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आमुख
प्रस्तुत आगम का प्रतिपाद्य है ज्ञान । इससे पूर्व ४४ गाथाएं हैं। किसी भी आगम के प्रारंभ में स्थविरावलि का आलेख नहीं है । यदि जीवाजीवाभिगम आदि आगमों में इस प्रकार स्थविरावलि का विन्यास होता तो ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान सामग्री बन जाती। आगमकार ने अपने गुरु दूष्यगणी का उल्लेख किया है। अपना नाम निर्देश नहीं किया है। स्थविरावलि में केवल नामोल्लेख नहीं है। कुछ ऐतिहासिक उल्लेख भी है। उदाहरण के लिए 'तिसमुद्दखायकित्ति'-यह आर्य समुद्र की विदेश यात्रा का सूचक है।' २८वीं गाथा में आर्य मंगु और ३०वी गाथा में आर्य नागहस्ति का उल्लेख है। इनका दिगम्बर परम्परा में भी उल्लेख मिलता है । नागहस्ति कर्मप्रकृति के ज्ञाता थे। (द्रष्टव्य नागहस्ति और मंगु का टिप्पण)
वाचकवंश--यह जैन परम्परा में पूर्वो के अध्ययन-अध्यापन में रत श्रेणी का सूचक है । ब्रह्मद्वीपक-ब्रह्मद्वीप से उत्पन्न शाखा का सूचक है। ३३वीं गाथा स्कन्दिलाचार्य के नेतृत्व में होनेवाली वाचना की सूचक है। आज भी वह वाचना चल रही है। इस वाक्यांश का स्पष्ट संकेत है कि अभी माथुरी वाचना ही प्रमुख रूप से प्रचलित है। ३६वीं गाथा में नागार्जुन की वाचना का स्पष्ट संकेत मिलता है जैसा ३५वीं गाथा में अनुयोग के प्रचलन का स्पष्ट उल्लेख है वैसा स्पष्ट उल्लेख प्रस्तुत गाथा (३६ वीं) में नहीं है।
किन्तु 'ओहसुयसमायारे' इस पद से वाचना का संकेत मिलता है (द्रष्टव्य 'ओहसुयसमायारे' का टिप्पण)। सूत्रकार ने उस समय के विद्यमान सभी आनुयोगिकों को नमस्कार कर श्रुत के प्रति विशिष्ट भक्ति का निदर्शन किया है।
स्थविरावलि की गाथाओं के अनेक रूप मिलते हैं१७वीं गाथा के पश्चात् --
गुणरयणुज्जलकडयं, सीलसुगंधितवमंडिउद्देसं । सुयवारसंगसिहरं, संघमहामंदरं वंदे ॥ नगररहचक्कपउमे, चंदे सूरे समुद्दमेरुम्मि ।
जो उवमिज्जइ सययं, तं संघगुणायरं वंदे ॥ २८वीं गाथा के पश्चात्
वंदामि अज्जधम्म, तत्तो वंदे य भद्दगुत्तं च । ततो य अज्जवइरं, तवनियमगुणेहिं वइरसमं ।। वंदामि अज्जरक्खियखमणे रक्खियचरित्तसव्वस्से ।
रयणकरंडभूओ, अणुओगो रक्खिओ जेहिं । ३६वीं गाथा के पश्चात्--
गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिदाणं । णिच्चं खंतिदयाणं, परूवणे दुलभिदाणं ॥ तत्तो य भूयदिन्नं, निच्चं तवसंजमे अनिविण्णं ।
पंडियजणसामण्णं, वंदामि संजमविहण्ण ॥ ४१वीं गाथा के पश्चात्
तवनियमसच्चसंजम, विणयज्जवखंतिमद्दवरयाणं । सीलगुणगद्दियाणं, अणुओगजुगप्पहाणाणं॥
१. नवसुत्ताणि, नंदी, गा० ४१,४२ २. वही, गा० २७ ३. वही, गा०३०,३१,३२ ४. वही, गा० ३२
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