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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सुरज से जैसे तुषार-हीम पीगल जाए वैसे प्रायश्चित्त समान सूरज के स्पर्श से पीगल जाता है । घनघोर अंधकार वाली रात हो लेकिन सूरज के उदय से अंधकार चला जाता है । वैसे प्रायश्चित्त समान सूरज के उदय से अंधकार समान पापकर्म चले जाते हैं । लेकिन प्रायश्चित्त सेवन करनेवाले ने जरुर इतना खयाल रखना चाहिए कि जिस प्रकार शास्त्र में बताया हो उस प्रकार अपने बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम को छिपाए बिना अशठ भाव से पापशल्य का उद्धार करना चाहिए । दूसरा सर्वथा इस प्रकार प्रायश्चित्त करके वो भी जो इस प्रकार नहीं बोलता, उन्हें शल्य का थोड़ा भी शायद उद्धार किया हो तो भी वो लम्बे अरसे तक चार गति में भ्रमण करता है। सूत्र - १०२५-१०२७
हे भगवंत ! किसके पास आलोचना करनी चाहिए ? प्रायश्चित्त कौन दे सकता है ? प्रायश्चित्त किसे दे सकते हैं ? हे गौतम ! सौ योजन दूर जाकर केवली के पास शुद्ध भाव से आलोचना निवेदन कर सके । केवलज्ञानी की कमी में चार ज्ञानी के पास, उसकी कमी में अवधिज्ञानी, उसकी कमी में श्रुतज्ञानी के पास, जिसके ज्ञात अतिशय ज्यादा निर्मल हो, उसको आलोचना दी जाती है। सूत्र - १०२८-१०३०
जो गुरु महाराज उत्सर्ग मार्ग की प्ररूपणा करते हो, उत्सर्ग के मार्ग में प्रयाण करते हो, उत्सर्ग मार्ग की रुचि करते हो, सर्व भाव में उत्सर्ग का वर्ताव करते हो, उपशान्त स्वभाववाला हो, इन्द्रिय का दमन करनेवाला हो, संयमी हो, तपस्वी हो, समिति गुप्ति की प्रधानतावाले दृढ़ चारित्रपालन करनेवाला हो, असठ भाववाला हो, वैसा गीतार्थ गुरु के पास अपने अपराध निवेदन करना, प्रकट करना, प्रायश्चित्त अंगीकार करना । खुद आलोचना करनी या दूसरों के पास करवानी और फिर हमेशा गुरु महाराज ने बताए प्रायश्चित्त के अनुसार प्रायश्चित्त आचरण करे । सूत्र- १०३१-१०३५
हे भगवंत ! उसका निश्चित प्रायश्चित्त कितना होगा? प्रायश्चित्त लगने के स्थानक कितने और कौन-से हैं? वो मुझे बताओ । हे गौतम ! सुन्दर शीलवाले श्रमण को स्खलना होने से आए हुए प्रायश्चित्त करते संयती साध्वी को उससे ज्यादा नौ गुना प्रायश्चित्त आता है, यदि वो साध्वी शील की विराधना करे तो उसे नौ गुना प्रायश्चित्त आता है । क्योंकि सामान्य से उसकी योनि के बीच में नौ लाख जीव निवास कर रहे हैं । उन सबको केवली भगवंत देखते हैं। उन जीव को केवल केवलज्ञान से देख सकते हैं। अवधिज्ञानी देखते हैं लेकिन मनःपर्यवज्ञानी नहीं देख सकते। सूत्र-१०३६
वो साध्वी या कोई भी स्त्री-पुरुष के संसर्ग में आ जाए तो (संभोग करे तो) घाणी में जैसे तल पीसते हैं उस तरह उस योनि में रहे सर्व जीव रतिक्रीड़ा में मदोन्मत्त हुए तब योनि में रहे पंचेन्द्रिय जीव का मंथन हुआ है । भस्मीभूत होता है। सूत्र- १०३७-१०४१
स्त्री जब चलती है तब वो जीव गहरा दर्द पाते हैं । पेशाब करते हैं तब दो या तीन जीव मर जाते हैं । और बाकी के परिताप दुःख पाते हैं । हे गौतम ! प्रायश्चित्त के अनगिनत स्थानक हैं, उसमें से एक भी यदि आलोवण रहित रह जाए और शल्यसहित मर जाए तो, एक लाख स्त्रीयों का पेट फाड़कर किसी निर्दय मानव सात, आँठ महिने के गर्भ को बाहर नीकाले, वो तिलमिलाता हुआ गर्भ जो दुःख महसूस करता है उसके निमित्त से उस पेट फाड़नेवाले मानव को जितना पाप लगे उससे ज्यादा एक स्त्री के साथ मैथुन प्रसंग में साधु नौ गुना पाप बाँधता है। साध्वी के साथ साधु एक बार मैथुन सेवन करे तो हजार गुना, दूसरी बार सेवन करे तो करोड़ गुना और तीसरी बार मैथुन सेवन करे तो बोधि-सम्यक्त्व का नाश होता है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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