Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 265
________________ अंतरदीवग अकम्मभूमग अकिरिय अक्खोभस्स सू. २३ सू. २३ गा. ९ गा. ११ सू. १२७।१ सू. ७१ सू. ७० अक्षर-श्रुत सू. ५६-५९ सू. ६० अनक्षर श्रुत अनानुगामिक अवधिज्ञान सू. १७ अनुयोग अनुयोगधर आचार्य अक्षर आदि श्रुत ज्ञान अक्षर के तीन प्रकार अक्षर के दो प्रकार अन्तगत अपच्छिमो अप्पचिक्क अप्पमत्त संयत अम्मतिराए सू. ११९-१२१ गा. ४३ सू. १० गा. २ गा. ५ सू. २३ सू. २५ सू. १२ गा. १२ सू. ५४।३ अलात अवगाढ अवग्रह आदि का कालमान अवधिज्ञान सू. ७ अवधिज्ञान का उत्कृष्ट सू. १८२ क्षेत्र अवधिज्ञान का क्षेत्र व काल अवधिज्ञान का विषय अवधिज्ञान के प्रकार अवधिज्ञान के विकल्प Jain Education International सु. १८/३-६ सू. २२ सू. ९ अव्वायफल जोगा सू. २२।१ सू. ३८२ अश्रुतनिश्रित असंबद्ध सु. ३८ सू. १७ अनुगामि अवधिज्ञान पू. १०-१६ आभिनिवोधिक ज्ञान सू. ३७ आभिनिबोधिक ज्ञान सू. ५४ का विषय ६७ ६७ १५ १५ १८९ १२५-१२७ १२४, १२५ ११६-११८ ११८,११९ ६८ १८५ २६,२७ ५८ १३ १५ ६७ ६९ ५८ १६ १०४ ५४ ६०,६१ ६१ परिशिष्ट ६ टिप्पण : अनुक्रम ६३, ६४ ५५, ५६ ६४ ९५ ९३-९५ ६९ ५६-५८ ९२,९३ १०३, १०४ आभिनिबोधिक ज्ञान के दृष्टान्त आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्याय आयं समुद्र आर्य स्कन्दिल और आर्य नागार्जुन आर्य हिमवंत उज्झर उद्धमाय उल्का ओदिसारा गा. ३४ आवश्यक का रचनाकाल सू. ७४,७५ इढिपत्त सू. २३ इन्द्रिय प्रत्यक्ष सू. ५ उज्जल गा. १३ गा. १५ गा. १३ सु. १२ सू. ३८१८ गा. १३ ऊसिय ऋजुमति विपुलमति कंत कण्णिय कुहर केवलज्ञान केवलज्ञान का विषय केसराल सू. ५१-५३ सू. ५४/६ सू. २४, २५ गा. १७ गा. ७ कन्दरा गा. १४ कम्मपसंग सू. ३८८ कम्मभूमग सु. २३ करगं गा. २८ काल आदि की सूक्ष्मता १८१८ कालिक और उत्कालिक सू. ७६-७८ काले चउण्ह १८१ श्रुत गाढ चित्त गा. २७ गा. ३३,३५ गा. १५ सू. २६-३२ सू. ३३ गा. ७ क्षायोपशमिक अवधिज्ञान सू. ८ गमिक और अगमिक सू. ७२ For Private & Personal Use Only गा. १२ गा. १३ १०१-१०३ १०६ २३ २६ २५ १५६ ६८ ५३, ५४ १६ १६ १६ ५८ ९५ १६ ६८,६९ १७ १५ १६ ९५ ६७ २५ ६२ १५६-१६४ ६२ १६ ६९-७१ ७-७६ १५ १२७ १२७ १६ १६ www.jainelibrary.org

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