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परिशिष्ट ३ : कथा
२२५ १०. क्षपक दृष्टान्त
एक तपस्वी (क्षपक) था। वह क्रोध बहुत करता था। वह मरकर सांप बन गया। फिर वहां से मरकर वह राजा के घर उत्पन्न हुआ। कुछ समय बाद वह मुनि बना । चार तपस्वियों की सेवा में लग गया। एकदा भोजन की बेला में क्षपकों ने उस प्रवजित राजकुमार के पात्र में थूक दिया। उस समय वह लघु मुनि उसे घी मानकर उपशान्त रहा। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि
थी।
११. अमात्यपुत्र दृष्टान्त'
राजा ब्रह्म का अमात्य था धनु । उसके पुत्र का नाम था वरधनु । अमात्य पुत्र उसी के लिए प्रयुक्त हुआ है । अमात्य धनु ने दीर्घपृष्ठ और रानी चुलनी के कदाचार पूर्ण संबंधों की बात ब्रह्मदत तक पहुंचानी चाही। अमात्य पुत्र वरधनु ने दीर्घपृष्ठ के चरित्र का यथार्थ चित्रण ब्रह्मदत्त के सामने बड़ी बुद्धिमत्ता से किया। यह उसकी पारिणामिकी बुद्धि थी। १२. चाणक्य दृष्टांत'
चन्द्रगुप्त राज्य कर रहा था। चाणक्य उसका मन्त्री था। कोश खाली हो गया। खजाने को भरने के लिए चाणक्य ने अनेक उपाय किए। उसमें एक उपाय था कि एक दिन घोड़ो को भगाना और कहा इनके केशों से आकाश को ढकना चाहिए । जनता ने कहा यह संभव नहीं है तो धन लाओ। १३. स्थूलभद्र दृष्टांत
स्थूलभद्र ने मंत्रीपद को छोड़कर दीक्षा स्वीकार की। यह उनकी पारिणामिकी बुद्धि थी। १४. नासिक्य सुन्दरीनन्द दृष्टांत'
नासिकपुर नगर नन्दवणिक, सुन्दरी पत्नी। वह अपनी पत्नी में बहुत आसक्त रहता था इसलिए वह सुन्दरीनन्द हो गया । उसका भाई प्रवजित हो गया। एक बार वह नासिकपुर आया और उद्यान में ठहरा। जनता धर्मोपदेश सुनने के लिए आई पर उसका भाई नन्द नहीं आया। उसने सुना-नन्द अपनी पत्नी में बहुत आसक्त है । वह उसके घर गया । नन्द ने दान दिया। साधु ने भिक्षा ग्रहण कर भिक्षा-पात्र भाई के हाथ में दे दिया और कहा-आओ मेरे साथ चलो। लोग नन्द के हाथ में पात्र देखकर उपहास करने लगे-'क्या सुन्दरीनन्द प्रवजित हो गया है ?' फिर भी वह मुनि के साथ उद्यान तक गया। साधु ने उसे देशना दी किन्तु पत्नी के प्रति अत्यन्त अनुराग होने के कारण उस पर उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। साधु वैक्रिय लब्धि सम्पन्न थे। उन्होंने चिन्तन किया--कोई दूसरा उपाय करना चाहिए।
मुनि ने बैंक्रिय लब्धि से मर्कटयुगल की विकुर्वणा की। साधु ने नन्द से पूछा । सुन्दरी अधिक सुन्दर है या मर्कट युगल ? नंद ने कहा- सर्षप व मेरु की कैसी तुलना। उसके पश्चात साधु ने विद्याधर-युगल की विकुर्वणा की। नन्द से पूछा--बताओ विद्याधरयुगल सुन्दर है या सुन्दरी ? नन्द ने कहा दोनों समान ही हैं । साधु ने देवयुगल का रूप दिखाया। और वही प्रश्न किया-बताओ कोन सुन्दर है देवयुगल या सुन्दरी ? नन्द ने कहा-भगवन् ! इस देवयुगल के समक्ष तो सुन्दरी बन्दरी की तरह लगती है। मुनि ने कहा-थोड़ा सा धर्माचरण करने से तुम ऐसी अनेक देवियां प्राप्त कर सकते हो। मुनि के इस कथन पर उसे विश्वास हो गया और उसकी सुन्दरी के प्रति आसक्ति कम हो गई। कुछ समय बाद उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। यह साधु की पारिणामिकी बुद्धि थी। १,२. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६१
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८८
(च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४२ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३०
(छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६७
४,५. (क) आवश्यक चणि, पृ. ५६६ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४२
(ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति , पृ. २९०,२९१ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३
(ग) आवश्यक नियंक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३२,५३३ ३. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५६३-५६६
(घ) नन्दी मलयगिरीया वत्ति, प. १६७ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८९,२९०
(च) नन्दी हारिभदोया वत्ति टिप्पणकम, पृ. १४३ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५३१,५३२ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८३
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