Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 237
________________ नंदी २१२ पहुंचा। उसमें लिखा हुआ था - स्वामिन् ! ग्रामीण लोग स्वभाव से ही डरपोक होते हैं। हमारा कुंआ भी डरपोक है । वह अपने सजातीय भाई को छोड़कर किसी पर विश्वास नहीं करता। इसलिए आप शहर के किसी कुंए को भेजने की कृपा करें जिससे वह विश्वस्त होकर आपके पास आ जाए। यह पढकर राजा अवाक् रह गया । ७. वनवण्ड दृष्टान्त' एक दिन राजा ने ग्राम प्रधानों को आदेश दिया - गांव की पूर्व दिशा में जो वनखण्ड हैं, उसे पश्चिम में कर दो। ग्रामप्रधानों ने समस्या का समाधान प्राप्त करने के लिए रोहक को बुलाया। रोहक ने सुझाव दिया कि गांव के लोग उस वनखण्ड के पूर्व में जाकर अपने मकान बनवा ले। ग्रामीण लोगों ने वैसा ही किया। राजपुरुषों ने राजा को सूचित किया कि वनखण्ड पश्चिम में हो गया है। रोहक परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया । ८. पायसदृष्टान्त' राजा ने एक बार कहा - अग्नि जलाए बिना खीर पकाओ। ग्रामवासियों ने मिलकर रोहक से परामर्श किया। उसने कहा -- चावलों को पानी में भिगोओ। सूर्य की किरणों से तपे हुए उपले और पलाल की उष्मा पर चावल और दूध से भरी हुई इंडिया को रखो। वैसा ही किया गया। खीर तैयार हो गई। राजा को निवेदन किया। वह अत्यन्त विस्मित हुआ । ९. दृष्टान्त' एक बार राजा ने आदेश दिया- जिस बालक के प्रज्ञातिशय से आप लोगों ने हमारे सारे आदेशों का सम्यक् रूप से पालन किया, उसे यहां अवश्य लाएं। पर वह न शुक्लपक्ष में आए, न कृष्णपक्ष में आए। न रात्रि में न दिन में, न धूप में, न छाया में, न आकाश मार्ग से, न धरती पर पांव रखकर, न मार्ग से, न उन्मार्ग से, न स्नान करके और न बिना स्नान किए आए । राजा की आज्ञा पाकर रोहक ने उस प्रकार की योजना बनाई और व्यवस्था की । गले तक स्नान किया । समय चुना अमावस्या और प्रतिपदा के संधि का, सन्ध्या का चालनी को छत बनाकर सिर पर रखा । मेंढे पर बैठ गया । गाड़ी के पहिए का मध्यवर्ती मार्ग चुना । राजा, देवता और गुरु के दर्शन खाली हाथ नहीं करना चाहिए। इस लोकश्रुति को जानकर उसने अपने हाथ में एक मिट्टी का ढेला ले लिया । राजा के पास पहुंचकर उसने प्रणाम किया । मिट्टी का ढेला भेंट कर दिया। राजा ने पूछा- यह क्या है ? रोहक बोलाआप पृथ्वीपति हैं । इसलिए मैं उपहारस्वरूप पृथ्वी लाया हूं। प्रथम दर्शन में उनके मंगलवचन को सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ । रोहक के साथ आए हुए ग्रामवासियों को भेजकर रोहक को अपने पास रख लिया । राजा ने रोहक को अपने पास सुलाया। एक प्रहर बीत जाने पर राजा ने पूछा- रोहक तू जाग रहा है या सो रहा है ? रोहक - जाग रहा हूं । राजा- क्या सोच रहा है ? रोहक - देव ! मैं सोच रहा हूं कि बकरी के पेट में मिंगनियां गोल कैसे हो जाती हैं ? राजा ने कहा- तुमने अच्छा विमर्श किया। बताओ उसका क्या उत्तर खोजा ? रोहक - बकरी के पेट में संवर्तक नामक वायु होती है उससे मिगनी गोल हो जाती है । १२..ि४५ (ख) आवश्यक (ग) आवश्यक (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४८ हारिमडीयावृत्ति, पृ. २७८ मगरीयावृत्ति प. २१० (च) नन्दी हारिभद्रया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३३ (घ) आवश्यकमिति १७८ Jain Education International २. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५४५ (ख) आवश्यक निति हारिभीयावृत्ति, पृ. २७ (ग) आवश्यक निति मलयगिरीया वृत्ति प. ५१८ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४८ (च) नन्दी हारिभद्रया वृत्ति, टिप्पणकम, पृ. १३३,१३४ (छ) आवश्यक निर्युक्ति दीपिका, प. १७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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