Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक तरह धर्म का स्पर्श नहीं होता वैसे उनका संकल्प करनेवाले को धर्म नहीं छूता । चारित्र में स्खलना हुई हो तो स्त्री के संकल्पवाले को आलोचना, निंदा, गर्दा प्रायश्चित्त करने का अध्यवसाय नहीं होता । आलोचना आदि न करने के कारण से अनन्तकाल तक दुःख समूहवाले संसार में घूमना पड़ता है । प्रायश्चित्त की विशुद्धि के होने के बावजूद भी फिर से उनके संसर्ग में आने से असंयम की प्रवृत्ति करनी पड़ती है । महापाप कर्म के ढ़ग समान साक्षात् हिंसा पिशाचिणी समान, समग्र तीन लोक से नफरत पाई हुई । परलोक के बड़े नुकसान को न देखनेवाले, घोर अंधकार पूर्ण नरकावास समान हमेशा कईं दुःख के निधान समान । स्त्री के अंग उपांग मर्मस्थान या उसका रूप लावण्य, उसकी मीठी बोली या कामराग की वृद्धि करनेवाला उसके दर्शन का अध्यवसाय भी न करना । सूत्र-४०८
हे गौतम ! यह स्त्री प्रलयकाल की रात की तरह जिस तरह हमेशा अज्ञान अंधकार से लिपीत है । बीजली की तरह पलभर में दिखते ही नष्ट होने के स्नेह स्वभाववाली होती है । शरण में आनेवाले का घात करनेवाले लोगों की तरह तत्काल जन्म दिए बच्चे के जीव का ही भक्षण करनेवाले समान महापाप करनेवाली स्त्री होती है, सज्जक पवन के योग से चूंघवाते उछलते लवणसमुद्र के लहर समान कई तरह के विकल्प-तरंग की श्रेणी की तरह जैसे एक स्थान में एक स्वामी के लिए स्थिर मन करके न रहनेवाली स्त्री होती है । स्वयंभूरमण समुद्र काफी गहरा होने से उसे अवगाहन करना अति कठिन होता है। वैसे स्त्री के दिल अति छल से भरे होते हैं। जिससे उसके दिल को पहचानना काफी मुश्किल है । स्त्री पवन समान चंचल स्वभाववाली होती है, अग्नि की तरह सबका भक्षण
वाला स्त्री होती है, चार की तरह पराई चीज पाने की लालसावाली होती है। कुत्ते को रोटी का टुकड़ा दे उतने वक्त दोस्त बन जाए । उसकी तरह जब तक उसे अर्थ दो तब तक मैत्री रखनेवाली यानि सर्वस्व हड़प करनेवाली और फिर बैरिणी होती है । मत्स्य लहरों में इकट्ठे हो, किनारे पर अलग हो जाए, उसके पास हो तब तक स्नेह रखनेवाली, दूर जाने के बाद भूल जानेवाली होती है । इस तरह कईं लाख दोष से भरपूर ऐसे सर्व अंग और उपांगवाली बाह्य और अभ्यंतर महापाप करनेवाली अविनय समान । विष की वेलडी, अविनय के कारण से अनर्थ समूह के उत्पन्न करनेवाली स्त्री होती है।
जिस स्त्री के शरीर से हमेशा नीकलते बदबूवाले अशुचि सड़े हुए कुत्सनीय, निन्दनीय, नफरत के लायक सर्व अंग उपांगवाली और फिर परमार्थ से सोचा जाए तो उसके भीतर और बाहर के शरीर के अवयव से ज्ञात महासत्त्ववाली कामदेव से ऊंबनेवाले और वैराग्य पाकर आत्मा से ज्ञात, सर्वोत्तम और उत्तम पुरुष को और धर्माधर्म का रूप अच्छी तरह से समजे हो उनको वैसी स्त्री के लिए पलभर भी कैसे अभिलाषा हो ? सूत्र-४०९-४१०
जिसकी अभिलाषा पुरुष करता है, उस स्त्री की योनि में पुरुष के एक संयोग के समय नौ लाख पंचेन्द्रिय संमूर्छिम जीव नष्ट होते हैं । वो जीव अति सूक्ष्म स्वरूप होने से चर्मचक्षु से नहीं देख सकते । इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि स्त्री के साथ एक बार या बार बार बोलचाल न करना । और फिर उसके अंग या उपांग रागपूर्वक निरीक्षण न करना । यावत् ब्रह्मचारी पुरुष को मार्ग में स्त्री के साथ गमन नहीं करना । सूत्र-४११
हे भगवंत ! स्त्री के साथ बातचीत न करना, अंगोपांग न देखना या मैथुन सेवन का त्याग करना ? हे गौतम! दोनों का त्याग करो । हे भगवंत ! क्या स्त्री का समागम करने समान मैथुन का त्याग करना या कई तरह के सचित्त अचित्त चीज विषयक मैथुन का परिणाम मन, वचन, काया से त्रिविध से सर्वथा यावज्जीवन त्याग करे ? हे गौतम ! उसे सर्व तरीके से त्याग करो। सूत्र -४१२
हे भगवंत ! जो कोई साधु-साध्वी मैथुन सेवन करे वो दूसरों के पास वन्दन करवाए क्या ?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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