Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 231
________________ २०६ नंदी जल्दी चलाइए । रथ जल्दी चला पर स्त्री ने पीछा नहीं छोड़ा। आखिर दोनों स्त्रियां लड़ती हुई एक गांव में पहुंची। वहां न्यायालय में जाकर उन्होंने न्याय मांगा। न्यायाधीश ने पुरुष से पूछा, पर वह कोई निर्णय नहीं दे सका। न्यायाधीश कुछ सोचकर बोला- मैं इस पुरुष को बीच में खड़ा करता हूं। तुम दोनों में से जो पहले इसका स्पर्श करेगी, वही इसकी स्त्री होगी। विद्याधरी स्त्री ने वैक्रिय शक्ति से अपना हाथ लम्बा किया और उस पुरुष का स्पर्श कर लिया। न्यायाधीश ने उसके मायाजाल का रहस्योद्घाटन कर उसे बाहर निकलवा दिया और उस पुरुष को उसकी पत्नी मिल गई । १४.स्त्री मूलदेव और पुण्डरीक नामक दो मित्र थे। एक दिन वे दोनों कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने एक पुरुष के साथ जाती हुई स्त्री को देखा । स्त्री के सौन्दर्य पर पुण्डरीक मुग्ध हो गया । उसने मूलदेव से कहा – मित्र ! इस स्त्री से मिला दो, अन्यथा मैं जीवित नहीं रह सकूंगा । मूलदेव अपने मित्र के साथ उन दोनों पति-पत्नी से आगे निकल गया । वहां जंगल की झाड़ियों में पुण्डरीक को बिठा दिया और स्वयं मार्ग में खड़ा हो गया। पति-पत्नी उधर से निकले तो उसने पुरुष से कहा-इस जंगल में मेरी पत्नी प्रसव वेदना से छटपटा रही है। कृपा कर आप अपनी स्त्री को एक बार वहां भेज दें। उस पुरुष ने अपनी स्त्री को जाने के लिए कह दिया । स्त्री बड़ी चतुर थी । उसने दूर से ही देखा- -वन निकुंज में कोई पुरुष उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। वह वहां से तत्काल वापिस लौट आई और उसने मुलदेव से कहा- आपकी स्त्री ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया है, आप वहां जल्दी पहुंच जाइए । १६. पति दृष्टांत किसी गांव में दो भाई थे । उन दोनों के एक ही स्त्री थी। लोग कहते थे कि स्त्री का दोनों भाइयों के प्रति एक समान स्नेह है । यह बात राजा तक पहुंची। राजा ने अपने मन्त्री से कहा । मन्त्री इससे सहमत नहीं हुआ । राजा ने परीक्षण करने के लिए कहा । मन्त्री ने दोनों भाइयों को दो भिन्न दिशाओं- पूर्व और पश्चिम के गांवों में भेजने और उसी शाम को पुनः लौट आने का आदेश दिया । स्त्री ने अपने छोटे पति को पश्चिम की ओर भेजा तथा बड़े को पूर्व की ओर । स्त्री के इस निर्णय का मूल रहस्य खोजकर मन्त्री ने कहा- स्त्री का अपने छोटे पति पर अधिक प्रेम है । क्योंकि उसने उसको पश्चिम दिशा में भेजा है । पूर्व दिशा में जाने वाले के जाते और आते समय सूर्य सामने रहता है और पश्चिम में जाने वाले के पीठ पीछे । मन्त्री के निर्णय पर राजा को विश्वास नहीं हुआ क्योंकि दोनों दिशाओं में एक-एक को भेजना जरूरी था । मन्त्री ने एक दूसरा प्रयोग किया। कुछ समय बाद उसने पूर्ववत् आदेश दिया और दोनों व्यक्तियों के लौटने के समय दो व्यक्तियों ने एक साथ उसे सूचित किया कि तुम्हारे पति मार्ग में बीमार हो गये हैं । उस स्त्री ने अपने बड़े की अस्वस्थता के बारे में बताने वाले से कहा- उन्हें प्रायः ऐसा हो जाता है, अतः घबराने की बात नहीं है । अमुक दवा दे देना, कुछ समय में ठीक हो जाएंगे । अपने छोटे पति की देखभाल के लिए वह स्वयं जाने के लिए तैयार हुई। उसने कहा- वे बहुत कोमल हैं, उनको कुछ हो गया तो वे घबरा जाएंगे। तुम चिकित्सक को लेकर आओ, तब तक मैं वहां पहुंच रही हूं। इस बार राजा को मन्त्री के निर्णय पर विश्वास हो गया । १७. पुत्र दृष्टांत ' एक श्रेष्ठी के दो स्त्रियां थीं। एक स्त्री के पुत्र था और दूसरी वन्ध्या थी। दोनों का बच्चे के प्रति अच्छा स्नेह था। एक बार सेठ अपने परिवार के साथ विदेश गया। वहां उसकी मृत्यु हो गई । पुत्र और सम्पत्ति को लेकर दोनों स्त्रियों में झगड़ा हो १. (क) आवश्यक चूर्ण, पृ. ५४९ (ख) आवश्यक निर्मुक्ति हारिमीया वृत्ति, पृ. २८० (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२१ (घ) नन्दी मलयगिरीवा वृत्ति प. १५४, (च) नदी हारिभद्रीचा वृति टिप्पणम्, पृ. १३५ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९ २. (क) आवश्यक चूणि. पू. ५४९ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८० (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२१ Jain Education International (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५४, १५५ (च) नन्दी हारिभद्रया वृत्ति निकम् प. १२५,१३६ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९ ३. (क) आवश्यक चूर्णि, पृ. ५४९ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८०,२८१ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२१ (घ) नन्दी मनगिरीवा वृत्ति प. १५५ (च) नन्दी हारिचीया वृत्ति टिप्पणकम् पृ. १२६ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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