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नंदी १०. औषध दृष्टांत
किसी नगर में एक राजा राज्य करता था। शत्रु सेना से वह सब ओर से घिर गया। राजा ने योजना बनाई कि जल को विषमय बना दिया जाये जिससे शत्रु अपना डेरा न डाल सके । यह चिंतन कर राजा ने विष-वैद्यों को आमन्त्रित किया।
एक वैद्य जो जितना विष लेकर आया । थोड़ा-सा विष देख राजा कुपित हो गया। वैद्य ने निवेदन किया-राजन् ! आप क्रुद्ध न हों। यह सहस्रवेधी विष है।
राजा-इसका प्रमाण क्या है ? वैद्य-राजन् ! कोई बूढ़ा हाथी मंगाएं।
राजा ने वैसा ही किया। विषवंहा ने हाथी की पूंछ के स्थान से एक बाल उखाड़ा और उस रन्ध्र में विष को संचरित किया। विष जहां-जहां फैला, वह अंग मृतवत् हो गया।
वैद्य-राजन् ! यह सारा हाथी विषमय हो गया है। जो भी इसे खाएगा वह भी विषमय हो जाएगा। इस विष के सहस्रवेधी होने का यह प्रमाण है।
राजा-क्या हाथी को स्वस्थ बनाने का, विष प्रतिकार का कोई उपाय है ?
अवश्य । उसने उसी बाल के रन्ध्र में दवा का प्रक्षेप किया। सारा विष विकार शीघ्र ही प्रशान्त हो गया। हाथी स्वस्थ हो गया। राजा वैद्य पर तुष्ट हुआ। यह वैद्य की वैनयिकी बुद्धि थी। ११. रथिक और गणिका दृष्टांत'
पाटलिपुत्र नगर में दो गणिकाएं रहती थीं। वे कोशा और उपकोशा के नाम से प्रसिद्ध थी। कोशा के साथ अमात्यपुत्र स्थूलभद्र रहता था। कालान्तर में वह विरक्त होकर मुनि बन गया। मुनि बनने के बाद उसने आचार्य की अनुज्ञा प्राप्त कर कोशा की चित्रशाला में चातुर्मास किया था। कोशा की विचारधारा अब उसे प्रभावित नहीं कर सकी। वह मुनि की दृढ़ता से प्रभावित होकर दृढ़ श्राविका बन गई। उसने राजा के अलावा अब्रह्मचर्य के सेवन का प्रत्याख्यान कर लिया।
एक रथिक राजा को प्रसन्न कर कोशा के पास पहुंचा। कोशा उसके समक्ष पुन: पुन: मुनि स्थूलिभद्र का गुणगान करने लगी। उसको महत्त्व नहीं दिया। रथिक अपना कौशल दिखाने के लिए उसे अशोकवन में ले गया। वह भूमि पर खड़ा हो गया। बाण चलाया उससे आम की लुम्बी को बींध दिया। फिर दूसरा बाण चलाया। वह बाण के मुख (पिछला भाग) से जुड़ गया। इस प्रकार बाण चलाता गया। आखिरी बाण हाथ के पास आ गया। हाथ से उन सबको खींचा, आम की लम्बी बींध बाण से आम की लुम्बी को काटा, वह उसके हाथ में आ गई।
कोशा पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह बोली- अभ्यास से क्या दुष्कर है ? उसने कहा- अब तुम मेरा कोशल देखो। उसने सर्षप के ढेर पर कनेर के फूलों को पिरोया और उस पर सुइयां रखी और उसके अग्रभाग पर नृत्य किया। रथिक ने उसके कौशल की भूरि-भूरि प्रशंसा की । कोशा ने उसे समझाते हुए कहा-देखो ! शिक्षित व्यक्ति के लिए आम्रलुम्बी को तोड़ना दुष्कर नहीं है, सर्षप राशि पर नृत्य करना दुष्कर नहीं है। दुष्कर है महान् शक्ति का प्रयोग जो मुनि स्थूलभद्र ने किया, जो प्रमदवन (अन्तःपुरोचित क्रीडावन) में रहकर निर्लिप्त रहा । यह कहकर कोशा ने स्थूलभद्र का समग्र वृत्तान्त कह सुनाया। रथिक का मन शांत हो गया। यह रथिक और कोशा की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है । १२. सीया साडी दृष्टांत'
एक राजा था। उसने राजकुमारों को प्रशिक्षण देने के लिए किसी कलाचार्य को नियुक्त किया। कलाचार्य ने राजकुमारों १. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५५४
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६२ (ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८३
(च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६ (ग) आवश्यकनियुक्ति मलय गिरीया वृत्ति, प. ५२५
(छ) आवश्यकनियुक्ति दीपिका, प. १८१ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६२
३. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५५५ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३६
(ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८४ (छ) आवश्यकनियुक्ति दीपिका, प. १८१
(ग) आवश्यक निर्यक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प.५२५ २. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५५४,५५५
(घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६२,१६३ (ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८३,२८४
(च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३८ (ग) आवश्यकनियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२५
(छ) आवश्यकनियुक्ति दीपिका, प. १८१
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