Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 38
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक फिर जो अपरम्परा कुशील है वो दो तरीके का है । आगम से गुरु परम्परा से क्रम या परिपाटी में जो कोई कुशील थे वो ही कुशील माने जाते हैं। सूत्र-४८५-४८६ नोआगम से कुशील कई तरह के हैं वो इस प्रकार - ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील, तप कुशील, वीर्याचार में कुशील । उसमें जो ज्ञान कुशील है वो तीन प्रकार के हैं । प्रशस्ता प्रशस्त ज्ञान कुशील, अप्रशस्त ज्ञान कुशील और सुप्रशस्त ज्ञान कुशील । सूत्र -४८७ उसमें जो प्रशस्ता प्रशस्त ज्ञान कुशील है उसे दो तरह के जानो । आगम से और नोआगम से । उसमें आगम से विभंग ज्ञानी के प्ररूपेल प्रशस्ता प्रशस्त चीज समूहवाले अध्ययन पढाना वह अध्ययन कशील, नोआगम से कई तरह के प्रशस्ता-प्रशस्त परपाखंड़ के शास्त्र के अर्थ समूह को पढ़ना, पढ़ाना, वाचना, अनुप्रेक्षा करने समान कुशील। सूत्र - ४८८ उसमें जो अप्रशस्त ज्ञान कुशील है वो २९ प्रकार के हैं । वो इस तरह१. सावद्यवाद विषयक मंत्र, तंत्र का प्रयोग करने समान कुशील । २. विद्या-मंत्र-तंत्र पढ़ाना-पढ़ना यानि वस्तुविद्या कुशील । ३. ग्रह-नक्षत्र चार ज्योतिष शास्त्र देखना, कहना, पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ४. निमित्त कहना । शरीर के लक्षण देखकर कहना, उसके शास्त्र पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ५. शकुन शास्त्र लक्षण शास्त्र कहना, पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ६. हस्ति शिक्षा बतानेवाले शास्त्र पढ़ना पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ७. धनुर्वेद की शिक्षा लेना उसके शास्त्र पढ़ाना समान लक्षण कुशील । ८. गंधर्ववेद का प्रयोग शीखलाना यानि रूप कुशील । ९. पुरुष-स्त्री के लक्षण कहनेवाले शास्त्र पढानेवाले रूप कुशील । १०. कामशास्त्र के प्रयोग कहनेवाले, पढ़ानेवाले रूप कुशील । ११. कौतुक इन्द्रजाल के शस्त्र का प्रयोग करनेवाले पढ़ानेवाले कुशील । १२. लेखनकला, चित्रकला शीखलानेवाले रूप कुशील । १३. लेपकर्म विद्या पढ़ानेवाले रूप कुशील । १४. वमन विरेचन के प्रयोग करना, करवाना, शीखलाना, कई तरह की वेलड़ी उसकी जड़ नीकालने के लिए कहना, प्रेरणा देना, वनस्पति-वेल तोड़ना, कटवाने के समान कईं दोषवाली वैदक विद्या के शस्त्र अनुसार प्रयोग करना, वो विद्या पढ़ना, पढ़ाना यानि रूप कुशील । १५. उस प्रकार अंजन प्रयोग । १६. योगचूर्ण । १७. सुवर्ण धातुवाद । १८. राजदंडनीति । १९. शास्त्र अस्त्र अग्नि बीजली पर्वत । २०. स्फटिक रत्न । २१. रत्न की कसौटी। २२. रस वेध विषयक शास्त्र । २३. अमात्य शिक्षा । २४. गुप्त तंत्र-मंत्र । २५. काल देशसंधि करवाना। २६. लड़ाई करवाने का उपदेश । २७. शस्त्र । २८. मार्ग । २९. जहाज व्यवहार | आदि यह निरुपण करनेवाले शास्त्र का अर्थ कथन करना करवाना यानि अप्रशस्त ज्ञान कुशील । इस प्रकार पाप-श्रुत की वाचना, विचारणा, परावर्तन, उसकी खोज, संशोधन, उसका श्रवण करना अप्रशस्त ज्ञान कुशील कहलाता है। सूत्र - ४८९ उसमें जो सुप्रशस्त ज्ञानकुशील है वो भी दो तरह के जान लेने आगम से और नोआगम से । उसमें आगम मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 38

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