Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक वैसे को हीन सत्त्ववाले या सत्पुरुष को या दूसरे किसी भी निन्दित अधम हीन जातिवाले पुरुष को काम के अभिप्राय से भय पानेवाली सिकुड़कर आमंत्रित करके बुलाती है ऐसे संख्याता भेदवाले रागयुक्त स्वर और कटाक्षवाली नजर से उस पुरुष को बुलाती है, उसका राग से निरीक्षण करती है।
उस वक्त नारकी और तिर्यंच दोनों गति को उचित असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी करोड़ लाख साल या कालचक्र प्रमाण की उत्कृष्ट-दशावाले पापकर्म उपार्जन करे यानि कर्म बाँधे, लेकिन कर्मबँध स्पृष्ट न करे । अब वो जिस वक्त पुरुष के शरीर के अवयव को छूने के लिए सन्मुख हो, लेकिन अभी स्पर्श नहीं किया उस वक्त कर्म की दशा बद्ध स्पृष्ट करे । लेकिन बद्ध स्पष्ट निकाचित न करे। सूत्र - ३८८
हे गौतम ! अब ऐसे वक्त में जो पुरुष संयोग के आधीन होकर उस स्त्री का योग करे और स्त्री के आधीन होकर काम सेवन करे वो अधन्य है । संयोग करना या न करना पुरुष आधीन है। इसलिए जो उत्तम पुरुष संयोग को आधीन न हो वो धन्य है। सूत्र - ३८९
हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहलाता है कि जो पुरुष उस स्त्री के साथ योग न करे वो धन्य और योग करे वो अधन्य? हे गौतम ! बद्धस्पृष्ट-कर्म की अवस्था तक पहुँची हुई वो पापी स्त्री पुरुष का साथ प्राप्त हो तो वो कर्म निकाचितपन में बदले, यानि बद्धस्पृष्ट निकाचित कर्म से बेचारी उस तरह के अध्यवसाय पाकर उसकी आत्मा पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय स्थावरपन में अनन्तकाल तक परिभ्रमण करे लेकिन दो इन्द्रियपन न पाए । उस प्रकार महा मुश्किल से कईं क्लेश सहकर अनन्ता काल तक एकेन्द्रियपन की भवदशा भुगतकर एकेन्द्रियपन का कर्म खपाते हैं और कर्म करके दो-तीन और चार इन्द्रियपन क्लेश से भुगतकर पंचेन्द्रिय में मनुष्यत्व में शायद आ जाए तो भी बदनसीब स्त्रीरूप को प्राप्त करनेवाला होता है।
नपुंसक रूप से उत्पन्न हो । और फिर तिर्यंचपन में बेशूमार वेदना भुगतना पड़ता । हमेशा हाहाकार करनेवाले जहाँ कोई शरणभूत नहीं होता । सपने में भी सुख की छाँव जिस गति में देखने को नहीं मिलता । हमेशा संताप भुगतते हुए और उद्वेग पानेवाले रिश्तेदार स्वजन बंधु आदि से रहित जन्मपर्यन्त कुत्सनीय, गर्हणीय, निन्दनीय, तिरस्करणीय ऐसे कर्म करके कईं लोगों की तारीफ करके सेंकड़ों मीठे वचन से बिनती करके उन लोगों के पराभव के वचन सूनकर मुश्किल से उदर पोषण करते करते चारों गति में भटकना पड़ता है।
हे गौतम ! दूसरी बात यह समझो कि जिस पापी स्त्री ने बद्ध, स्पृष्ट और निकाचित कर्मदशा उपार्जन करके उस स्त्री की अभिलाषा करनेवाला पुरुष भी उतनी ही नहीं लेकिन उसके हालात से भी उत्कृष्ट या उत्कृष्टतम ऐसी अनन्त कर्मदशा उपार्जन करे और एसे बद्ध स्पृष्ट और निकाचित करे, इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि जो पुरुष उसका संग नहीं करता वो धन्य है और संग करता है वो अधन्य है। सूत्र-३९०
हे भगवंत ! कितनी तरह के पुरुष हैं जिससे आप इस प्रकार कहते हो ? हे गौतम ! पुरुष छ तरह के बताए हैं वो इस प्रकार -१. अधमाधम, २. अधम, ३. विमध्यम, ४. उत्तम, ५. उत्तमोत्तम, ६. सर्वोत्तम । सूत्र - ३९१
उसमें जिसे सर्वोत्तम पुरुष कहा, वो जिस के पाँव अंग उत्तम रूप लावण्य युक्त हो, नवयौवन वय पाया हो, उत्तम रूप लावण्य कान्ति युक्त ऐसी स्त्री मजबूरी से भी अपनी गोद में सो साल तक बिठाकर कामचेष्टा करे तो भी वो पुरुष उस स्त्री की अभिलाषा न करे । और फिर जो उत्तमोत्तम पुरुष बताए वो खुद स्त्री की अभिलाषा न करे । लेकिन शायद अल्प मन से केवल एक समय की अभिलाषा करे लेकिन दूसरे ही पल मन को रोककर अपने आत्मा की निन्दा गर्हणा करे, लेकिन दूसरी बार उस जन्ममें स्त्री की मन से भी अभिलाषा न करे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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