Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 84
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक आचार्य या गच्छ के नायक, प्रवर्तनी को सत्तरह गुना मिलता है । यदि शील का खंडन हो तो तीन लाख गुना । क्योंकि वो काफी दुष्कर है लेकिन सरल नहीं है । इसलिए आचार्य को और गच्छ के नायक को प्रवर्तिनी को अपने पच्चक्खाण का अच्छी तरह से रक्षण करना चाहिए । अस्खलित शीलवाला बनना चाहिए। हे भगवंत ! जो गुरु अचानक किसी कारण से, किसी वैसे स्थान में गलती करे, स्खलना पाए उसे आराधक माने कि नहीं ? हे गौतम ! बड़े गुण में व्यवहार रखते हो वैसे गुरु अस्खलित शीलयुक्त अप्रमादी आलस बिना सर्व तरह के आलम्बन रहित, शत्रु और मित्र पक्ष में समान भाववाले, सन्मार्ग के पक्षपाती धर्मोपदेश देनेवाला, सद्धर्मयुक्त हो इससे वो उन्मार्ग के देशक अभिमान करने में रक्त न बने । सर्वथा सर्व तरह से गुरु को अप्रमत्त बनना चाहिए, लेकिन प्रमत्त नहीं बनना चाहिए । यदि कोई प्रमादी बने तो वो काफी बूरे भावी और असुंदर लक्षणवाले समझना, इतना ही नहीं लेकिन न देखनेलायक महापापी है, ऐसा समझना। यदि वो सम्यक्त्व के बीजवाले हो तो वो खुद को दुश्चरित्र को जिस प्रकार हुआ हो उस प्रकार अपने या दसरों के शिष्य समदाय को कहे कि मैं वाकई दरंत पंत लक्षणवाला, न देखने लायक, महापाप कर्म करनेवाला हूँ। मैं सम्यग् मार्ग को नष्ट करनेवाला हूँ । ऐसे खुद की बुराई करके गुरु के सामने गर्दा करके उनकी आलोचना करके जिस प्रकार शास्त्र में कहा हो उस प्रकार प्रायश्चित्त का सेवन कर दे तो वो कुछ आराधक बने । यदि वो शल्य रहित, माया कपट रहित हो तो, वैसी आत्मा सन्मार्ग से चूकती नहीं । शायद सन्मार्ग से भ्रष्ट हो तो वो आराधक नहीं होती सूत्र - ८२१ ___ हे भगवंत ! कैसे गुणयुक्त गुरु हो तो उसके लिए गच्छ का निक्षेप कर सकते हैं ? हे गौतम ! जो अच्छे व्रतवाले, सुन्दर शीलवाले, दृढ़ व्रतवाले, दृढ़ चारित्रवाले, आनन्दित शरीर के अवयववाले, पूजने के लायक, राग रहित, द्वेष रहित, बड़े मिथ्यात्व के मल के कलंक जिसके चले गए हैं वैसे, जो उपशान्त हैं, जगत की दशा को अच्छी तरह से पहचानते हो, काफी महान वैराग में लीन हो, जो स्त्रीकथा के खिलाफ हो, जो भोजन विषयक कथा के प्रत्यनीक हो, जो चोर विषयक कथा के खिलाफ हो, जो काफी अनुकम्पा करने के स्वभाववाले हो, जो परलोक का नुकसान करनेवाले ऐसे पापकार्य करने से डरनेवाले, जो कुशील के खिलाफ हो, शास्त्र के रहस्य के जानकार हो, ग्रहण किए गए शास्त्र में सारवाले, रात-दिन हर एक समय क्षमा आदि अहिंसा लक्षणवाले दश तरह के श्रमण धर्म में रहे हो, बारह तरह के तप में उद्यमवाले हो, हमेशा पाँच समिति और तीन गुप्ति में उपयोगवाले हो, जो अपनी शक्ति के अनुसार अठारह हजार शीलांग की आराधना करते हो, १७ तरह के संयम की विराधना न करते हो, जो उत्सर्ग मार्ग की रुचिवाले हो, तत्त्व की रूचिवाले हो, जो शत्रु और मित्र दोनों पक्ष के प्रति समान भाववाले हो, जो इहलोक-परलोक आदि साँत तरह के भयस्थान से विप्रमुक्त हो, आँठ तरह के मदस्थान का जिन्होंने सर्वथा त्याग किया हो, नौ तरह की ब्रह्मचर्य की गुप्ति की विराधना से भयमुक्त, बहुश्रुत ज्ञान के धारक, आर्य कुल में जन्मे हुए, किसी भी प्रसंग में दीनताभाव रहित, क्रोध न करनेवाले, आलस रहित, अप्रमादी, संयती वर्ग के आवागमन के विरोधी, निरंतर सतत धर्मोपदेश के दाता, सतत ओघ सामाचारी के प्ररूपक, साधुत्व की मर्यादा में रहने वाले, असामाचारी के भयमुक्त, आलोचना योग्य प्रायश्चित्त दान में समर्थ, वन्दनादि आदि सातों मांडली के विराधना के ज्ञाता, बडी दीक्षा-उपस्थापना योगादि क्रिया के उद्देश-समुद्देश की विराधना के ज्ञाता हो। जो काल-क्षेत्र-द्रव्य-भाव और अन्य भावान्तरो के ज्ञाता हो, जो कालादि आलंबन कारणों से मुक्त हो, जो बालसाधु, वृद्धसाधु, ग्लान, नवदीक्षित आदि को संयम में प्रवर्ताने में कुशल हो, जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र आदि गणों की प्ररूपणा करते हो, उनका पालन और धारण करते हो, प्रभावक हो, दृढ सम्यक्त्ववाले हो, जो खेदरहित हो, धीरजवाले हो, गंभीर हो, अतीशय सौम्यलेश्यायुक्त हो, किसी से पराभाव पाने वाले न हो, छ काय जीव समारंभ से सर्वथा मुक्त हो, धर्म में अन्तराय करने से भयभीत हो, सर्व आशातना से डरने वाले हो, जो ऋद्धि आदि गारव मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 84Page Navigation
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