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परिशिष्ट : २ जोगनंदी - योगनन्दी
मूल पाठ
१. नाणं पंचविहं पण्णत्तं तं जहा-आभिणिबोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं ॥
२. तत्व णं चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिज्जा णो उहिस्संति जो समुद्दिस्संति णो अगुण्णविश्वंति, सुयनागस्य पुण उद्देसो समृद्देसो अनुष्णा अणुओगो
य पवत्तइ ||
३. जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पत्त, किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवस ? कि अंगवाहिरस्स उद्देसो पवत्तइ समुहसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? गोयमा ! सिवि उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो यवत अंगदाहस्स वि उद्देसो समुद्देसो अगुण्णा अणुओगो व पवत्त । इमं पुण पट्टवणं पहुच अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य
पवत्तइ ॥
४. जइ पुण अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगोपवत्त, कि कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? उक्कालियस्स उसी समुद्देसो अगुणा अनुओगो व पवत्तइ ? गोयमा ! कालियरस व उसो समुद्देसो अगुण्णा अणुओगो प पत उक्कासि वि उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओगो य पवत्त इमं पुण पटुवर्ण पडच्च उक्कालियरस उद्देसो समुदेसो अणुष्णा अणुओ
पवत्तइ ॥
५. जह उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अगुण्णा अणुओगो य पवत, कि आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देतो अण्णा अणुओगो व पवत्तइ ? बावस्समवरिसरस उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो व पवत्त ? गोवा | आवस्सस्स वि उसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पवत्त, आवस्सगवइरित्तस्स वि उद्देसो समुद्देसो अण्णा अणुओोगो व पवत्त ॥
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हिन्दी अनुवाद
१. ज्ञान के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान ।
२. उनमें चार ज्ञान ( प्रतिपादन में अक्षम होने के कारण ) स्थाप्य (असंव्यवहार्य) हैं अतएव स्थापनीय हैं। उनके उद्देश, समुद्देश और अनुज्ञा नहीं होती तान का उद्देश समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग ( व्याख्या) प्रवृत्त होता है।
३. यदि श्रुतज्ञान का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या अंगप्रविष्ट श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है अथवा अंगवा श्रुत का उद्देश समुद्देश अनुसा अंगबाह्य और अनुयोग प्रवृत्त होता है ?
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गौतम ! अंगप्रविष्ट श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है, अंगवा बुत का भी उद्देश समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत्त होता है। प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से अगवा श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत्त होता है।
४. यदि अंगबाह्य श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? तो क्या कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अथवा उत्कालिक धुत का उद्देश, समुदेश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ?
गौतम ! कालिक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है, उत्कालिक युत का भी उद्देश, समुद्देश अनुसा और अनुयोग प्रवृत्त होता है । प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ।
५. यदि उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या आवश्यक धुत का उद्देश, समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत होता है? अथवा आवश्यकव्यतिरिक्त भूत का उद्देश समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ?
गौतम ! आवश्यक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है । आवश्यकव्यतिरिक्त श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुशा और अनुयोग प्रवृत्त होता है।
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