Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक तब सुमति ने उसे कहा कि, जिस तरह का तू निर्बुद्धि है उसी तरह के वो तीर्थंकर होंगे जिसने तुम्हें इस प्रकार कहा । उसके बाद इस प्रकार बोलनेवाले सुमति के मुख रूपी छिद्र को अपने हस्त से बंध करके नागिल ने उसे कहा कि- जगत के महान गुरु, तीर्थंकर भगवंत की आशातना मत कर । मुझे तुम्हें जो कहना है वो कहो, मैं तुम्हें कोई प्रत्युत्तर नहीं दूंगा । तब सुमति ने उसे कहा कि इस जगत में यह साधु भी यदि कुशील हो तो फिर सुशील साधु कहीं नहीं मिलेंगे । तब नागिल ने कहा कि-सुमति ! यहाँ जगत में अलंघनीय वचनयुक्त भगवंत वचन मान सहित ग्रहण करना चाहिए । आस्तिक आत्मा को उसके वचन में किसी दिन विसंवाद नहीं होता और
की चेष्टा में आदर मत करना क्योंकि जिनेन्द्र वचन अनुसार यकीनन वो कुशील दिखते हैं। ___ उनकी प्रव्रज्या के लिए गंध भी नहीं दिखती । क्योंकि यदि इस साधु के पास दूसरी मुँहपोतिका दिखती है। इसलिए यह साधु ज्यादा परिग्रहता दोष से कुशील है । भगवंत ने हस्त में ज्यादा परिग्रह धारण करने के लिए साधु को आज्ञा नहीं दी। इसलिए हे वत्स ! हीन सत्त्ववाला भी मन से ऐसा अध्यवसाय न करे कि शायद मेरी यह मुँहपोतिका फटकर-तूटकर नष्ट होगी तो दूसरी कहाँ से मिलेगी? वो हीनसत्त्व ऐसा नहीं सोचता कि-अधिक और अनुपयोग से उपधि धारण करने से मेरे परिग्रह व्रत का भंग होगा या क्या संयम में रंगी आत्मा संयम में जरुरी धर्म के उपकरण समान मुँहपत्ति जैसे साधन में सिदाय सही ? जरुर वैसी आत्मा उसमें विषाद न पाए । सचमुच वैसी आत्मा खुद को मैं हीन सत्त्ववाला हूँ, ऐसा प्रगट करता है, उन्मार्ग के आचरण की प्रशंसा करता है । और प्रवचन मलिन करता है । यह सामान्य हकीकत तुम नहीं देख सकते?
इस साधु ने कल बिना वस्त्र की स्त्री के शरीर को रागपूर्वक देखकर उसका चिन्तवन करके उसकी आलोचना प्रतिक्रमण नहीं किए, वो तुम्हें मालूम नहीं क्या ? इस साधु के शरीर पर फोल्ले हुए हैं, उस कारण से विस्मय पानेवाले मुखवाला नहीं देखता । अभी-अभी उसे लोच करने के लिए अपने हाथ से ही बिना दिए भस्म ग्रहण की, तुने भी प्रत्यक्ष वैसा करते हुए उन्हें देखा है । कल संघाटक को सूर्योदय होने से पहले ऐसा कहा किउठो और चलो, हम विहार करें । सूर्योदय हो गया है । वो खुद तुने नहीं सुना ? इसमें जो बड़ा नवदिक्षित है वो बिना उपयोग के सो गया और बिजली अग्निकाय से स्पर्श किया उसे तुने देखा था । उसने संथारा ग्रहण न किया तब सुबह को हरे घास के पहनने के कपड़े के छोर से संघट्टा किया, तब बाहर खुले में पानी का परिभोग किया। बीज-वनस्पतिकाय पर पग चाँपकर चलता था । अविधि से खारी ज़मीन पर चलकर मधुर ज़मीन पर संक्रमण किया । और रास्ते में चलने के बाद साधु ने सौ कदम चलने के बाद इरियावहियं प्रतिक्रमना चाहिए।
उस तरह चलना चाहिए, उस तरह चेष्टा करनी चाहिए, उस तरह बोलना चाहिए, उस तरह शयन करना चाहिए कि जिससे छ काय के जीव को सूक्ष्म या बादर, पर्याप्ता या अपर्याप्ता, आते-जाते सर्व जीव प्राणभूत या सत्त्व को संघट्ट परितापन किलामणा या उपद्रव न हो । इन साधुओं में बताए इन सर्व में से एक भी यहाँ नहीं दिखता । और फिर मुहपतिका पडिलेहण करते हुए उस साधु को मैंने प्रेरणा दी कि वायुकाय का संघट्टा हो वैसे फडफडाट आवाज़ करते हुए पडिलेहणा करते हो । पडिलेहण करने का कारण याद करवाया । जिसका इस तरह के उपयोगवाला जयणायुक्त संयम है । और वो तुम काफी पालन करते हो तो बिना संदेह की बात है कि उसमें तुम ऐसा उपयोग रखते हो ? इस समय तुमने मुजे रोका कि मौन रखो, साधुओं को हमें कुछ कहना न कल्पे । यह हकीकत क्या तूं भूल गया ? इसने सम्यक् स्थानक में से एक भी स्थानक सम्यक् तरह से रक्षण नहीं किया, जिसमें
ह का प्रमाद हो उसे साधु किस तरह कह सकते हैं ? जिनमें इस तरह का निर्ध्वंसपन हो वो साधु नहीं है । हे भद्रमुख ! देख, श्वान समान निर्दय छ काय जीव का यह विराधन करनेवाला हो, तो उसके लिए मुझे क्यों अनुराग हो? या तो श्वान भी अच्छा है कि जिसे अति सूक्ष्म भी नियम व्रत का भंग नहीं होता |
इस नियम का भंग करनेवाला होने से किसके साथ उसकी तुलना कर सके ? इसलिए हे वत्स ! सुमति ! इस तरह के कृत्रिम आचरण से साधु नहीं बन सकते । उनको तीर्थंकर के वचन का स्मरण करनेवाला कौन वंदन करे ? दूसरी बात यह भी ध्यान में रखनी है कि उनके संसर्ग से हमें भी चरण-करण में शिथिलता आ जाए कि
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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