Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ६९६
हे भगवंत ! कितने काल तक गच्छ की मर्यादा है ? कितने काल तक गच्छ मर्यादा का उल्लंघन न करे? हे गौतम ! जब तक महायशवाले महासत्त्ववाले महानुभाव दुप्पसहअणगार होंगे तब तक गच्छ की मर्यादा सँभालने के लिए आज्ञा की है। यानि कि पाँचवे आरे के अन्त तक गच्छ मर्यादा का उल्लंघन न करना। सूत्र - ६९७
हे भगवंत ! किन निशानीओं से मर्यादा का उल्लंघन बताया है? काफी आशातना बताई है और गच्छ ने उन्मार्ग में प्रवेश किया है-ऐसा माने ? हे गौतम ! जो बार-बार गच्छ बदलता हो, एक गच्छ में स्थिर न रहता हो, अपनी मरजी के अनुसार व्यवहार करनेवाला, खाट-पाटला, पटरी आदि ममता रखनेवाला, अप्रासुक बाह्य प्राणवाले सचित्त जल का भोग करनेवाले, मांडली के पाँच दोष से अनजान और उन दोष का सेवन करनेवाले, सर्व आवश्यक क्रियाओं के काल का उल्लंघन करनेवाले, आवश्यक प्रतिक्रमण न करनेवाले, कम या ज्यादा आवश्यक करनेवाले गण के प्रमाण से कम या ज्यादा रजोहरण, पात्र, दंड, मुहपत्ति आदि उपकरण धारण करनेवाले, गुरु के उपकरण का परिभोगी, उत्तरगुण का विराधक, गृहस्थ की इच्छा के अनुसार प्रवृत्ति करनेवाला, उसके सन्मान में प्रवर्तीत, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति, बीजकाय, त्रसकाय दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले जीव को कारण से या कारणरहित प्रमाद दोष से संघट्टन आदि में दोष को न देखते हुए आरम्भ परिग्रह में प्रवृत्ति करके, गुरु के पास आलोचना न करे, विकथा करे, बिना समय के कहीं भी घुमनेवाला, अविधि से संग्रह करनेवाला, कसौटी किए बिना प्रव्रज्या दे, बड़ी दीक्षा दे, दश तरह की विनय सामाचारी न शीखलाए । ऋद्धि, रस, शाता गारव करनेवाला, मति आदि आँठ मद, चार कषाय, ममत्त्वभाव, अहंकार, कंकास, क्लेश, झगड़े, लड़ाई, तुफान, रौद्रआर्तध्यानयुक्त स्थापन नहीं किया, बुजुर्ग को जिसने हाथ से तिरस्कारयुक्त हे-दो' ऐसा कहना, दीर्घकाल के बाद लोच करनेवाले, विद्या, मंत्र, तंत्र, योग, अंजन आदि शीखकर उसमें ही एकान्त कोशिश करनेवाले, मूलसूत्र के योग और गणी पदवी के योग वहन न करनेवाला, अकाल आदि के आलम्बन ग्रहण करके अकल्प्य खरीद किए हुए पकाए हुए आदि का परिभोग करने के स्वभाववाले, थोड़ी बीमारी हुई हो तो उसका कारण आगे करके चिकित्सा करवाने के लिए तैयार हो, वैसे काम को खुशी से आमंत्रित करे, जो किसी रोग आदि हुए हो तो दिन में शयन करने के स्वभाववाले, कुशील के साथ बोलने और अनुकरण करनेवाले, अगीतार्थ के मुख में से नीकले कईं दोष प्रवर्तानेवाले वचन और अनुष्ठान को अनुसरने के स्वभाववाले, तलवार, धनुष, खड्ग, तीर, भाला, चक्र आदि शस्त्र ग्रहण करके चलने के स्वभाववाले, साधु वेश छोड़कर अन्य वेश धारण करके भटकनेवाले, इस तरह साढ़े तीन पद कोटि तक हे गौतम ! गच्छ को असंस्थित कहना और दूसरे कई तरह के लिंगवालों निशानीवाले गच्छ को संक्षेप से कह सकते हैं। सूत्र-६९८
इस तरह के बड़े गुणवाले गच्छ पहचानना वो इस प्रकार- गुरु तो सर्व जगत के जीव, प्राणी, भूत सत्त्व के लिए वात्सल्य भाव रखनेवाली माँ समान हो, फिर गच्छ के लिए वात्सल्य की बात कहाँ अधूरी है ? और फिर शिष्य और समुदाय के एकान्त में हित करना, प्रमाणवाले, पथ्य आलोक और परलोक के सुख को देनेवाले ऐसे
आगमानुसारी हितोपदेश को देनेवाले होते हैं । देवेन्द्र और नरेन्द्र की समृद्धि की प्राप्ति से भी श्रेष्ठ और उत्तम गुरु महाराज का उपदेश है । गुरु महाराज संसार के दुःखी आत्मा की भाव अनुकंपा से जन्म, जरा, मरण आदि दुःख से यह भव्य जीव काफी दुःख भुगत रहे हैं । वो कब शाश्वत का शिव-सुख पाएंगे ऐसा करुणापूर्वक गुरु महाराज उपदेश दे लेकिन व्यसन या संकट से पराभवित बनकर नहीं । जैसे कि ग्रह का वलगण लगा हो, उन्मत्त हुआ हो, किसी तरह के बदले की आशा से जैसे कि इस हितोपदेश देने से मुजे कुछ फायदा होगा-ऐसी लालच पैदा हो, तो हे गौतम ! गुरु शिष्य की निश्रा में संसार का पार नहीं पाते और दूसरों ने किए हुए सर्व शुभाशुभ कर्म के रिश्ते
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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