Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 139
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक साथ दीनतारहित मानसवाले कईं नर-नारी वर्गने अल्पकाल सुख देनेवाले ऐसे परिवार, स्वजन, मित्र, बन्धु, परिवार, घर, वैभव आदि का त्याग करके शाश्वत मोक्षसुख के अभिलाषी काफी निश्चित दृढ़ मनवाले, श्रमणपन के सभी गुण को धारण करनेवाले, चौदह-पूर्वधर, चरम शरीरवाले, तद्भवमुक्तिगामी ऐसे गणधर स्थविर के पास प्रव्रज्या अंगीकार की । हे गौतम ! इस प्रकार वो काफी घोर, वीर, तप, संयम के अनुष्ठान के सेवन स्वाध्याय ध्यानादिक में प्रवृत्ति करते-करते सारे कर्म का क्षय करके उस ब्राह्मणी के साथ कर्मरज फेंककर गोविंद ब्राह्मण आदि कईं नर और नारीगण ने सिद्धि पाई । वो सब महायशस्वी बने इस प्रकार कहता हूँ। सूत्र - १४९८ हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर-नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया । हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कई सुन्दर भावना सहित शल्य रहित होकर जन्म से लेकर अनन्त तक लगे हए दोष की शुद्ध भाव सहित आलोयणा देकर यथोपदिष्ट प्रायश्चित्त किया । फिर समाधि काल पाकर उसके प्रभाव से सौधर्म देवलोक में इन्द्र महाराज की अग्रमहिषी महादेवी के रूप में उत्पन्न हुई। हे भगवंत ! क्या उस ब्राह्मणी का जीव उस के पीछले भव में निग्रंथी श्रमणी थी कि जिसने निःशल्य आलोचना करके यथोपदिष्ट प्रायश्चित्त किया ? हे गौतम ! उस ब्राह्मणी के जीवने उसके पीछले भव में काफी लब्धि और सिद्धि प्राप्त की थी । ज्ञान, दर्शन, चारित्र रत्न की महाऋद्धि पाई थी । समग्र गुण के आधारभूत उत्तम शीला-भूषण धारण करनेवाले शरीरवाले, महा तपस्वी युगप्रधान श्रमण अणगार गच्छ के स्वामी थे, लेकिन श्रमणी न थे। हे भगवंत ! किस कर्म के विपाक से गच्छाधिपति होकर उसने स्त्रीपन के कर्म का उपार्जन किया ? हे गौतम ! माया करने के कारण से हे भगवंत ! ऐसा उसे माया के कारण क्या हुआ कि - जिसका संसार दुबला हो गया है । ऐसे आत्मा को भी समग्र पाप के उदय से मिलनेवाला, काफी लोगों से निन्दित, खुशबुदार द्रव्य, घी, शक्कर, अच्छे वसाणे का चूर्ण, प्रमाण इकट्ठे करके बनाए गए पाक के लड्डू के पात्र की तरह सबको भोग्य, समग्र दुःख और क्लेश के स्थानक, समग्र सुख को नीगलनेवाले परम पवित्र उत्तम ऐसे अहिंसा लक्षण स्वरूप श्रमण धर्म के विघ्न समान, स्वर्ग की अर्गला और नरक के द्वार समान, समग्र अपयश, अपकीर्ति, कलंक, क्लेश आदि वैरादि पाप के निधान समान निर्मलकुल को अक्षम्य, अकार्य रूप श्याम काजल समान काले कूचड़े से कलंकित करनेवाला ऐसे स्त्री के स्वभाव को गच्छाधिपतिने उपार्जित किया ? हे गौतम ! गच्छाधिपतिपन में रहे ऐसे उसने छोटे-से छोटी भी माया नहीं की थी। पहले वो चक्रवर्ती राजा होकर परलोक भीरू कामभोग से ऊबनेवाले ऐसे उसने तीनके की तरह चक्रवर्ती की समद्धि, चौदह रत्न, नव निधान, ६४००० श्रेष्ठ स्त्रियाँ, ३२००० आज्ञांकित श्रेष्ठ राजा, ९६ करोड़ पदाति यावत् छह खंड का भारत वर्ष का द्र की उपमा समान महाराज्य की समृद्धि का त्याग कर के, काफी पुण्य से प्रेरित वो चक्रवर्ती निःसंग होकर प्रव्रज्या अंगीकार की | अल्प समय में गुणधारी महातपस्वी श्रुतधर बने | योग्य जानकर उत्तम गुरु महाराजाने उसे गच्छाधिपति की अनुज्ञा की । हे गौतम ! वहाँ भी जिसने सद्गति का मार्ग अच्छी तरह से पहचाना है । यथोपदिष्ट श्रमण धर्म को अच्छी तरह से पालन करते, उग्र अभिग्रह धारण करते, घोर परिषह उपसर्ग सहते, रागद्वेष कषाय का त्याग करते, आगम के अनुसार विधि से गच्छपालन कर के, जीवनपर्यन्त साध्वी का लाया हुआ आहार के परिभोग छोड़ देते, छ काय जीव समारम्भ वर्जन करते, सहज भी दीव्य औदारिक मैथुन परीणाम न करते, आलोक या परलोक के सांसारिक सुख की आशंसा न करते नियाण, माया शल्य से मुक्त, निःशल्यता से आलोचना, निन्दना गर्हणापूर्वक यथोपदिष्ट प्रायश्चित्त सेवन करते प्रमाद के आलम्बन से सर्वथा मुक्त कईं भव में उपार्जित किए ऐसे न खपाए हुए कर्मराशि को जिसने खपाकर काफी अल्प प्रमाणवाले स्त्रीरूप के कारण समान मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 139

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