Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 249
________________ २२४ नंदी ६. साधु-नन्दिषेण दृष्टान्त' नन्दिषेण राजा श्रेणिक का पुत्र था। उसने भगवान महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। उसकी बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी। कुछ समय बाद वह भगवान की अनुमति से भगवान से अलग विहार करने लगा। नन्दिषण के एक शिष्य को संयम में अरति उत्पन्न हो गई। वह संयम को छोडकर गृहवास में जाना चाहता था। नन्दिषेण ने सोचा यदि हम भगवान महावीर स्वामी के पास राजगह में जाएं तो यह मेरे अन्तःपुर की रानियों को देखकर स्थिर हो सकता है। यह सोचकर नन्दिषेण राजगृह में गए। भगवान राजगृह पधार गए । राजा श्रेणिक और अन्य कुमार भी अपने अपने अन्तःपुर के साथ वन्दना करने के लिए आए। सरोवर के मध्य हंसनियों की तरह श्वेत परिधान से युक्त नन्दिषेण का अन्तःपुर सब रानियों से अधिक सुशोभित हो रहा था। उस अस्थिरमना साधु ने उन्हें देखा और विक्षिप्त चित्त से अन्तःपुर की उन अप्सराओं को देखकर चिन्तन करने लगा। मेरे आचार्य ने इतना सुन्दर अन्तःपुर छोड़ा है। मैंने तो किसी को छोडा ही नहीं, फिर क्यों मैं भोग के लिए गृहवास में जाऊं। वह पुनः संयम में स्थिर हो गया। नन्दिषेण और साधु दोनों की पारिणामिकी बुद्धि थी। ७. धनदत्त दृष्टांत' धनदत्त के आपत्तिकालीन चिन्तन को पारिणामिकी बुद्धि कहा है।' ८. श्रावक दृष्टान्त किसी नगर में एक श्रावक रहता था। उसके परस्त्री गमन का प्रत्याख्यान था। एक बार उसने अपनी पत्नी की सखी को देखा। वह उसमें अत्यन्त आसक्त हो गया। उसको इस प्रकार देखकर उसकी पलि ने चिन्तन किया-यदि ये इस अध्यवसाय में मृत्यु को प्राप्त होंगे तो नरक गति अथवा तिर्यञ्च गति को प्राप्त करेंगे। इसलिए मुझे कुछ उपाय करना चाहिए। ऐसा सोचकर उसने अपने पति से कहा--आप इतने आतुर न हों। मैं विकाल वेला में उसको आपके पास भेज दूंगी। उसने मंजूर कर लिया । विकालबेला में कुछ अन्धकार होने पर उसने अपनी सखी के वस्त्र व आभूषण धारण कर लिए। सखी के रूप में एकान्त में उसके समक्ष उपस्थित हो गई। यह मेरी पत्नी की सखी है ऐसा जानकर उसने अपनी कामना की पूर्ति कर ली। उसके पश्चात् काम का अध्यवसाय समाप्त हो गया। उस समय उसे पूर्व स्वीकृत व्रत का स्मरण हुआ। मैंने अपने लिए हुए व्रत को खण्डित कर दिया ऐसा चिन्तन कर वह खिन्न हो गया। उसकी पत्नी ने उसे वस्तुस्थिति बतलाई । वह कुछ स्वस्थ हुआ। गुरु के पास जाकर अपने विकारपूर्ण मानसिक संकल्प के लिए प्रायश्चित किया। ९. अमात्य दृष्टान्त बह्मदत्त को लाक्षागृह में जलाने की योजना बनाई गई। वरधनु के पिता अमात्य ने सुरंग खुदवाकर उस योजना को विफल करवा दिया । यह अमात्य की पारिणामिकी बुद्धि थी। १. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५५९,५६० ।। (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८७ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६६ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४१ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ २. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६० (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८७ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६६ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४१ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ ३. द्रष्टव्य-णायाधम्मकहाओ ११८ ४. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६०,५६१ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८७ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वत्ति, प. १६६ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४१ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ ५. (क) आवश्यक चूणि पृ. ५६० (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८७,२८८ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२९,५३० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६६,१६७ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४१,१४२ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ ६. द्रष्टव्य उत्तरज्झयणाणि भाग १, पृ. ३०९ से ३१२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282