Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 88
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक आराधक या अनाराधक गिना जाता है ? हे गौतम ! अनाराधक माना जाता है। हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? हे गौतम ! जो इस बारह अंग रूप श्रुतज्ञान महाप्रमाण और अंत रहित है। जिसकी आदि नहीं या नाश नहीं, सद्भुत चीज की सिद्धि कर देनेवाले, अनादि से अच्छी तरह से सिद्ध हुआ है । देवेन्द्र को भी वंदनीय है ऐसे अतुल बल, वीर्य, असामान्य सत्त्व, पराक्रम, महापुरुषार्थ, कांति, तेज, लावण्य, रूप, सौभाग्य, अति कला के समूह से समृद्धि से शोभित, अनन्त ज्ञानी, अपने आप प्रतिबोध पाए हुए जिनवर और अनन्त अनादि सिद्ध वर्तमान समय में सिद्ध होनेवाले, दूसरे नजदीकी काल में सिद्धि पानेवाले ऐसे अनन्ता जिनके नाम सुबह को ग्रहण करने के लायक हैं, महासत्त्ववाले, महानुभाग, तीन भुवन में एक तिलक समान, जगत में श्रेष्ठ, जगत के एक बंधु, जगत के गुरु, सर्वज्ञ सर्व जाननेवाले, सर्व देखनेवाले, श्रेष्ठ उत्तम धर्मतीर्थ प्रवर्तानेवाले, अरिहंत भगवंत भूत, भावि आदि अनागत वर्तमान निखिल समग्र गुण पर्याय सर्व चीज का सद्भाव जिसने पहचाना है, किसी की भी सहाय न लेनेवाले, सर्वश्रेष्ठ, अकेले, जिनका एक ही मार्ग है ऐसे तीर्थंकर भगवंत उन्होंने सूत्र से, अर्थ से, ग्रंथ से, यथार्थ उसकी प्ररूपणा की है, यथास्थिति अनुसेवन किया है। कहने के लायक, वाचना देने के लायक, प्ररूपणा करने के लायक, बोलने के लायक, कथन करने के लायक, ऐसे यह बारह अंग और उसके अर्थ स्वरूप गणिपिटक हैं। वो बारह अंग और उसके अर्थ तीर्थंकर भगवंत कि जो देवेन्द्र को भी वंदनीय है, समग्र जगत के सर्व द्रव्य और सर्व पर्याय सहित गति आगति इतिहास बुद्धि जीवादिक तत्त्व चीज के स्वभाव के सम्पूर्ण ज्ञाता हैं । उन्हें भी अलंघनीय हैं । अतिक्रमणीय नहीं है, आशातना न करने के लायक हैं । और फिर यह बारह अंगरूप श्रुतज्ञान सर्व जगत के जीव, प्राण, भूत और सत्त्व को एकान्त में हितकारी, सुखकारी कर्मनाश करने में समर्थ निःश्रेयस यानि मोक्ष के कारण समान है । भवोभव साथ में अनुसरण करनेवाले हैं । संसार का पार बतानेवाले हैं । प्रशस्त, महाअर्थ से भरपूर है, उसमें फलस्वरूप आद बताए होने से महागुण युक्त, महाप्रभावशाली है, महापुरुष ने जिसका अनुसरण किया है । परम महर्षि ने तीर्थंकर भगवंत ने उपदेश दिया है। जो द्वादशांगी दुःख का क्षय करने के लिए ज्ञानावरणीय आदि कर्म का क्षय करने के लिए, राग, द्वेष, आदि के बंधन से मुक्त होने के लिए, संसार-समुद्र से पार उतरने के लिए समर्थ है । ऐसा होने से वो द्वादशांगी को अंगीकार करके विचरण करूँगा । उसके अलावा मेरा कोई प्रयोजन नहीं है । इसलिए जिस किसी ने शास्त्र का सद् भाव न पहचाना हो, या शास्त्र का सार जाना हो वो, गच्छा-धिपति या आचार्य जिसके परिणाम भीतर से विशुद्ध हो तो भी गच्छ के आचार, मंडली के धर्म, छत्तीस तरह के ज्ञानादिक के आचार यावत् आवश्यकादिक करणीय या प्रवचन के सार को बार-बार चूके, स्खलना पाए या इस बारह अंगरूप श्रुतज्ञान के भीतर गूंथे हुए या भीतर ही एक पद या अक्षर को विपरीत रूप से प्रचार करे, आचरण करे उसे उन्मार्ग दिखानेवाला समझना । जो उन्मार्ग दिखाए वो अनाराधक बने, इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वो एकान्ते अनाराधक हैं। सूत्र - ८३४ हे भगवंत ! ऐसा कोई (आत्मा) होगा कि जो इस परम गुरु का अलंघनीय परम शरण करने के लायक स्फुट-प्रकट, अति प्रकट, परम कल्याण रूप, समग्र आँठ कर्म और दुःख का अन्त करनेवाला जो प्रवचनद्वादशांगी रूप श्रुतज्ञान उसे अतिक्रम या प्रकर्षपन से अतिक्रमण करे, लंघन करे, खंडित करे, विराधना करे, आशातना करे, मन से, वचन से या काया से अतिक्रमण आदि करके अनाराधक हो सकते है क्या? हे गौतम ! अनन्ता काल वर्तते अब दश अच्छेरा होंगे । उतने में असंख्याता अभव्यो, असंख्याता मिथ्यादृष्टि, असंख्याता आशातना करनेवाले, द्रव्यलिंग में रहकर स्वच्छंदता से अपनी मति कल्पना के अनुसार से सत्कार करवाएंगे, सत्कार की अभिलाषा रखेंगे यह धार्मिक है-ऐसा करके कल्याण न समजनेवाले जिनेश्वर का प्रवचन अपनाएंगे, उसे अपनाकर जिह्वा रस की लोलुपता से, विषय की लोलुपता से दुःख से करके दमन कर सके मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 88

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