Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि पंचमंगल महा श्रुतस्कंध को पढ़ने के बाद इरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए?
हे गौतम ! हमारी यह आत्मा जब-जब आना-जाना आदि क्रिया के परिणाम में परिणत हुआ हो, कईं जीव, प्राण, भूत और सत्त्व के अनुपयोग या प्रमाद से संघट्टन, उपद्रव या किलामणा करके फिर उसका आलोचन प्रतिक्रमण किया जाए और समग्र कर्म के क्षय के लिए चैत्यवंदन, स्वाध्याय, ध्यान आदि किसी अनुष्ठान किया जाए उस वक्त एकाग्र चित्तवाली समाधि हो या न भी हो, क्योंकि गमनागमन आदि कईं अन्य व्यापार के परिणाम में आसक्त होनेवाले चित्त से कुछ जीव उसके पूर्व के परिणाम को न छोड़े और दुर्ध्यान के परिणाम में कुछ काल वर्तता है । तब उसके फल में विसंवाद होता है । और जब किसी तरह अज्ञान मोह प्रमाद आदि के दोष से अचानक एकेन्द्रियादिक जीव के संघट्टन या परितापन आदि हो गए हो और उसके बाद अरे रे ! यह हमसे बूरा काम हो गया। हम कैसे सज्जड़ राग, द्वेष, मोह, मिथ्यात्व और अज्ञान में अंध बन गए हैं । परलोक में इस काम के कैसे कटु फल भुगतने पड़ेंगे उसका खयाल भी नहीं आता । वाकई हम क्रूर कर्म और निर्दय व्यवहार करनेवाले हैं । इस प्रकार पछतावा करते हुए और अति संवेग पानेवाली आत्माएं अच्छी तरह से प्रकटपन में इरियावहिय सूत्र से दोष की आलोचना करके, बूराई करके, गुरु के सामने गर्दा करके, प्रायश्चित्त का सेवन करके शल्य रहित होता है। चित्त की स्थिरतावाला अशुभकर्म के क्षय के लिए जो कुछ आत्महित के लिए उपयोगवाला हो, जब वो अनुष्ठान में उपयोग वाला बने तब उसे परम एकाग्र चित्तवाली समाधि प्राप्त होती है। उससे सर्व जगत के जीव, प्राणीभूत और सत्त्व को जो ईष्टफल हो वैसी इष्टफल की प्राप्ति होती है।
उस कारण से हे गौतम ! इरियावहिय पडिक्कमे बिना चैत्यवंदन स्वाध्यायादिक किसी भी अनुष्ठान न करना चाहिए । यदि यथार्थफल की अभिलाषा रखता हो तो, इस कारण से कि गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पंचमंगल महाश्रुतस्कंध नवकार सूत्र अर्थ और तदुभय सहित स्थिर-परिचित कर के इरियावहिय सूत्र पढ़ना चाहिए सूत्र- ५९३
हे भगवंत ! किस विधि से इरियावहिय सूत्र पढना चाहिए? हे गौतम ! पंच मंगल महाश्रुतस्कंध की विधि के अनुसार पढ़ना चाहिए। सूत्र- ५९४
हे भगवंत ! इरियावहिय सूत्र पढ़कर फिर क्या करना चाहिए ? हे गौतम ! शक्रस्तव आदि चैत्यवंदन पढ़ना चाहिए । लेकिन शक्रस्तव एक अठुम और उसके बाद उसके उपर बत्तीस आयंबिल करना चाहिए । अरहंत सत्व यानि अरिहंत चेईआणं एक उपवास और उस पर पाँच आयंबिल करके । चौबीस स्तव-लोगस्स, एक छळू, एक उपवास पर पचीस आयंबिल करके । श्रुतस्तव-पुक्खरवरदीवड्ढे सूत्र, एक उपवास और उपर पाँच आयंबिल करके विधिवत् पढ़ना चाहिए।
उस प्रकार स्वर, व्यंजन, मात्रा, बिन्दु, पदच्छेद, पद, अक्षर से विशुद्ध, एक पद के अक्षर दूसरे में न मिल जाए, उसी तरह वैसे दूसरे गुण सहित बताए सूत्र का अध्ययन करना । यह बताई गई तपस्या और विधि से समग्र सूत्र और अर्थ का अध्ययन करना । जहाँ जहाँ कोई संदेह हो वहाँ वहाँ उस सूत्र को फिर से सोचना । सोचकर निःशंक अवधारण करके निःसंदेह करना। सूत्र- ५९५
इस प्रकार सूत्र, अर्थ और उभय सहित चैत्यवंदन आदि विधान पढ़कर उसके बाद शुभ तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र योग, लग्न और चन्द्रबल का योग हुआ हो उस समय यथाशक्ति जगद्गुरु तीर्थंकर भगवंत को पूजने लायक उपकरण इकटे करके साधु भगवंत को प्रतिलाभी का भक्ति पूर्ण हृदयवाला रोमांचित बनकर पुलकित हए
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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