Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 29
________________ आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ' अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३९२ और फिर जो उत्तमोत्तम तरह के पुरुष हो वो अभिलाषा करनेवाली स्त्री को देखकर पलभर या मुहूर्त तक देखकर मन से उसकी अभिलाषा करे, लेकिन पहोर या अर्ध पहोर तक उस स्त्री के साथ अनुचित कर्मसेवन न करे। सूत्र-३९३ यदि वो पुरुष ब्रह्मचारी या अभिग्रह प्रत्याख्यान किया हो । या ब्रह्मचारी न हो या अभिग्रह प्रत्याख्यान किए न हो तो अपनी पत्नी के विषय में भजना-विकल्प समझने के कामभोग में तीव्र अभिलाषावाला न हो । हे गौतम ! इस पुरुष को कर्म का बंध हो लेकिन वो अनन्त संसार में घूमने के उचित कर्म न बाँधे । सूत्र-३९४ और फिर जो विमध्यम तरह के पुरुष हो वो अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार कर्म का सेवन करे लेकिन पराई स्त्री के साथ वैसे अनुचित कर्म का सेवन न करे । लेकिन पराई स्त्री के साथ ऐसा पुरुष यदि पीछे से उग्र ब्रह्मचारी न हो तो अध्यवसाय विशेष अनन्त संसारी बने या न बने । अनन्त संसारी कौन न बने ? तो कहते हैं कि उस तरह क भव्य आत्मा जीवादिक नौ तत्त्व को जाननेवाला हआ हो । आगम आदि शास्त्र के मुताबिक उत्तम साधु भगवंत को धर्म में उपकार करनेवाला, आहारादिक का दान देनेवाला, दान, शील, तप और भावना समान चार तरह के धर्म का यथाशक्ति अनुष्ठान करता हो । किसी भी तरह चाहे कैसी भी मुसीबत में भी ग्रहण किए गए नियम और व्रत का भंग न करे तो शाता भुगतते हुए परम्परा में उत्तम मानवता या उत्तम देवपन और फिर सम्यक् त्व से प्रतिपतित हुए बिना निसर्ग सम्यक्त्व हो या-अभिगमिक सम्यक्त्व द्वारा उत्तरोत्तर अठारह हजार शीलांग धारण करनेवाला होकर आश्रवद्वार बन्ध करके कर्मरज और पापमल रहित होकर पापकर्म खपाकर सिद्धगति पाए। सूत्र - ३९५ जो अधम पुरुष हो वो अपनी या पराई स्त्री में आसक्त मनवाला हो । हरएक वक्त में क्रूर परिणाम जिसके चित्त में चलता हो आरम्भ और परिग्रहादिक के लिए तल्लीन मनवाला हो । और फिर जो अधमाधम पुरुष हो वो महापाप कर्म करनेवाले सर्व स्त्री की मन, वचन, काया से त्रिविध त्रिविध से प्रत्येक समय अभिलाषा करे । और अति क्रूर अध्यवसाय से परिणमित चित्तवाला आरम्भ परिग्रह में आसक्त होकर अपना आयुकाल गमन करता है। इस प्रकार अधम और अधमाधम दोनों का अनन्त संसारीपन समझो। सूत्र-३९६ हे भगवंत ! जो अधम और अधमाधम पुरुष दोनों का एक समान अनन्त संसारी इस तरह बताया तो एक अधम और अधमाधम उसमें फर्क कौन-सा समझे? हे गौतम ! जो अधम पुरुष अपनी या पराई स्त्री में आसक्त मनवाला क्रूर-परिणामवाले चित्तवाला आरम्भ परिग्रह में लीन होने के बावजूद भी दीक्षित साध्वी और शील संरक्षण करने की ईच्छावाली हो । पौषध, उपवास, व्रत, प्रत्याख्यान करने में उद्यमवाली दुःखी गृहस्थ स्त्रीओं के सहवास में आ गए हो वो अनुचित अतिचार की माँग करे, प्रेरणा करे, आमंत्रित करे, प्रार्थना करे तो भी कामवश होकर उसके साथ दुराचार का सेवन न करे। लेकिन जो अधमाधम पुरुष हो अपनी माँ-भगिनी आदि यावत् दीक्षित साध्वी के साथ भी शारीरिक अनुचित अनाचार सेवन करे । उस कारण से उसे महापाप करनेवाला अधमाधम पुरुष कहा । हे गौतम ! इन दोनों में इतना फर्क है ।और फिर जो अधम पुरुष हैं वो अनन्त काल से बोधि प्राप्त कर सकता है । लेकिन महापाप कर्म करनेवाला दीक्षित साध्वी के साथ भी कुकर्म करनेवाले अधमाधम पुरुष अनन्ती बार अनन्त संसार में घूमे तो भी बोधि पाने के लिए अधिकारी नहीं बन सकता । यह दुःसम भेद मानो । मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 29

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