Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 69
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-५-नवनीतसार सूत्र-६८४-६८५ इस तरह कुशील संसर्गी का सर्वोपाय से त्याग करके उन्मार्ग प्रवेश किए हए गच्छ में जो वेश से आजीविका करनेवाले हो और वैसे गच्छ में वास करे उसे निर्विघ्नपन के कारण, क्लेश रहित श्रमणपन, संयम, तप और सुन्दर भाव की प्राप्ति नही होती, इतना ही नहीं ले, मोक्षभी उस से काफी दूर रहता है। सूत्र-६८६-६९१ हे गौतम ! ऐसे प्राणी है कि जो उन्मार्ग में प्रवेश किए हुए गच्छ में वास करके भव की परम्परा में भ्रमणा करते हैं । अर्ध पहोर, एक पहोर, एक दिन, एक पक्ष, एक मास या एक साल तक सन्मार्ग में प्रवेश किए हुए गच्छ में गुरुकुल वास में रहनेवाले साधु हे गौतम ! मौज-मजे करनेवाला या आलसी, निरुत्साही बुद्धि या मन से रहता हो लेकिन महानुभाव ऐसे उत्तम साधु के पक्ष को देखकर मंद उत्साहवाले साधु भी सर्व पराक्रम करने के लिए उत्सुक होते हैं । और फिर साक्षी, शंका, भय, शर्म उसका वीर्य उल्लसीत होता है । हे गौतम ! जीव की वीर्य शक्ति उल्लसीत होते जन्मान्तर में किये कर्मों को हृदय के भाव से जला देते हैं । इसलिए निपुणता से सन्मार्ग में प्रवेश किए गच्छ को जाँचकर उसमें संयत मुनि को जीवन पर्यन्त वास करना। सूत्र - ६९२ हे भगवंत ! ऐसे कौन-से गच्छ हैं, जिसमें वास कर सकते हैं ? हे गौतम ! जिसमें शत्रु और मित्र पक्ष की तरफ समान भाव वर्तता हो । अति सुनिर्मल विशुद्ध अंतःकरणवाले साधु हो, आशातना करने में भय रखनेवाले हो, खुद के और दूसरों के आत्मा का अहेसान करने में उद्यमवाले हों, छ जीव निकाय के जीव पर अति वात्सल्य करनेवाले हो, सर्व प्रमाद के आलम्बन से विप्रमुक्त हो, अति अप्रमादी विशेष तरह से पहचाने हुए, शास्त्र के सद्भाव वाले, रौद्र और आर्तध्यान रहित, सर्वथा बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम को न गोपनेवाले एकान्त में साध्वी के पात्रा, कपड़े आदि वहोरे हों, उसका भोग न करनेवाले, एकान्त धर्म का अंतराय करने में भय रखनेवाले, तत्त्व की ओर रूचि करनेवाले, पराक्रम करने की रूचिवाले, एकान्त में स्त्रीकथा, भोजनकथा, चोरकथा, राजकथा, देशकथा, आचार से परिभ्रष्ट होनेवाले की कथा न करनेवाला, उसी तरह विचित्र अप्रमेय और सर्व तरह की विकथा करने से विप्रमुक्त एकान्त में यथाशक्ति १८ हजार शीलांग का आराधक समग्र रात-दिन तत्परता से शास्त्र के अनुसार मोक्षमार्ग की प्ररूपणा करनेवाले, कईं गुण से युक्त मार्ग में रहे, अस्खलित, अखंडित शीलगुण के धारक होने से महायशवाले, महास्तववाले, महानुभाव ज्ञान, दर्शन और चारित्र के गुणयुक्त ऐसे गुण को धारण करनेवाले आचार्य होते हैं। वैसे गुणवाले आचार्य की निश्रा में ज्ञानादिक मोक्षमार्ग की आराधना करनेवाले को गच्छ कहा है। सूत्र-६९३ हे भगवंत ! क्या उसमें रहकर इस गुरुवास का सेवन होता है ? हे गौतम ! हा, किसी साध यकीनन उसमें रहकर गुरुकुल वास सेवन करते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं कि जो वैसे गच्छ में वास न करे । हे भगवं किस कारण से कहा जाता है कि कोई वास करे और कोई वास नहीं करते? हे गौतम ! एक आत्मा आज्ञा का आराधक है और एक आज्ञा का विराधक है । जो गुरु की आज्ञा में रहा है वो-सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्र का आराधक है, और वो हे गौतम ! अत्यंत ज्ञानी कईं प्रकार के मोक्षमार्ग में उद्यम करनेवाले हैं, जो गुरु की आज्ञा के अनुसार नहीं चलता, आज्ञा की विराधना करता है, वे अनन्तानुबन्धी क्रोध, माया, मान, लोभवाले चार कषाय युक्त होते है, वे राग, द्वेष, मोह और मिथ्यात्व के पूँजवाले होते हैं, जो गहरे राग, द्वेष, मोह मिथ्यात्व के ढ़गवाले होते हैं वो उपमा न दे सके वैसे घोर संसार सागर में भटकते रहते हैं । अनुत्तर घोर संसार सागर में भटकनेवाले की फिर से जन्म, जरा, मोत फिर जन्म, बुढ़ापा, मौत पाकर कईं भव का परावर्तन करना पड़ता है। और फिर उसमें ८४ लाख योनि में बार-बार पैदा होना पड़ता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 69Page Navigation
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