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परिशिष्ट : ३ कथा
१. औत्पत्तिकी बुद्धि के दृष्टांत २. भरतनट' के अन्तर्वर्ती दृष्टांत
३. वैनयिकी बुद्धि के दृष्टांत ४. कर्मजा बुद्धि के दृष्टांत
५. पारिणामिकी वृद्धि के दृष्टांत
प्रस्तुत आगम में वर्णित बुद्धि चतुष्टय की कथाओं के संकेत आवश्यकनिर्युक्ति में भी मिलते हैं। कथा का विस्तार आवश्यकचूर्णि आवश्यकनिर्युक्ति की मलयगिरीया वृत्ति और नन्दी की मलयगिरीया वृत्ति में मिलता है ।
कथाओं का स्रोत १. आवश्यक २. आवश्यकनियुक्ति हारिभदीया वृत्ति, ३. आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, ४. नंदी मलयगिरीवा वृत्ति, ५ नंदी हारिभद्रया वृत्ति टिप्पणकम् ६. आवश्यक निर्बुक्ति दीपिका ।
हमने अधिकांश कथाएं नंदी की मलयगिरीया वृत्ति से ली हैं। कहीं-कहीं आवश्यकचूणि आदि व्याख्या ग्रन्थों से भी ली हैं । आवश्यकचूर्ण, आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रया वृत्ति, आवश्यकनियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति और आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका की कथाएं प्राकृत में लिखी हुई हैं । नन्दी की मलयगिरीया वृत्ति की कथाएं संस्कृत में लिखी गई हैं । नन्दी की हारिभद्रीया वृत्ति पर मलधारी श्रीचन्द्रसूरि ने टिप्पणक लिखे हैं । उनमें उद्धृत कथाएं भी प्राकृत में हैं । कथावस्तु भी सबकी समान नहीं है । उसमें कुछ-कुछ अन्तर मिलता है । कुछ कथाओं को परिवर्तित करके प्रस्तुत किया गया है ।
आख्यानक मणिकोश का प्रारम्भ बुद्धि चतुष्टय से किया गया है । उसमें लिखित कथाएं प्राकृत पद्यों में हैं ।
१. औत्पत्तिकी बुद्धि के दृष्टांत
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१ क- भरत दृष्टान्त'
उज्जयिनी नगरी के पास नटों का एक गांव था । वहां भरत नामक नट रहता था। उसके पुत्र का नाम रोहक था । उसकी माता का देहांत हो गया । उसकी सौतेली मां उसे दुःख देती थी । उसने अपनी सौतेली मां से कहा—तुम मुझे दुःख देती हो, यह अच्छा नहीं है । उसने रोहक की बात पर ध्यान नहीं दिया ।
एक दिन रात के समय रोहक अपने पिता के पास मकान की छत पर सोया था। उसकी मां मकान में सो रही थी। अचानक रोहक चिल्लाया- पिताजी ! देखिए कौन भाग रहा है ? पिता हड़बड़ा कर उठा और बोला-कहां है ? रोहक बोला --- वह अभी-अभी इधर से भागा है। भरत को अपनी पत्नी पर संदेह हो गया । वह उसे कुलटा समझने लगा, फलतः पत्नी के प्रति उसका अनुराग शिथिल हो गया । स्त्री ने सोचा - यह सब रोहक का काम है अतः उसे प्रसन्न करना पड़ेगा । उसने प्रेमपूर्वक रोहक को अपने पास बिठाया और भविष्य में उसके साथ अच्छा व्यवहार करने का वादा किया। रोहक बोला- मां चिंता मत करो मैं पिताजी की अप्रसन्नता दूर कर दूंगा ।
एक दिन के अन्तराल से रात को रोहक सोया-सोया फिर चिल्लाया- पिताजी ! देखिए, देखिए, वह कौन जा रहा है ? पिता उठा और हाथ में तलवार लेकर आया और बोला- बेटा ! कहां है वह पुरुष ? रोहक ने अपनी प्रतिच्छाया की ओर संकेत किया। पिता ने पूछा- बेटा ! उस दिन जो पुरुष आया था वह भी ऐसा ही था क्या ? रोहक ने कहा- हां यही था । भरत को अपने कृत्य पर पश्चात्ताप हुआ। उस दिन के बाद वह अपनी पत्नी में अधिक अनुराग रखने लगा ।
१. आख्यानक मणिकोश, पृ. ३ से १७
२. (क) आवश्यक चूर्णि पृ. ५४४
(ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २७७ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५१७
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४५, १४६ (च) नन्दी हारिमडीयावृत्ति
पू. १२३
(घ) आवश्यकनियुक्तिका
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