Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 251
________________ २२६ नंदी १५. वज्रस्वामी दृष्टांत वज्रस्वामी ने संघ को बहुमान दिया । यह उनकी पारिणामिकी बुद्धि थी। १६. चरणाहत दृष्टान्त' एक राजा था। वह तरुण था। एक बार कुछ नवयुवकों ने मिलकर राजा से निवेदन किया-देव ! आप नवयुवकों को ही अपने पास रखिए। उन स्थविरों से क्या? जिनके केश पक गए हैं और शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया है। ऐसे लोग आपकी सेवा में रहते हुए शोभा नहीं देते। नवयुवकों के इस प्रस्ताव पर उनकी बुद्धि की परीक्षा करने के लिए राजा ने उनसे पूछा-यदि कोई मेरे सिर पर पांव से प्रहार करे तो उसे क्या दण्ड देना चाहिए? नवयुवक बोले-महाराज! तिल जितने छोटे-छोटे टुकड़े करके उनको मरवा देना चाहिए। राजा ने यही प्रश्न स्थविर पुरुषों से किया। स्थविर पुरुषों ने कहा-स्वामिन् ! हम चिन्तन करके कहेंगे। वे एकांत स्थान में गए और विचार करने लगे-रानी के सिवाय दूसरा कौन व्यक्ति राजा के सिर पर पांव से प्रहार कर सकता है। अत: उसका विशेष सम्मान करना चाहिए। ऐसा चिन्तन करके स्थविर पुरुष राजा की सेवा में उपस्थित हुए और उन्होंने निवेदन कियास्वामिन् ! उसका विशेष सत्कार करना चाहिए। यह उत्तर सुनकर राजा संतुष्ट हुआ। उनकी प्रशंसा की और कहने लगा-वृद्धों को छोड़कर इस प्रकार का बुद्धिमान कौन हो सकता है। इसलिए वह अपने पास स्थविरों को ही रखने लगा। तरुणों को अपनी सेवा में नहीं रखा । यह राजा और स्थविर पुरुषों की पारिणामिकी बुद्धि थी। १७. कृत्रिम आंवला दृष्टान्त' एक व्यक्ति ने किसी व्यक्ति को कृत्रिम आंवला दिया। उसका रंग, रूप तथा आकार आंवले जैसा ही था, पर स्पर्श कठोर था । वह ऋतु आवला फलने की नहीं थी अतः उस व्यक्ति ने ऋतु और स्पर्श की कठोरता के आधार पर बता दिया कि वह आंवला कृत्रिम है। १८. मणि का दृष्टान्त' एक जंगल में एक सांप रहता था। उसके मस्तक पर मणि थी। रात्रि के समय वृक्षों पर चढ़कर पक्षियों के अण्डों को खा जाता था। एक बार वह वृक्ष से नीचे गिर पड़ा और मणि वृक्ष पर ही रह गई। वृक्ष के नीचे एक कुंआ था। मणि की प्रभा के कारण उसका पानी लाल दिखाई देने लगा। किसी बच्चे ने लाल पानी देखकर अपने वृद्ध पिता के पास जाकर कहा। वृद्ध पुरुष वहां आया और पानी लाल होने का कारण समझ गया। इधर उधर खोजकर उसने मणि प्राप्त कर ली। यह वृद्ध की पारिणामिकी बुद्धि थी। १९. सर्प का दृष्टान्त' चण्डकौशिक सर्प का भगवान् के प्रति जो चिन्तन हुआ, भगवान् की महिमा को जाना। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी। १. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६६ ३,४. (क) आवश्यक चूणि पृ. ५६७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २९१ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २९१ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३३ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३३ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४३ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४३ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३ २. (क) आवश्यक चूणि पृ. ५६६,५६७ ५. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २९१ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २९१ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३३ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३३ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४३ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४३ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३ Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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