Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 255
________________ २३० नंदी ८३ कुंथु २० ७७ ज्ञान गोत्र नाण ग्रन्थ ओगाढसेणियापरिकम्म दृष्टिवाद परिच्छेद ९३,९७ ओगाढावत्त दृष्टिवाद परिच्छेद ९७ ओगेण्हणया अवग्रह का पर्यायवाची ४३ ओवाइय ग्रन्थ ओसप्पिणी समय का प्रकार १८।८,२२,६९, १२१ ओहि १८।१,२२।१,२ ओहिनाण ज्ञान २,८,१०,१७-२२ ओहिनाणपच्चक्ख ज्ञान ओहिनाणि ज्ञानी २२,१२० कंदरा पर्वत गा.१४ कच्चायण गा.२३ कणगसत्तरि लौकिक ग्रंथ कणय (ग) धातु व रत्न गा. १३,१७ कणिया वनस्पति गा. ७ कप्प कप्परुक्खग वनस्पति गा. १६ कप्पवासिया ग्रन्थ कप्पाकप्पिय ग्रन्थ कप्पासिय लौकिक ग्रन्थ कमल वनस्पति गा. ३७ कम्मपयाड गा.३ कम्मप्पवाय १०४,११२ कम्मभूमि जनपद-प्राम २५ कम्मभूमिय मनुष्य २५ कम्मया मतिज्ञान का भेद ३८।१,७९ गा.२८ ग्रन्थ करिसय शिल्पी व व्यवसायी ३८९ काउस्सग्ग ग्रन्थ परिच्छेद काय प्राणी वर्ग ३८।३ कालिओवएस संज्ञिश्रुत का भेद ६१,६२ कालिय ग्रन्थ ७२,७६,७८,७९ कालियसुय ग्रन्थ गा. ३२,३५,४३ काविल लौकिक ग्रंथ कासव गोत्र गा. २३ किरियावाइ अन्यतीर्थिक ८२ किरियाविसाल १०४,११७ कुंच प्राणी वर्ग ३८७ जलाशय तीर्थकर गा. १९ कुच्छि मान का प्रकार कुडग गृह उपकरण गा.४४ कुलगर राजा का प्रकार १२१ कुवलय वनस्पति गा. ३१ कुसमय लौकिक ग्रन्थ गा. २२ कुसुम वनस्पति गा. १६ कुहर शास्त्रमण्डपादि गा. १५ पर्वत गा. १३, सू.८३ कूव जलाशय ३८१६ के उभूय दृष्टिवाद परिच्छेद ९४-१०० केउभूयपडिग्गह दृष्टिवाद परिच्छेद ९४-१०० केवलनाण ज्ञान २,२६,३३,३३३२ केवलनाणपच्चक्ख ज्ञान केसराल वनस्पति गा. ७ कोट्ठ धारणा का पर्यायवाची ४९ कोडिल्लय लौकिक ग्रंथ६७ कोलिय शिल्पी व व्यवसायी ३८१९ कोसिय गोत्र गा. २५,२६ खओवसमिय अवधिज्ञान का भेद ७,८ खंदिलायरिय श्रुतधर आचार्य खंभ गृह ३८।३ खग्गि प्राणीवर्ग ३८.१३ खाणि खान गा.४१ खमासमण आचार्य विशेषण ३८।१२ खासिय अनक्षर श्रुत का भेद ६०१ खड्ग आभूषण ३८।३ खुड्डागपयर खुड्डियाविमाण- ग्रन्थ पविभत्ति गंडिया दृष्टिवाद परिच्छेद १२१ गंडियाणुओग दृष्टिवाद परिच्छेद ११९,१२१ गणह (ध)र गा. २१, सू. १२०, १२१ गणिपिडग ग्रन्थ ६५,६६,६८,८४, १२४-१२६ गणिय लौकिक ग्रन्थ ३८६ गणिविज्जा ग्रन्थ ७८ प्राणीवर्ग ३८.६ ग्रंथ करग' करण' ७५ पूर्व १. कालिकादिसूत्रोक्तमेवोपधिप्रत्युपेक्षणादिक्रियाकलापं करोतीति कारकः । २. करणं-पिण्डविशुद्धयादि । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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