Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 76
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक श्रुतदेवता की तरह हर एक स्त्री का मन से त्याग करे वो गच्छ । सूत्र - ७५३-७५४ रतिक्रीड़ा, हाँस्यक्रीड़ा, कंदर्प, नाथवाद जहाँ नहीं किया जाता, दौड़ना, गड्ढे का उल्लंघन करना, मम्माचच्चावाले अपशब्द जिसमें नहीं बोले जाते, जिसमें कारण पैदा हो तो भी वस्त्र का आंतरा रखकर स्त्री के हाथ का स्पर्श भी दृष्टिविष सर्प या प्रदिप्त अग्नि और झहर की तरह वर्जन किया जाता हो वो गच्छ । सूत्र-७५५ लिंग यानि वेश धारण करनेवाला या अरिहंत खुद भी स्त्री के हाथ को छु ले तो हे गौतम ! उसे यकीनन मूलगुण से बाहर जानना । सूत्र - ७५६ उत्तम कुल में पैदा होनेवाला और गुण सम्पन्न, लब्धियुक्त हो लेकिन जिन्हें मूलगुण में स्खलना होती हो उनको जिसमें से नीकाला जाए वो गच्छ । सूत्र-७५७ जिसमें हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, काँस आदि धातु, गद्दी शयन, आसन आदि गृहस्थ के इस्तमाल करने के लायक चीजों का उपभोग नहीं होता वो गच्छ । सूत्र-७५८ जिसमें किसी कारण से समर्पण किया हो ऐसा पराया सुवर्ण आया हो तो पलभर या आँख के अर्धनिमेष समय जितने पल भी जिसको छूआ नहीं जाता वो गच्छ । सूत्र - ७५९ चपल चित्तवाली आर्या के दुर्धर ब्रह्मचर्य व्रतपालन के लिए साँत हजार परिहार स्थानक जहाँ है वो गच्छ । सूत्र-७६० जिसमें उत्तर-प्रत्युत्तर से आर्या साधु के साथ अति क्रोध पाकर प्रलाप करती हो तो हे गौतम ! वैसे गच्छ का क्या काम ? सूत्र-७६१ हे गौतम ! जहाँ कई तरह के विकल्प के कल्लोल और चंचल मनवाली आर्या के वचन के अनुसार व्यवहार किया जाए उसे गच्छ क्यों कहते हैं ? सूत्र - ७६२-७६३ जहाँ एक अंगवाला केवल अकेला साधु, साध्वी के साथ बाहर एक सौ हाथ ऊपर आगे चले, हे गौतम ! उस गच्छ में कौन-सी मर्यादा ? हे गौतम ! जहाँ धर्मोपदेश के सिवा साध्वी के साथ आलाप-संलाप बार-बार वार्तालाप आदि व्यवहार वर्तता हो उस गच्छ को कैसा गिनना? सूत्र - ७६४-७६६ हे भगवंत ! साधुओं को अनियत विहार या नियत विहार नहीं होते, तो फिर कारण से नित्यवास, स्थिरवास जो सेवन करे उसकी क्या हकीकत समजे? हे गौतम ! ममत्वभाव रहित होकर निरंहकारपन से ज्ञान, दर्शन, चारित्र में उद्यम करनेवाला हो, समग्र आरम्भ से सर्वथा मुक्त और अपने देह पर भी ममत्वभाव रहित हो, मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 76

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