Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 196
________________ प्र० ५, सू०८०-६१, टि० ४ १७१ ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति प्रस्तुत आगम में जीव, अजीव, लोक, अलोक आदि की व्याख्या की गई है। उसके दोनों प्रकार उपलब्ध हैं१. गौतम आदि के द्वारा पूछे जाने पर तत्त्व की व्याख्या की गई है। २. किसी प्रश्न के बिना व्याख्येय तत्त्व की व्याख्या की गई है। धवला और जयधवला के अनुसार-क्या जीव है ? क्या जीव नहीं है ? इत्यादि ६० हजार प्रश्नों के उत्तरों तथा छिन्नछेद नयों से ज्ञापनीय ९६ हजार शुभ और अशुभ का वर्णन है।' प्रस्तुत प्रकरण में अध्ययन शत का प्रयोग मिलता है। वर्तमान में अध्ययन के स्थान पर शतक का प्रयोग मिलता है। ६. ज्ञातधर्मकथा णायाधम्मकहा- इसमें दो शब्द हैं-ज्ञात और धर्मकथा। चूर्णिकार ने ज्ञात का अर्थ आहरण अथवा दृष्टान्त किया है और धर्मकथा का धार्मिक कथा।' प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन हैं, वे ज्ञात शैली में रचित हैं। दूसरे श्रुतस्कन्ध में धर्मकथा के दश वर्ग हैं । उनमें साढ़े तीन करोड़ कथाएं हैं।' आधुनिक लेखकों ने 'ज्ञातधर्मकथा' के लिए 'ज्ञातृधर्मकथा' लिखा है, उसका अर्थ ज्ञातृपुत्र भगवान् महावीर की धर्मकथा किया है । यह समीचीन नहीं है। दिगम्बर साहित्य में ‘णायाधम्मकहा' के स्थान पर णाहधम्मकहा अथवा गाहाधम्मकहा मिलता है।' चुणिकार ने प्रस्तुत आगम की व्याख्या में पद की व्याख्या की है। पद के पांच प्रकार हैं१. उपसर्ग पद २. निपात पद ३. नामिक पद ४. आख्यात पद ५. मिश्र पद। पद का वैकल्पिक अर्थ किया है सूत्र का आलापक । अनुयोगद्वार में निर्दिष्ट नाम के पांच प्रकार तुलनीय हैं।' आचाराङ्ग से लेकर भगवती तक पद परिमाण का निर्देश है और ज्ञातधर्मकथा से विपाक तक के छः आगमों के विवरण में पद परिमाण का निर्देश नहीं है। केवल 'संखेज्जाई पयसहस्साई' यह पाठ मिलता है। अङ्गप्रविष्ट आगमों के लिए द्विगुणता का नियम मान्य है. जैसे आचारांग के १८०००, सूयगडो के ३६०००, इस नियम के आधार पर ज्ञाता आदि छः आगमों का पद परिमाण निर्धारित किया जा सकता है। ७. उपासकदशा इसमें भगवान् महावीर के दश श्रमणोपासकों का जीवन वर्णन हैं। इसके दश अध्ययन है। इसलिए इसका नाम उपासकदशा है। धवला और जयधवला के अनुसार उपासकदशा में ग्यारह प्रकार के श्रावकों का वर्णन है-.१. दर्शन प्रतिमा वाला २. व्रती ३. सामायिक प्रतिमा वाला ४. पोषधोपवासी ५. सचित्तविरत ६. रात्रिभक्तविरत ७. ब्रह्मचारी ८. आरम्भविरत ९. परिग्रहविरत १०. अनुमतविरत ११. उद्दिष्टविरत ।' ग्यारह प्रकार के श्रावकों का वर्गीकरण श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर किया गया है। १. (क) षट्खण्डागम, पुस्तक १,पृ. १०२ ५. नन्दी चणि, पृ. ६६ : 'पदग्गेणं' ति उवसग्गपदं णिवातपदं (ख) कषायपाहड, पृ. १२५ णामियपदं अक्खातपदं मिस्सपदं च । ....."अहवा सुत्ताला२. नन्दी चूणि, पृ. ६६ : णाय त्ति-आहरणा, दिलैंतियो वा वयपदग्गेणं संखेज्जाइं पदसहस्साई भवंति । णज्जति जेहऽत्थो ते णाता.........."धम्मियाओ वा कहाओ ६. अणुओगदाराई, सू. २७० धम्मकहाओ। ७. नन्दी चूणि, पृ. ६७ : दससु अज्झयणेसु अवखात ति ३. वही, पृ. ६६ : बितियसुतक्खंधे दस धम्मकहाणं वग्गा । उवासगदसा भणिता। ४. (क) कषायपाहुङ, पृ. १२५ ८. (क) षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. १०३ (ख) षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. १०२ (ख) कषायपाहुड़, पृ. १२९, १३० Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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