Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 258
________________ परिशिष्ट ४ : विशेषनामानुक्रम-देशीशब्द २३३ १८१ निच्छूढ ग्रंथ गा. २३ गा. ४४ ३,३४ नाडग लौकिक ग्रंथ पढमसमयसजोगि- केवलज्ञान का भेद २८ नाणप्पवाय पूर्व १०४,१०९ भवत्थ नाणय नोली ३८।४ पणग वनस्पति नायाधम्मकहा ग्रंथ ग्रंथ पण्णवणा ६५,८०,८६ पण्णा मतिज्ञान का पर्यायवाची ५४।६ नाल वनस्पति गा. ७ पण्णास दृष्टिवाद परिच्छेद नासिक्क जनपद ग्राम ३८२ १०२ पण्हावागरण अनक्षरश्रुत का भेद ६०११ ६५,८०,९० निज्जुत्ति ग्रंथ परिच्छेद पत्तेयबुद्धसिद्ध केवलज्ञान का भेद ८१-९१,१२३ पन्भार पर्वत निमित्त लौकिक ग्रंथ ३८६ पभव श्रुतधर आचार्य निरयावलिया ग्रंथ पभावग आचार्य विशेषण गा. २८ निव्वोदय जलाशय ३८७ पमायप्पमाय ग्रंथ ७७ निसीह ग्रंथ ७८ परंपर दृष्टिवाद परिच्छेद १०२ निस्सिघिय अनक्षरश्रुत का भेद ६०१ परंपरसिद्ध केवलज्ञान का भेद ३०,३२ नीससिय अनक्षरश्रुत का भेद ६०१ परतित्थिय अन्यतीथिक गा.१० नेमि तीर्थकर गा. १९ परमोहि ज्ञान १८.२ नोइंदियअत्थुग्गह मतिज्ञान का भेद परसमय लौकिकग्रंथ ८२-८५ नोइंदियअवाय मतिज्ञान का भेद परिकम्म दृष्टिवाद परिच्छेद ९२,९३,१०१ नोइंदियईहा मतिज्ञान का भेद परिणयापरिणय दृष्टिवाद परिच्छेद १०२ नोइंदियधारणा मतिज्ञान का भेद परिपूणग गृह उपकरण नोइंदियपच्चक्ख ज्ञान परोक्ख ज्ञान नोइंदियलद्धिक्खर अक्षरश्रुत का भेद पलिओवम समय का प्रकार नोउस्सप्पिणी समय का प्रकार पवत्तिणी पद १२० नोओसप्पिणी समय का प्रकार पवय शिल्पी व व्यवसायी ३८९ पारिवारिक सदस्य ३८।३ पहास गणधर गा. २१ पइट्ठा धारणा का पर्यायवाची ४९ पाइण्णग गोत्र गा. २४ पइणग पागार गा.४ पईव अग्नि १२-१५ पाडिच्छग' गा ४२ पउम वनस्पति गा.८ पाढ दृष्टिवाद परिच्छेद ९४-१०० पच्चक्ख ज्ञान ३,४,३३ पाणाउ १०४,११६ पच्चक्खाण ग्रंथ परिच्छेद पाय शरीरांग गा.४२ १०४,११३ पच्चक्खाण मान का प्रकार पाय २० पच्चावट्टणया खाद्य अवाय का पर्यायवाची ४७ पायस ३८।३ गृह उपकरण पारिणामिया मतिज्ञान का भेद पडागा ३८।१,१०,१२,१३ पडिक्कमण ग्रंथ परिच्छेद ७५ पारियल्ल वाहन व वाहन के गा. ५ उपकरण पडिवत्ति ग्रंथ परिच्छेद ८१-९४,१२३ पावयणि' प्रवचनकार आचार्य गा. ४२ पडिवाइ अवधिज्ञान का भेद ९,२० पावादुय अन्यतीथिक ८२ पढमसमयअजोगि- केवलज्ञान का भेद २९ पास तीर्थंकर गा.१९ भवत्थ पासओ अवधिज्ञान का भेद ११,१४,१६ १. ये गच्छान्तरवासिनः स्वाचार्य पृष्ट्वा गच्छान्तरेऽनुयोगश्रवणाय समागच्छन्ति अनुयोगाचार्येण च प्रतीच्छ्यन्ते-अनुमन्यन्ते ते प्रातीच्छिका उच्यन्ते, स्वाचार्यानुज्ञापुरःसरमनुयोगाचार्यप्रतीच्छ्या चरन्तीति प्रातीच्छिका इति व्युत्पत्तेः । २. 'प्रावचनिकानां' प्रवचने-प्रवचनार्थकथने नियुक्ताः प्रावचनिकास्तेषां, तत्कालापेक्षया युगप्रधानानामित्यर्थः। २५ ग्रंथ गृह पूर्व Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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