Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 135
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-८- (चूलिका-२) सुसढ़ कथा सूत्र-१४८४ हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक-एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया । तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई । इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत वर्ष में अवन्ति नामका देश है । वहाँ संबुक्क नाम का एक छोटा गाँव था । उस गाँव में जन्म दरिद्र मर्यादा-लज्जा रहित, कृपा रहित, कृपण अनुकंपा रहित, अतिक्रूर, निर्दय, रौद्र परीणामवाला, कठिन, शिक्षा करनेवाला, अभिग्रहिक मिथ्यादृष्टि जिसका नाम भी लेना पाप है, ऐसा सुज्ञशिव नामका ब्राह्मण था, सुज्ञश्री उसकी बेटी थी । समग्र तीन भुवन में नर और नारी समुदाय के लावण्य कान्ति तेज समान सौभायातिशय करने से उस लड़की के लावण्य रूप कान्ति आदि अनुपम और बढ़ियाँ थे वो सुज्ञश्री ने किसी अगले दूसरे भव में ऐसा दुष्ट सोचा था कि यदि इस बच्चे की माँ मर जाए तो अच्छा तो में शोक रहित बनूँ । फिर यह बच्चा दुःखी होकर जी सकेगा । और राजलक्ष्मी मेरे पुत्र को प्राप्त होगी । उस दुष्ट चिन्तवन के फलरूप वो कर्म के दोष से उत्पन्न होने के साथ ही उसकी माँ मर गइ उसके बाद हे गौतम ! उस सुज्ञशिव पिताने काफी क्लेश से बिनती करके नए बच्चों को जन्म देनेवाली माता ने घर-घर घूमकर आराधना की । उस पुत्री का बचपन पूर्ण हुआ । उतने में माँपुत्र का सम्बन्ध टालनेवाले महा भयानक बारह वर्ष के लम्बे अरसे का अकाल समय आ पहुँचा । जितने में रिश्तेदारी का त्याग करके समग्र जनसमूह चला गया तब कसी दिन कईं दिन का भूखा, विषाद पाया हुआ वो सुज्ञशिव सोचने लगा कि क्या अब इस बच्ची को मार डाल के भूख पूरी करूँ या उसका माँस बेचकर किसी वणिक के पास से राशन खरीदकर अपने प्राण को धरूँ । अब जीने के लिए दूसरा कोई भी उपाय मेरे पास नहीं बचा, या तो वाकई मुझे धिक्कार है । ऐसा करना उचित नहीं है । लेकिन उसे जिन्दा ही बेच दूँ । ऐसा सोचकर महाऋद्धि वाले चौदह विद्यास्थान के पारगामी ऐसे गोविंद, ब्राह्मण के घर सुज्ञश्री को बेच दी इसलिए कईं लोगों को नफरत के शब्द से घायल वो अपने देश का त्याग करके सुज्ञशिव दूसरे देशान्तर में चला गया । वहाँ जाकर भी उसी के अनुसार दूसरी कन्या का अपहरण करके दूसरी जगह बेच-बेचकर सुज्ञशिव ने काफी द्रव्य उपार्जन किया उस अवसर पर अकाल के समय के कुछ ज्यादा आँठ वर्ष पसार हुए तब वो गोविंद शेठ का समग्र वैभव का क्षय हुआ । हे गौतम ! वैभाव विनाश पाने की वजह से विषाद पाए हुए गोविंद ब्राह्मण ने चिन्तवन किया कि अब मेरे परिवार का विनाशकाल नजदीक है । विषाद पानेवाले मेरे बँधु को आधा पल भी देखने के लिए समर्थ नहीं है । तो अब मैं क्या करूँ? ऐसा सोचते हुए एक गोकुल के स्वामी की भार्या आई खाने की चीजे बेचनेवाली उस गोवालण के पास से उस ब्राह्मण की भार्या ने डाँगर के नाप से भी घी और शक्कर के बनाए हुए चार लड्डु खरीद किए । खरीद करते ही बच्चे लड्डु खा गए । महीयारी ने कहा कि अरे शेठानी ! हमें बदले में देने की डाँगर की पाली दे दो । हमें जल्द गोकुल में पहुँचना है । हे गौतम ! उसके बाद ब्राह्मणी ने सुज्ञश्री को आज्ञा दी कि अरे ! राजाने जो कुछ भेजा है, उसमें जो डाँगर की मटकी है उसे जल्द ढूंढकर लाओ जिससे यह गोवालण को ढूँ। सुज्ञश्री जितने में वो ढूँढने के लिए घर में गई लेकिन उस तंदुल का भाजन न देखा । ब्राह्मणी ने कहा कि नहीं है। फिर ब्राह्मणी न कहा, अरे ! कुछ भाजन ऊपर करके उसमें देखो और ढूँढकर लाओ। फिर से देखने के लिए आँगन में गई और न देखा तब ब्राह्मणी ने खुद वहाँ आकर देखा तो उसको भी भाजन न मिला । काफी विस्मय पानेवाली उसने फिर से हरएक जगह पर देखने लगी । दोहरान एकान्त जगह में वेश्या के साथ ओदन का भोजन करनेवाले बड़े पुत्र को देखा । उस पुत्रने भी उनकी ओर नजर की । सामने आनेवाली माता को देखकर अधन्य मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 135

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