Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 78
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ७७८ हे गौतम ! पाँच महाव्रत, तीन गुप्ति, पाँच समिति, दश तरह का साधुधर्म उन सब में से किसी भी तरह से एक की भी स्खलना हो तो वो गच्छ नहीं है । सूत्र-७७९-७८० एक ही दिन के दीक्षित द्रमक साधु की सन्मुख चिरदीक्षित आर्या चंदनबाला साध्वी खड़ी होकर उसका सन्मान विनय करे और आसन पर न बैठे वो सब आर्या का विनय है । सौ साल के पर्यायवाले दीक्षित साध्वी हो और साधु आज से एक दिन का दीक्षित हो तो भी भक्ति पूर्ण हृदययुक्त विनय से साधु साध्वी को पूज्य है। सूत्र-७८१-७८४ जो साधु-साध्वी के प्रतिलाभित चीजों में गृद्धि करनेवाले हैं और खुद प्रतिलाभित में असंतुष्ट हैं । भिक्षाचर्या से भग्न होनेवाले ऐसे वो अर्णिकापुत्र आचार्य का दृष्टांत आगे करते हैं । अकाल के समय शिष्यसमुदाय को सूखे प्रदेश में भेज दिए थे, खुद बुढ़ापे के कारण से भिक्षाचर्या करने के लिए समर्थ न थे वो बात वो पापी को पता नहीं थी । और आर्या का लाभ ढूँढ़ते हैं । वो पापी उसमें से जो गुण ग्रहण करने के लायक है उसे ग्रहण नहीं करते । जैसे कि अकाल के समय शिष्य को विहार-प्रवास करवाया । शिष्य पर की ममता का त्याग किया, वहाँ स्थिरवास किया । वो सोचने की बजाय एक क्षेत्र में स्थिरवास रहने की बात आगे करते हैं । इस लोक में कई पडने के आलम्बन भरे हैं, प्रमादी अजयणावाले जीव लोक में ऐसा आलम्बन देखते हैं, वैसा करते हैं। सूत्र - ७८५ जहाँ मुनिओं को बड़े कषाय से धिक्कार-परेशान किया जाए तो भी जैसे अच्छी तरह से बैठा हुआ लंगड़ा पुरुष हो तो वो उठता नहीं। उसी तरह जीसके कषाय खड़े नहीं होते उसे गच्छ कहते हैं। सूत्र-७८६ धर्म के अंतराय से भयभीत, संसार के गर्भावास से डरे हए मुनि अन्य मुनि को कषाय की उदीरणा न करे, वो गच्छ। सूत्र - ७८७ दान, शील, तप, भावना रूप चार तरह के धर्म के अंतराय से और भव से भयभीत ऐसे कईं गीतार्थ जो गच्छ में हो वैसे गच्छ में वास करना चाहिए। सूत्र-७८८ जिसमें चार गति के जीव कर्म के विपाक भुगतते देखकर और पहचानकर मुनि अपराध करनेवाले पर भी क्रोधित न हो वो गच्छ। सूत्र- ७८९-७९० हे गौतम ! जिस गच्छ में पाँच वधस्थान (चक्की-साँबिला-चूल्हा-पनिहारु-झाडु) में से एक भी हो उस गच्छ को त्रिविध से वोसिरा के दूसरे गच्छ में चले जाना, वधस्थान और आरम्भ-से प्रवृत्त ऐसे उज्जवल केशवाले गच्छ में वास न करना, चारित्र गुण से उज्ज्वल ऐसे गच्छ में वास करना । सूत्र - ७९१ दुर्जय आँठ कर्मरूपी मल्ल को जीतनेवाला प्रतिमल्ल और तीर्थंकर समान आचार्य की आज्ञा का जो उल्लंघन करते हैं वो कापुरुष है, लेकिन सत्पुरुष नहीं है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 78Page Navigation
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