Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक दिन भी सुख पाए बिना दुःख में काल निर्गमन करते हैं, क्योंकि मनुष्य ने पुण्यकर्म करना छोड़ दिया होता है । सूत्र - २४२
यह तो जगत के सारे जीव का संक्षेप से दुःख बताया । हे गौतम ! मानव जात में जो दुःख रहा है उसे सून सूत्र- २४३
हर समय अहसास करनेवाले सेंकड़ो तरह के दुःख से उद्वेग पानेवाले और ऊब जानेवाले कुछ मानव वैराग्य नहीं पाते। सूत्र - २४४-२४५
___ संक्षेप से मानव को दो तरह का दुःख होता है, एक शारीरिक दूसरा मानसिक । और फिर दोनों के घोर प्रचंड और महारौद्र ऐसे तीन-तीन प्रकार होते हैं । एक मुहर्त में जिसका अंत हो उसे घोर दुःख कहा है। कुछ देर बीच में विश्राम-आराम मिले तो घोर प्रचंड दुःख कहलाता है । जिसमें विश्रान्ति बिना हर एक वक्त में एक समान दुःख हमेशा सहना पड़े। उसे घोर प्रचंड महारौद्र कहते हैं। सूत्र - २४६
मानव जातिमे घोर दुःख है । तिर्यंचगति में घोर प्रचंड दुख है और हे गौतम ! नारक के जीव का दुख घोर प्रचंड़ महारौद्र होता है। सूत्र - २४७
मानव को तीन प्रकार का दुःख होता है । जघन्य, मध्यम और उत्तम । तिर्यंच को जघन्य दुःख नहीं होता, नारक को उत्कृष्ट दुःख होता है। सूत्र-२४८-२५०
मानव को जो जघन्य दुःख हो वो दो तरह का जानना-सूक्ष्म और बादर । दूसरे बड़े दुःख विभाग रहित जानना । समूर्छिम मानव को सूक्ष्म और देव के लिए बादर दुःख होता है । महर्द्धिक देव को च्यवनकाल से बादर मानसिक दुःख हो हुकुम उठानेवाले सेवक-आभियोगिक देव को जन्म से लेकर जीवन के अन्त तक मानसिक बादर दुःख होता है । देव को शारीरिक दुःख नहीं होता । देवता का वज्र समान अति बलवान वैक्रिय हृदय होता है। वरना मानसिक दुःख से १०० टुकड़े होकर उसका हृदय भग्न होता है। सूत्र - २५१-२५२
बाकी के दो हिस्से रहित वो मध्यम और उत्तम दुःख । ऐसे दुःख गर्भज मानव के लिए मानो । अनगिनत साल की आयुवाले युगलीया को विमध्यम तरह का दुःख हो । गिनत साल के आयु वाले मानव को उत्कृष्ट दुःख । सूत्र - २५३
अब दुःख के अर्थवाले पर्याय शब्द कहा है । असुख, वेदना, व्याधि, दर्द, दुःख, अनिवृत्ति, अणराग (बेचैनी) अरति, क्लेश आदि कईं एकार्थिक पर्याय शब्द दुःख के लिए इस्तमाल किए जाते हैं।
अध्ययन-२ उद्देशक-२ सूत्र-२५४
शारीरिक और मानसिक ऐसे दो भेदवाले दुःख बताए, उसमें अब हे गौतम ! वो शारीरिक दुःख अति स्पष्टतया कहता हूँ । उसे तुम एकाग्रता से सूनो । सूत्र - २५५-२६२
केशाग्र का लाख-क्रौड़वां भाग हो केवल उतने हिस्से को छुए तो भी निर्दोष वृत्तिवाले कुंथुजीव को इतना दर्द होता है कि यदि हमें कोई करवत से काटे या हृदय या मस्तक को शस्त्र से भेदे तो हम थर-थर काँपे, वैसे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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