Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक हए पापशल्य के दोष से तिर्यंचपन में उत्पन्न हो तो भी महामत्स्य, हिंसक पंछी, साँढ़ जैसे बैल, शेर आदि के भव पाए । वहाँ भी अति क्रूरतर परिणाम विशेष से माँसाहार, पंचेन्द्रिय जीव का वध आदि पापकर्म करने के कारण से गहरा उतरता जाए कि सातवीं नरकी तक भी पहुँच जाए। सूत्र-३१४-३१५
वहाँ लम्बे अरसे तक उस तरह के महाघोर दुःख का अहसास करके फिर से क्रूरतिर्यंच के भव में पैदा होकर क्रूर पापकर्म करके वापस नारकी में जाए इस तरह नरक और तिर्यंच गति के भव का बारी-बारी परावर्तन करते हुए कई तरह के महादुःख का अहसास करते हु हुए के जो दुःख हैं उनका वर्णन करोड़ साल बाद भी कहने के लिए शक्तिमान न हो सके। सूत्र-३१६-३१८
उसके बाद गधे, ऊंट, बैल आदि के भव-भवान्तर करते हुए गाड़ी का बोज उठाना, भारवहन करना, कीलकयुक्त लकड़ी के मार का दर्द सहना, कीचड़ में पाँव फँस जाए वैसे हालात में बोझ उठाना । गर्मी, ठंडी, बारीस के दुःख सहना, वध बँधन, अंकन-निशानी करने के लिए कान-नाक छेदन, निल्छन, डाम सहना, घुसरी में जुड़कर साथ चलना, परोणी, चाबूक, अंकुश आदि से मार खाने से लगातार भयानक दुःख जैसा रात को ऐसा दिन में ऐसे सर्वकाल जीवन पर्यन्त दुःख सहना यह और उसके जैसे दूसरे कईं दुःखसमूह को चीरकाल पर्यन्त महसूस करके दुःख से पीड़ित आर्तध्यान करते हुए महा मुश्किल से प्राण का त्याग करता है। सूत्र - ३१९-३२३
और फिर वैसे किसी शुभ अध्यवसाय विशेष से किसी भी तरह मनुष्यत्व पाए लेकिन अभी पूर्व किए गए शल्य के दोष से मनुष्य में आने के बाद भी जन्म से ही दरिद्र के वहाँ उत्पन्न होता है। वहाँ व्याधि, खस, खजली आदि रोग से घिरे हए रहता है और सब लोग उसे न देखने में कल्याण मानते हैं । यहाँ लोगों की लक्ष्मी हड़प लेने की दृढ़ मनोभावना से दिल में जलता रहता है । जन्म सफल किए बिना वापस मर जाए अध्यवसाय विशेष को आश्रित करके वैसे पृथ्वी आदि स्थावरकाय में घूमे या तो दो, तीन, चार, पाँच इन्द्रियवाले भव में उस तरह का अति रौद्र घोर भयानक महादुःख भुगतते हुए चारों गति समान संसार अटवी में दुःसह दर्द सहते हुए (हे गौतम !) वो जीव सर्प योनि में भव और काय दशा खपाते हुए घूमता रहता है। सूत्र-३२४
जो आगे एक बार पूर्वभव में शल्य या पाप दोष का सेवन किया था, उस कारण से चारों गति में भ्रमण करते हुए और हर एक भव में जन्मधारण, अनेक व्याधि, दर्द, रोग, शोक, दरिद्रता, क्लेश, झूठे कलंक पाना, गर्भावास आदि के दुःख समान अग्नि में जलनेवाला बेचारा ''क्या नहीं पा सकता'' वो बताता है । निर्वाण गमन उचित आनन्द महोत्सव स्वरूप सामर्थ्ययोग, मोक्ष दिलानेवाला अठारह हजार शीलांग रथ और सर्व पापराशि एवं आठ तरह के कर्म के विनाश के लिए समर्थ ऐसे अहिंसा के लक्षणवाला वीतराग सर्वज्ञकथित धर्म और बोधिसम्यक्त्व नहीं पा सकता। सूत्र- ३२५-३२७
परिणाम विशेष को आश्रित करके कोई आत्मा लाख पुद्गल परिवर्तन के लम्बे अरसे के बाद महा मुसीबत से बोधि प्राप्त करे । ऐसा अति दुर्लभ सर्व दुःख का क्षय करनेवाला बोधि रत्न प्राप्त करके जो कोई प्रमाद करे वो फिर से इस तरह के पहले बताए उस योनि में उसी क्रम में उसी मार्ग में जाते हैं और वैसे ही दुःख पाते हैं। सूत्र - ३२८-३२९
उस प्रकार सर्व पुद्गल के सर्व पर्याय सर्व वर्णान्तर सर्व गंधरूप से, रसरूप से, स्पर्शपन से, संस्थानपन से अपनी शरीररूप में, परिणाम पाए, भवस्थिति और कायस्थिति के सर्वभाव लोक के लिए परिणामान्तर पाए, उतने
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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