Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 245
________________ २२० नंदी दूसरे दिन प्रातःकाल सभी राजकुल में उपस्थित हुए। सबने अपनी-अपनी कहानी सुनाई। अमात्यकुमार ने उस बेचारे को पूछा । वह दीनमुख होकर बोला-देव ! ये जो कहते हैं वह सत्य है । अमात्यकुमार को उस पर दया आ गई। उसने कहा-(बैल के स्वामी से) यह तुम्हें दो बैल देगा पर तुम्हारी आंखों को निकाल लेगा। यह तो उसी समय ऋणमुक्त हो गया था, जब तुमने आंखों से बैलों को देख लिया। यदि तुमने उन्हें न देखा होता तो शायद यह उन्हें छोड़ अपने घर नहीं जाता। जो व्यक्ति जिसे जो देने जाता है वह उसे बिना कहे समर्पणीय वस्तु ऐसे ही छोड़कर अपने घर नहीं जाता। फिर अश्वस्वामी को बुलाया गया । अमात्यकुमार ने उसे कहा- यह तुम्हें घोड़ा देगा, पर तुम्हारी जीभ काट लेगा। जब तुमने ही इसे अपनी जीभ से कहा कि इस घोड़े को डण्डा मारो तभी इसने उसे मारा, अन्यथा नहीं। अत: केवल डण्डा मारने वाले को ही दण्ड दिया जाए, तुम्हारी जीभ को नहीं-यह कौनसा नीतिपथ है । फिर उसने नटों से कहा--इसके पास कुछ भी नहीं है तो क्या दिलाएं ? केवल इतना करवाएंगे कि यह नीचे सो जाएगा और तुममें से कोई एक मुखिया वृक्ष से अपने गले में फांसी लगाकर वैसे ही नीचे गिरे, जैसे वह नीचे गिरा। अपात्यकुमार का न्याय सुनकर सभी ने उसको मुक्त कर दिया। यह अमात्यकुमार की वैनयिकी बुद्धि थी। ४. कर्मजा बुद्धि के दृष्टांत १. हैरण्यक दृष्टान्त' जैसे कर्म में कुशल स्वर्णकार जिसने अपने धंधे में ज्ञान का प्रकर्ष प्राप्त किया है। वह अंधेरे में भी रुपये को छूकर परीक्षा कर लेता है-यह सिक्का खोटा है अथवा असली। २. कृषक दृष्टान्त' एक बार किसी तस्कर ने वणिक के घर में पद्म के आकार वाली सेंध लगाई। प्रात: उसे देखकर लोगों ने तस्कर के चातुर्य की प्रशंसा की। तस्कर भी उसी घर में आकर अपनी प्रशंसा सुनने लगा। तभी एक किसान बोला-भाई ! अभ्यास कर लेने पर क्या दुष्कर है? जो जिस कर्म का सदा अभ्यास करता है, वह उसमें यदि प्रकर्ष प्राप्त कर लेता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होती। उसके अमर्ष रूपी अग्नि को उद्दीप्त करने वाले वाक्य को सुनकर वह क्रोध से जलभुन उठा। उसने किसी पुरुष से उसका सारा परिचय प्राप्त किया। अगले दिन हाथ में छुरी लेकर किसान के घर पहुंचा और बोला-मैं तुम्हें अभी मारता हूं। किसान ने कारण पूछा तो उसने कहा-तुमने उस दिन मेरे द्वारा लगाई गई सेंध की प्रशंसा नहीं की। किसान ने कहा-तुम ठीक कहते हो। यह सत्य है कि जो जिस विषय में अभ्यास कर लेता ? वह उसमें प्रकर्ष प्राप्त कर सकता है। इसका उदाहरण मैं ही हूं। मेरे हाथ में मूंग के दाने हैं। यदि तुम कहो तो मैं इन सबको अधोमुख गिरा दूं। और तुम कहो तो इनको ऊर्ध्वमुख या तिरछा गिरा दूं। यह सुनकर वह तस्कर बड़ा विस्मित हुआ। उसने कहा-इन सबको अधोमुख गिराओ। किसान ने भूमि पर एक कपड़ा बिछाया और उस पर सारे मूंग अधोमुख गिरा दिए । तस्कर को वह कार्य महान् आश्चर्य सा लगा। उसने पुनः-पुन: 'अहो विज्ञानंअहो विज्ञानं' कहकर किसान के कौशल की प्रशंसा की। उसने कहा-यदि आज तुमने ये सारे मंग अधोमुख न गिराए होते तो मैं तुम्हें निश्चित मार देता। __पद्माकार सेंध लगाना तस्कर की कर्मजा बुद्धि थी । मूंग को अधोमुख गिराना किसान की कर्मजा बुद्धि थी। ३. कोलिक दृष्टान्त' जुलाहा तन्तुओं को मुट्ठी में लेकर बता देता है कि धागे के इतने कण्डक (गुच्छों) से पट बन जाएगा। ४. दर्वीकार दृष्टान्त (चाटु बनाने वाले) चाटु बनाने वाला यह जान लेता है कि इस दर्वी में इतना समाएगा। १,२. (क) आवश्यक चूणि पृ. ५५६ (ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८५ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२६ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६४ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३९ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ ३,४. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५५६ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८५ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२६ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६५ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३९ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८२ Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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