Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक पर इकट्ठा हो वैसे रखते हैं । जब दो पड़ इकट्ठे किए जाए तब हे गौतम ! एक चपटी बजाकर उसके तीसरे हिस्से के काल में उसके भीतर फँसे मनुष्यमें से एक या दो बाहर नीकल जाते हैं । उसके बाद वो रत्नद्वीपवासी पेड़ सहित मंदिर और महल वहाँ बनाते हैं । उसी समय उसके हाड़ का-शरीर का विनाशकाल पैदा होता है, उस प्रकार हे गौतम ! उस वज्रशीला के चक्की के दो पड़ के बीच पीसकर पीसते-पीसते जब तक सारी हड्डियाँ दबकर अच्छी तरह न पीसे और चूर्ण न हो तब तक वो अंडगोलिक के प्राण अलग नहीं होते । उसके अस्थि वज्ररत्न की तरह मुश्किल से पीस सके वैसे मजबूत होते हैं । वहाँ उसको वज्रशीला के दो पड़ के बीच रखकर काले बैल जुड़कर काफी कोशीश के बाद रेंट की तरह गोल भमाडाते हैं।
एक साल तक पीसने की कोशीश चालू होने के बाद भी उसकी मजबूत अस्थि के टुकड़े नहीं होते । उस समय उस तरह के अति घोर दारुण शारीरिक और मानसिक महादुःख के दर्द का कठिन अहेसास करने के बाद भी प्राण भी चले गए होने के बाद भी जिसके अस्थिभंग नहीं होते, दो हिस्से नहीं होते, पीसते नहीं, घिसते नहीं लेकिन जो किसी संधिस्थान जोड़ों का और बँधन का स्थान है वो सब अलग होकर जर्जरीभूत होते हैं । उसके बाद दूसरी सामान्य पत्थर की चक्की की तरह फिसलनेवाले ऑटे की तरह कुछ ऊंगली आदि अग्रावयव के अस्थिखंड़ देखकर वो रत्नद्वीपवासी लोग आनन्द पाकर शीला के पड़ ऊपर उठाकर उसकी अंडगोलिका ग्रहण करके उसमें जो शुष्क-नीरस हिस्सा हो वो कईं धनसमूह ग्रहण करके बेच डालते हैं । इस प्रकार से वो रत्नद्वीप निवासी मानव अंतरंड़ गोलिका ग्रहण करते हैं।
हे भगवंत ! वो बेचारे उस तरह का अति घोर दारूण तीक्ष्ण दुःस्सह दुःखसमूह को सहते हुए आहार-जल बिना एक साल तक किस तरह प्राण धारण करते होंगे? हे गौतम ! खुद के किए कर्म के अनुभव से इसका विशेष अधिकार जानने की इच्छावाले को प्रश्न व्याकरण सूत्र के वृद्ध विवरण से जान लेना। सूत्र - ६७९
हे भगवंत ! वहाँ मरकर उस सुमति का जीव कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! वहीं वो प्रतिसंताप दायक नाम की जगह में, उसी क्रम से साँत भव तक अंडगोलिक मानव रूप से पैदा होगा । उसके बाद दुष्ट श्वान के भव, उसके बाद काले श्वान में, उसके बाद वाणव्यंतर में, उसके बाद नीम की वनस्पति में, उसके बाद स्त्री-रत्न के रूपमें, उसके बाद छट्ठी नारकी में, फिर कुष्ठि मानव, फिर वाण-व्यंतर, फिर महाकायवाला युथाधिपति हाथी, वहाँ मैथुन में अति आसक्ति होने से अनन्तकाय वनस्पति में वहाँ अनन्त काल जन्म-मरण के दुःख सहकर मानव बनेगा। फिर मानवपन में महानिमिति को फिर साँतवी में, फिर स्वयं-भूरमण समुद्र में बड़ा मत्स्य बनेगा । कईं जीव का मत्स्याहार करके मरकर साँतवी में जाएगा।
उसके बाद आँखला, फिर मानव में, फिर पेड़ पर कोकिला, फिर जलो, फिर महा मत्स्य, फिर तंदुल मत्स्य, फिर साँतवी में, फिर गधा, फिर कुत्ता, फिर कृमिजीव, फिर मेढ़क, फिर अग्निकाय में, फिर कुंथु, फिर मधुमक्खी, फिर चीडिया, फिर उधइ, फिर वनस्पति में ऐसे अनन्तकाल करके मानव में स्त्रीरत्न, फिर छट्ठी में, फिर ऊंट, फिर वेषामंकित नाम के पट्टण में उपाध्याय के गृह के पास नीम की वनस्पति में, फिर मानव में छोटी कुब्जा स्त्री, फिर नामर्द, फिर दुःखी मानव, फिर भीख माँगनेवाले, फिर पृथ्वीकाय आदि काय में भवदशा और कायदशा हरएक में भुगतनेवाले, फिर मानव, फिर अज्ञान तप करनेवाले, फिर वाणव्यंतर, फिर पुरोहित, फिर साँतवी में तंदुल मत्स्य, फिर साँतवी नारकी में, फिर बैल, फिर मानव में महासम्यग्दृष्टि अविरति चक्रवर्ती, फिर प्रथम नारकी में, फिर श्रीमंत शेठ, फिर श्रमण अणगारपन में, वहाँ से अनुत्तर देवलोक में, फिर चक्रवर्ती महासंघयणवाले होकर कामभोग से वैराग पाकर तीर्थंकर भगवंत कथित संपूर्ण संयम को साधकर उसका निर्वाण होगा। सूत्र - ६८०
और फिर जो भिक्षु या भिक्षुणी परपाखंड़ी की प्रशंसा करे या निह्नवों की प्रशंसा करे, जिन्हें अनुकूल हो
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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