Book Title: Agam 39 Mahanishith Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ३९, छेदसूत्र-५, 'महानिशीथ'
अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक कुंथुआ के सर्व अंग केवल छूने से उसे भीतर और बाहर भारी पीड़ा होती है । उस के शरीर में कंपारी होने लगे, वो पराधीन वाचा रहित होने से वेदना नहीं बता सकते । लेकिन भारा हुआ अग्नि सुलगे वैसे उसका मानसिक और शारीरिक दुःख अतिशय होता है । सोचते हैं कि यह क्या है ? मुझे यह भारी दर्द देनेवाला दुःख प्राप्त हुआ है, लम्बे उष्ण निसाँसे लेते हैं । यह दुःख का अन्त कब होगा ? कब छूटकारा मिलेगा ? इस दुःखसंकट से मुक्त होने के लिए क्या करूँ? कहाँ भाग जाऊं? क्या करूँ कि जिससे दुःख दूर हो और सुख मिले? या क्या आच्छादन करूँ? क्या पथ्य करूँ? ऐसे तीन कक्षाके व्यापारके कारण तीव्र महादुःखके संकटमें आकर फँसा हूँ, संख्याती आवलिका तक मैं क्लेशानुभव भूगतुं, समझता हूँ कि यह मुझे खुजली आई है, किसी तरह यह खुजली शान्त नहीं होगी। सूत्र - २६३-२६५
___ यह अध्यवसायवाला मानव अब क्या करता है वो हे गौतम ! तुम सूनो अब यदि उस कुंथु का जीव कहीं ओर चला गया न होता तो वो खुजली खुजलाते खुजलाते उस कुंथु के जीव को मार डालते हैं । या दीवार के साथ अपने शरीर को घिसे यानि कुंथु का जीव क्लेश पाए यावत् मौत हो, मरते हुए कुंथुआ पर खुजलाते हुए वो मानव निश्चय से अति रौद्र ध्यान में पड़ा है । ऐसा समझो यदि वो मानव आर्त्त और रौद्र के स्वरूप को जाननेवाला हो तो ऐसा खुजलानेवाला शुद्ध आर्तध्यान करनेवाला है ऐसे समझो।। सूत्र-२६६
उसमें ही रौद्रध्यान में वर्तता हो वो उत्कृष्ट नरकायुष बाँधे और आर्त ध्यानवाला दुर्भगपन, स्त्रीपन, नापुरुषपन और तिर्यंचपन उपार्जन करे। सूत्र - २६७-२६९
कुंथुआ के पाँव के स्पर्श से उत्पन्न हुई खुजली से मुक्त होने की अभिलाषावाला बेचैन मानव फिर जो अवस्था पाता है वो कहते हैं । लावण्य चला गया है ऐसा अतिदीन, शोकमग्न, उद्वेगवाला, शून्य मनवाला, त्रस्त, मूढ़, दुःख से परेशान, धीमे, लम्बे निःसासे छोड़नेवाला, चित्त से आकुल, अविश्रांत दुःख के कारण से अशुभ तिर्यंच और नारकी के उचित कर्म बाँधकर भव परम्परा में भ्रमण करेगा। सूत्र - २७०
इस प्रकार कर्म को क्षयोपशम से कुंथुआ के निमित्त से उत्पन्न हुए दुःख को किसी तरह से आत्मा को मजबूत बनाकर यदि पलभर समभाव पाए और कुंथु जीव कोन खुजलाए वो महाक्लेश के पार हुआ समझो। सूत्र-२७१-२७५
शरण रहित उस जीव को क्लेश न देकर सुखी किया, इसलिए अति हर्ष पाए । और स्वस्थ चित्तवाला होकर सोचे-माने कि यदि एक जीव को अभयदान दिया और फिर सोचने लगे कि अब मैं निवृत्ति-शांति प्राप्त हुआ। खुजलाने से उत्पन्न होनेवाला पापकर्म दुःख को भी मैंने नष्ट किया । खुजलाने से और उस जीव की विराधना होने से मैं अपनेआप नहीं जान सकता कि मैं रौद्र ध्यान में जाता या आर्त ध्यान में जाता ? रौद्र और आर्त ध्यान से उस दुःख का वर्ग गुणांक करने से अनन्तानन्त दुःख तक पहुँच जाए । एक वक्त के भी आंतरा रहित सतत जैसा दिन को ऐसा रात को लगातार दुःख भुगतते हुए मुझे बीच में थोड़ी शान्ति भी न मिल सके, नरक और तिर्यंच गति में ऐसा दुःख सागरोपम के और असंख्यातकाल तक भुगतना पड़े और उस वक्त हृदय रसरूप होकर दुःखरूप अग्नि से जैसे पीगल जाता हो ऐसा अहसास करे । सूत्र - २७६
कुंथुआ को छूकर उपार्जन किए दुःख भुगतने के वक्त मन में ऐसा सोचे कि यह दुःख न हो तो सुन्दर, लेकिन उस वक्त चिंतवन करना चाहिए कि इस कुंथु के स्पर्श से उत्पन्न होनेवाली खुजली का दुःख मुझे कौन-से हिसाब में गिने जाए?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (महानिशीथ) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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