Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ३९७
- इन छ पुरुष में सर्वोत्तम पुरुष उसे मानो कि जो छद्मस्थ वीतरागपन पाया हो जिसे उत्तमोत्तम पुरुष बताए हैं वो उन्हें जानना कि जो ऋद्धि रहित इत्यादि से लेकर उपशामक और क्षपक मुनिवर हो । और फिर उत्तम उन्हें मानो कि जो अप्रमत्त मुनिवर हो इस प्रकार इन पुरुष की निरुपणा करना। सूत्र- ३९८
और फिर जो मिथ्यादृष्टि होकर उग्र ब्रह्मचर्य धारण करनेवाला हो हिंसा-आरम्भ परिग्रह का त्याग करनेवाला वो मिथ्यादृष्टि ही है, सम्यक्दृष्टि नहीं । उनको जीवादिक नौ तत्त्व के सद्भाव का ज्ञान नहीं होता वो उत्तम चीज मोक्ष का अभिनन्दन या प्रशंसा नहीं करते, वो ब्रह्मचर्य हिंसा आदि पाप का परिहार करके उस धर्म के बदले में आगे के भव के लिए तप ब्रह्मचर्य के बदले में नियाणा करके देवांगना पाए उतने ब्रह्मचर्य से भ्रष्ट बने संसार के पौद्गलिक सुख पाने की ईच्छा से नियाणा करे । सूत्र-३९९
विमध्यम पुरुष उसे कहते हैं कि जो उस तरह का अध्यवसाय अंगीकार करके श्रावक के व्रत अपनाए हो । सूत्र-४००
और जो अधम और अधमाधम वो जिस तरह एकान्तमें स्त्रीयों के लिए कहा उस तरह कर्मस्थिति उपार्जन करे । केवल पुरुष के लिए इतना विशेष समझो कि पुरुष को स्त्री के राग उत्पन्न करवानेवाले स्तन-मुख ऊपर के हिस्से के अवयव योनि आदि अंग पर अधिकतर राग उत्पन्न होता है । इस प्रकार पुरुष के छ तरीके बताए। सूत्र-४०१
हे गौतम ! कुछ स्त्री भव्य और दृढ़ सम्यक्त्ववाली होती है। उनकी उत्तमता सोचे तो सर्वोत्तम ऐसे पुरुष की कक्षा में आ सकते हैं। लेकिन सभी स्त्री वैसी नहीं होती। सूत्र-४०२
हे गौतम ! उसी तरह जिस स्त्री को तीन काल पुरुष संयोग की प्राप्ति नहीं हुई । पुरुष संयोग संप्राप्ति स्वाधीन होने के बावजूद भी तेरहवे-चौदहवे, पंद्रहवे समय में भी पुरुष के साथ मिलाप न हुआ । यानि संभोग कार्य आचरण न किया । तो जिस तरह कईं काष्ठ लकड़े, ईंधण से भरे किसी गाँव, नगर या अरण्य में अग्नि फैल उठा और उस वक्त प्रचंड पवन फेंका गया तो अग्नि विशेष प्रदीप्त हआ। जला-जलाकर लम्बे अरसे के बाद वो अग्नि अपने-आप बुझकर शान्त हो जाए । उस प्रकार हे गौतम ! स्त्री का कामाग्नि प्रदीप्त होकर वृद्धि पाते हैं । लेकिन चौथे वक्त शान्त हो उस मुताबिक इक्कीसवे, बाईसवे यावत् सत्ताईसवे समय में शान्त बने, जिस तरह दीए की शिखा अदृश्य दिखे लेकिन फिर तेल डालने से अगर अपने आप अगर उस तरह के चूर्ण के योग से वापस प्रकट होकर चलायमान होकर जलने लगे । उसी तरह स्त्री भी पुरुष के दर्शन से या पुरुष के साथ बातचीत करने से उसके आकर्षण से, मद से, कंदर्प से उसके कामाग्नि से सतेज होती है। फिर से भी जागृत होती है। सूत्र-४०३
हे गौतम ! ऐसे वक्त यदि वो स्त्री भय से, लज्जा से, कुल के कलंक के दोष से, धर्म की श्रद्धा से, काम का दर्द सह ले और असभ्य आचरण सेवन न करे वो स्त्री धन्य है । पुन्यवंती है, वंदनीय है । पूज्य है । दर्शनीय है, सर्व लक्षणवाली है, सर्व कल्याण साधनेवाली है। सर्वोत्तम मंगल की नीधि है । वो श्रुत देवता है, सरस्वती है। पवित्र देवी है; अच्युता देवी है, इन्द्राणी है, परमपवित्रा उत्तमा है । सिद्धि मुक्ति शाश्वत शिवगति नाम से संबोधन लायक है सूत्र -४०४
यदि वो स्त्री वेदना न सहे और अकार्याचरण करे तो वो स्त्री, अधन्या, अपुण्यवंती, अवंदनीय, अपूज्य, न देखने लायक, बिना लक्षण के तूटे हुए भाग्यवाली, सर्व अमंगल और अकल्याण के कारणवाली, शीलभ्रष्टा,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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