवाला, यतनावाला और अब फिर भूतकाल के अतिचार की नींदा और भावि में मुमकीन अतिचार का संवर करते हुए वो अतिचार से अटका, उस वजह से वर्तमान में अकरणीय की तरह पापकर्म का त्याग करनेवाला सर्वदोष रहित और फिर नियाणा संसार वृद्धि की जड़ होने से उससे रहित होनेवाला यानि निर्ग्रन्थ प्रवचन की आराधना आलोक या परलोक के बाह्य सुख पाने की अभिलाषा से न करते हुए, ‘माया सहित झूठ बोलना' उसका त्याग करनेवाला ऐसे साधु या साध्वी उपर बताए गुण से युक्त मैंने किसी तरह से प्रमाद दोष से बार-बार कहीं भी किसी भी स्थान पर मन, वचन या काया से त्रिकरण विशुद्धि से सर्वभाव से संयम की आचरणा करते करते असंयम से स्खलना पाए तो उसे विशुद्धि स्थान हो तो केवल प्रायश्चित्त है।
___ हे गौतम ! उस कारण से उसे प्रायश्चित्त से विशुद्धि का उपदेश देना लेकिन दूसरे तरीके से नहीं, उसमें जिन-जिन प्रायश्चित्त के स्थानक में जहाँ जहाँ जितना प्रायश्चित्त बताया है उसे ही-यकीनन अवधारित प्रायश्चित्त कहते हैं। हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा है ? हे गौतम ! यह प्रायश्चित्त सूत्र अनंतर अनंतर क्रमवाले हैं, कईं भव्यात्मा चार गति रूप संसार के कैदखाने में से बद्ध स्पृष्ट, निकाचित दुःख से मुक्त हो सके वैसे घोर पूर्व भव में किए कर्मरूप बेड़ी को तोड़कर जल्द मुक्त होंगे । यह प्रायश्चित्त सूत्र कई गुणसमुद्र से युक्त दृढव्रत और चारित्रवंत हो, एकान्ते योग्य हो उनको आगे बताएंगे वैसे प्रदेश में दूसरा न सुन सके वैसे पढ़ाना, प्ररूपणा करना और जिस की जितने प्रायश्चित्त से श्रेष्ठ विशुद्धि हो सके उस अनुसार उसे राग-द्वेष सहित रूप से धर्म में अपूर्व रस पेदा हो वैसे वचन से उत्साहित करके यथास्थित न्यूनाधिक नहीं वैसा ही प्रायश्चित्त देना । इस कारण से वैसा ही प्रायश्चित्त प्रमाणित और टंकशाली है । उसे निश्चित अवधारित प्रायश्चित्त कहा । सूत्र - १३७६-१३७७
हे भगवंत ! कितने प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं ? हे गौतम ! दश प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं, वे पारंचित तक में कई प्रकार का है । हे भगवंत ! कितने समय तक इस प्रायश्चित्त सूत्र के अनुष्ठान का वहन होगा? हे गौतम ! कल्की नाम का राजा मर जाएगा । एक जिनालय से शोभित पृथ्वी होगी और श्रीप्रभ नाम का अणगार होगा तब तक प्रायश्चित्त सूत्र का अनुष्ठान वहन होगा । हे भगवंत ! उसके बाद क्या होगा ? उसके बाद कोई पुण्यभागी नहीं होगा कि जिन्हें यह श्रुतस्कंध प्ररूपा जाएगा। सूत्र - १३७८
हे भगवंत ! प्रायश्चित्त के कितने स्थान हैं ? हे गौतम ! प्रायश्चित्त के स्थान संख्यातीत बताए हैं । हे भगवंत! वो संख्यातीत प्रायश्चित्त स्थान में से प्रथम प्रायश्चित्त का पद कौन-सा है ? हे गौतम ! प्रतिदिन क्रिया सम्बन्धी जानना । हे भगवंत ! वो प्रतिदिन क्रिया कौन-सी कहलाती है ? हे गौतम ! जो बार-बार रात-दिन प्राण के विनाश से लेकर संख्याता आवश्यक कार्य के अनुष्ठान करने तक आवश्यक करना।
हे भगवंत ! आवश्यक ऐसा नाम किस कारण से कहा जाता है ? हे गौतम ! सम्पूर्ण समग्र आँठ कर्म का क्षय करनेवाला उत्तम सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र काफी घोर वीर उग्र कष्टकारी दुष्कर तप आदि की साधना करने के
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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