Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक का दमन करनेवाले, संतोष रखनेवाले, छ काय का रक्षण करनेवाले, वैराग के मार्ग में लीन, दश तरह की समाचारी का सेवन करनेवाले, आवश्यक को आचरनेवाले, संयम में उद्यम करनेवाले, सेंकड़ों बार कठोर, कड़े, कर्कश अनिष्ट दुष्ट निष्ठुर वचन से अपमान किया जाए । अगर वैसा व्यवहार किया जाए तो भी जो रोषायमान नहीं होते, जो अपकीर्ति करनेवाले, अपयश करनेवाले या अकार्य करनेवाले नहीं होते । गले में जान अटक जाए तो भी प्रवचन की अपभ्राजना हो वैसा व्यवहार नहीं करते । निरंतर स्वाध्याय और ध्यान में लीन मनवाले, घोर तप और चरण से शोषे हुए शरीरवाले, जिसमें से क्रोध, मान, माया चले गए हैं और राग, द्वेष जिन्होंने दूर से सर्वथा त्याग किया है विनयोपचार करने में कुशल, सोलह तरह के वचन शुद्धिपूर्वक बोलने में कुशल, निरवद्य वचन बोलनेवाले ज्यादा न बोलने के स्वभाववाला, बार-बार न बोलनेवाले, गुरु ने सकारण या बिना कारण कठोर, कठिन, कर्कश, निष्ठुर, अनिष्ट शब्द कहे हो तब भी तहत्ति' करनेवाला ‘इच्छं' उत्तर देनेवाला इस तरह के गुणवाले जो गच्छ में शिष्य हों उसे गच्छ कहते हैं।
सूत्र-७२१-७२३
भ्रमणस्थान-यात्रादि में ममत्वभाव का सर्वथा त्याग करके, अपने शरीर के लिए भी निःस्पृह भाववाली, संयम के निर्वाह तक केवल आहार ग्रहण करनेवाले, वो आहार भी ४२ दोष रहित हो, शरीर के रूपक से इन्द्रिय के रस के पोषण के लिए नहीं, भोजन करते-करते भी अनुकूल आहार खुद को मिलने के बदले अभिमान न करनेवाला हो, केवल संयमभोग वहन करने के लिए, इर्यासमिति के पालन के लिए, वैयावच्च के लिए, आहार करनेवाला होता है । क्षुधा-वेदना न सह सके, इर्यासमिति पालन के लिए, पडिलेहणादिक संयम के लिए, आहार ग्रहण करनेवाला होता है।
सूत्र- ७२४-७२५
___ अपूर्व ज्ञान ग्रहण करने के लिए, धारणा करने में अति उद्यम करनेवाले शिष्य जिसमें हो, सूत्र, अर्थ और उभय को जो जानते हैं और वो हमेशा उद्यम करते हैं, ज्ञानाचार के आँठ, दर्शनाचार के आँठ, चारित्राचार के आँठ (तपाचार के बारह) और वीर्याचार के छत्तीस आचार, उसमें बल और वीर्य छिपाए बिना अग्लानि से काफी एकाग्र मन, वचन, काया के योग से उद्यम करनेवाला हो । इस तरह के शिष्य जिसमें हो वो गच्छ हैं।
सूत्र - ७२६
गुरु महाराज कठोर, कड़ी, निष्ठुर वाणी से सेंकड़ों बार ठपका दे तो भी शिष्य जिस गच्छ में प्रत्युत्तर न दे तो उसे गच्छ कहते हैं।
सूत्र- ७२७
तप प्रभाव से अचिन्त्य पैदा हुई लब्धि और अतिशयवाली ऋद्धि पाई हो तो भी जिस गच्छ में गुरु की अवहेलना शिष्य न करे उसे गच्छ कहते हैं।
सूत्र - ७२८
एक बार कठिन पाखंडीओं के साथ वाद करके विजय प्राप्त किया हो, यश समूह उपार्जन किया हो ऐसे शिष्य भी जिस गच्छ में गुरु की हेलना-अवहेलना नहीं करता उसे गच्छ कहते हैं।
सूत्र- ७२९
__जिसमें अस्खलित, एक दुजे में अक्षर न मिल जाए उस तरह आड़े-टेढ़े अक्षर जीसमें बोले न जाए वैसे अक्षरवाले, पद और अक्षर से विशुद्ध, विनय और उपधान पूर्वक पाए हुए बारह अंग के सूत्र और श्रुतज्ञान जिसमें पाए जाते हों वो गच्छ हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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