Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक आनन्दित होनेवाले, जीव के वीर्य योग से हर वक्त वृद्धि पानेवाले, हर्षपूर्ण शुद्ध अति निर्मल स्थिर निश्चल अंतःकरण वाले, भूमि पर स्थापन किया हो उस तरह से श्री ऋषभ आदि श्रेष्ठ धर्म तीर्थंकर की प्रतिमा के लिए स्थापन किए नैन और मनवाला उसके लिए एकाग्र बने परिणामवाला आराधक आत्मा शास्त्र के जानकार दृढ़ चारित्रवाले गुण संपत्ति से युक्त गुरु लघुमात्रा सहित शब्द उच्चार करके अनुष्ठान करवाने के अद्वीतिय लक्षवाले गुरु के वचन को बाधा न हो उस तरह जिसके वचन नीकलते हो । विनय आदि सम्मान हर्ष अनुकंपा से प्राप्त हुआ, कईं शोक संताप उद्वेग महाव्याधि का दर्द, घोर दुःख-दारिद्र्य, क्लेश रोग-जन्म, जरा, मरण, गर्भावास आदि समान दुष्ट श्वापद (एक जीव विशेष) और मच्छ से भरपूर भवसागर में नाव समान ऐसे इस समग्र आगम की-शास्त्र की मध्य में व्यवहार करनेवाले, मिथ्यात्व दोष से वध किए गए, विशिष्ट बुद्धि से खुद ने कल्पना किए हुए कुशास्त्र और उस के वचन जिसमें समग्र आशय-दृष्टांत युक्ति से घटीत नहीं होते। इतना ही नहीं लेकिन हेतु, दृष्टांत, युक्ति से कुमतवालों की कल्पीत बातों का विनाश करने के लिए समर्थ हैं। ऐसे पंचमंगल महा श्रुतस्कंधवाले पाँच अध्ययन और एक चुलिकावाले, श्रेष्ठ, प्रवचन देवता से अधिष्ठित, तीन पद युक्त, एक आलापक और सात अक्षर के प्रमाणवाले अनन्त गम-पर्याय अर्थ को बतानेवाले सर्व महामंत्र और श्रेष्ठ विद्या के परम बीज समान ऐसे नमो अरिहंताणं' इस तरह का पहला अध्ययन वांचनापूर्वक पढ़ना चाहिए । उस दिन यानि पाँच उपवास करने के बाद पहले अध्ययन की वांचना लेने के बाद दूसरे दिन आयंबिल तप से पारणा करना चाहिए। उसी प्रकार दूसरे दिन यानि सातवे दिन कईं अतिशय गुण संपदायुक्त आगे बताए गए अर्थ को साधनेवाले कहे क्रम के मुताबिक दो पदयुक्त एक आलापक, पाँच शब्द के प्रमाणवाले ऐसे 'नमो सिद्धाणं' ऐसे दूसरे अध्ययन को पढ़ना चाहिए । उस दिन भी आयंबिल से पच्चक्खाण करना चाहिए। उसी प्रकार पहले बताए हुए क्रम अनुसार पहले कहे अर्थ की साधना करनेवाले तीन पदयुक्त एक आलापक, सात शब्द के प्रमाणवाले 'नमो आयरियाणं' ऐसे तीसरे अध्ययन का पठन करना और आयंबिल करना। आगे बताए अर्थ साधनेवाले तीन पदयुक्त एक आलापक और सात शब्द के प्रमाणवाला नमो उवज्झायाणं ऐसे चौथे अध्ययन का पठन करना । आयंबिल करना । उसी प्रकार चार पदयुक्त एक आलापक और नौ अक्षर प्रमाणवाला 'नमो लोए सव्वसाहूणं' ऐसे पाँचवे अध्ययन की वाचना लेकर पढ़ना और वो पाँचवे दिन यानि कुल दशवें दिन आयंबिल करना। उसी प्रकार उसके अर्थ को अनुसरण करनेवाले ग्यारह पदयुक्त तीन आलापक और तैंतीस अक्षर प्रमाण वाली ऐसी चुलिका समान ऐसो पंच नमोक्कारो, सव्व पावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं तीन दिन एक एक पद की वाचना ग्रहण करके, छठे, सातवे, आठवे दिन उसी क्रम से और विभाग से आयंबिल तप करके पठन करना । उसी प्रकार यह पाँच मंगल महा श्रुतस्कंध स्वर, वर्ण, पद सहित, पद अक्षर बिन्दु मात्रा से विशुद्ध बड़े गुणवाले, गुरु ने उपदेश दिए हुए, वाचना दिए हुए ऐसे उसे समग्र ओर से इस तरह पढ़कर तैयार करो कि जिससे पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी अनानुपूर्वी वो ज़बान के अग्र हिस्से पर अच्छी तरह से याद रह जाए। उसके बाद आगे बताए अनुसार तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न, चन्द्रबल के शुभ समय जन्तुरहित ऐसे चैत्यालय-जिनालय के स्थान में क्रमसर आए हुए, अठ्ठम तप सहित समुद्देश अनुज्ञा विधि करवाके हे गौतम ! बड़े प्रबन्ध आडम्बर सहित अति स्पष्ट वाचना सूनकर उसे अच्छी तरह से अवधारण करना चाहिए । यह विधि से पंचमंगल के विनय उपधान करने चाहिए। सूत्र - ४९४ हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 41

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