Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 238
________________ परिशिष्ट ३ कथा १०. पत्र का दृष्टान्त दूसरे प्रहर में राजा जागा और रोहक से पूछा तू जाग रहा है या सो रहा है ? रोहक - जाग रहा हूं । राजा ने पूछा- क्या सोच रहा है ? रोहक सोच रहा हूं कि पीपल के पत्ते का दण्ड बड़ा होता है या उसकी शिखा ( अग्रभाग ) ? राजा तुम्हारा क्या निर्णय है ? रोहक -- जब तक अग्रभाग नहीं सूखता, तब तक दोनों समान होते हैं । ११. गिलहरी का दुष्टामा' तीसरे प्रहर में राजा जागा और रोहक से पूछा- तू जाग रहा है या सो रहा है ? रोहक - 5- जाग रहा हूं । राजा-क्या सोच रहा है ? रोहक गिलहरी के शरीर पर सफेद धारियां कितनी होती हैं और काली धारियां कितनी होती हैं ? - राजा के पूछने पर उसने कहा- जितनी सफेद धारियां होती हैं उतनी ही काली धारियां होती हैं । दूसरी बार फिर पूछा- क्या सोच रहे हो ? रोहक सोच रहा हूं कि गिलहरी का जितना बड़ा शरीर है क्या पूंछ भी उतनी ही बड़ी है ? राजा के पूछने पर उसने कहा- राजन् ! गिलहरी का शरीर और पूंछ दोनों बराबर होते हैं । १२. पञ्चपिता का दृष्टान्त' चौथे प्रहर : में राजा ने पूछा- रोहक ! सो रहा है या जाग रहा है ? रोहक बोला नहीं। राजा ने उसे कम्बिका (बांस की खपची) से छुआ, तब उठा। पूछा- - सो रहा है या जाग रहा है ? रोहक - जाग रहा हूं । राजा क्या सोच रहा है ? रोहक मैं सोच रहा हूं कि आपके कितने पिता हैं ? उसकी बात सुनकर राजा विस्मित हुआ । राजा - बोलो, तुमने क्या सोचा ? रोहक - महाराज ! आप पांच पिता के पुत्र हैं। यह सुनकर राजा उठा। शरीर चिन्ता से निवृत्त होकर मां के पास गया । चरणों में प्रणाम कर पूछा- मेरे पिता कितने हैं ? मां- तुम अपने पिता से उत्पन्न हुए हो । राजा ने आग्रह किया। सच बताओ। तुम्हारा पिता केवल राजा ही हैं किन्तु एक दिन मैं वैश्रमण देव की पूजा करने के लिए गई थी। उसे अलंकृत विभूषित देखकर मन में अनुराग पैदा हो गया । मैं पूजा कर घर लौट रही थी रास्ते में चण्डाल युवक को देखा, उसके प्रति भी अनुराग पैदा हो गया। फिर एक धोबी मिला उसके प्रति भी अनुराग हो गया। अपने अन्तःपुर में लौट आई वहां उत्सव के अवसर पर एक आटे का बिच्छू बनाया हुआ था। उसे हाथ में लिया, उस पर मेरा अनुराग हो गया। यदि अनुराग मात्र से पिता होता है तो ये सब तुम्हारे पिता हैं अन्यथा राजा ही तुम्हारा पिता है । १. (क) आवश्यक . ५४५५४६ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभीयावृत्ति, २७८ (ग) आवश्यक निति मलयगिरीया वृत्ति प. ५१८ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४८ (घ) नन्दी हारिभीया वृति किम् पू. १३४ (ख) आवश्यकनिर्मुक्ति दीपिका, प. १७८ २१३ २. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५४६ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रया वृति प. २७८ (ग) आवश्यकनिर्मुक्ति मलयांगरीया वृत्ति प. ५१८ " Jain Education International (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४८ (च) नन्दी हारिमडीयावृत्तिम् पृ. १३४ (छ) आवश्यकनिकिता,प. १७० ३. (क) आवश्यकचूर्ण, पृ. ५४६ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिमडीया वृत्ति, पु. २७८ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, ५१८, ५१९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १४८, १४९ (च) नन्दी हारिभटीया वृत्ति टिप्पणम्. पू. १३४ (ख) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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