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संख - सिलप्पवाल- रत्तरयणमाईयं संत-सार- सावएज्जं अणुजाणिज्जा | सेत्तं अचित्ता दव्वाणुष्णा ॥
१८. से कि तं मीसिया दव्वाणुष्णा ? मोसिया दव्वागुण्णा - से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा कस्स कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे हत्थि वा मुहभंडग मंडियं, आसं आसं वा थासगचामरमंडियं, सदा वा दासि वा सव्यालंकारविभूसियं अणुजाणिज्जा। सेत्तं मीसिया दव्वाणुण्णा । सेत्तं कुप्पावयणिया दव्वाणुष्णा ॥
१९. से किं तं लोउत्तरिया दव्वाणुष्णा ? लोउतरिया दव्याणुष्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा सचिता अचिता मीसिया ॥
२०. से कि तं सचित्ता दव्वाणुष्णा ? सचित्ता दव्वागुणा-से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा बेरेइ वा पवती इ वा गगी इ वा गणहरे इ वा गणावच्छेयए ६ वा सिस्सस्स वा सिस्सिमोए वा कम्नि कारणे तुट्ठे समाने सीसं वा सिस्सिणि वा अणुजाज्जा | सेतं सचित्ता दव्वाणुष्णा ॥
२१. से किं तं अचिता दव्वाणुण्णा ? अचित्ता दन्यागुण्णा-से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा थेरे इ वा पत्ती इ वा गणी इ वा गणहरे इ या गणावण्डेयए इ वा सिस्सस्स वा सिस्सिणीए वा कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे वत्वं वा पायं वा डिग्गहं वा कंवलं वा पायपुंखगं वा अणुजाणेज्जा । सेतं अचित्ता दव्वाणुष्णा ॥
२२. से किं तं मीसिया दव्वाणुण्णा ? मीसिया दव्वागुण्णा - से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ वा थेरे इ वा पवत्ती इ वा गणी इ वा गणहरे इ वा गणावच्छेयए इ वा सिस्सस्स वा सिस्सिणीए वा कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे सिस्सं वा सिस्सिणि वा सभंड- मत्तोवगरणं अणुजाणेज्जा | सेत्तं मीसिया व्वाण्णा । सेतं लोउत्तरिया दव्वाणुण्णा । सेत्तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरिता दव्वाणुण्णा । सेतं नोआगमतो दब्याण सेतं दव्यागुण्णा । । २३. से कि तं वेताण्णा ? वेताणुष्णा- जो णं जस्स खेतं अणुजाणति, जत्तियं वा खेत्तं, जम्मि वा खेत्ते । सेत्तं खेतानुण्णा ।।
२४. सेकितं कालाष्णा ? कालापुण्णा जो णं जस्स कालं अणुजानति, जतियं वा काल, जम्मि वा काले
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नंदो
व्यय किए जाने वाले धन ) की अनुज्ञा दे। वह अचित्त द्रव्यअनुज्ञा है ।
१८. वह मिश्र द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? मिश्र द्रव्यअनुज्ञा - जैसे कोई आचार्य अथवा उपाध्याय किसी पर किसी कारण से तुष्ट होने पर मुखभाण्ड (मुखालंकार) से मण्डित हाथी, स्थासक और चामर से मण्डित अश्व, कड़े सहित दास अथवा सब अलंकारों से विभूषित दासी के लिए अनुदे वह मिश्र अनुज्ञा है। वह कुप्रवचनक द्रव्य अनुज्ञा है ।
१९. वह लोकोत्तरिक द्रव्यअनुज्ञा अनुज्ञा के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे
क्या है ? लोकोत्तरिक द्रव्यसचित्त, अचित्त, मिश्र 1
२०. वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? सचित द्रव्यअनुज्ञा - जैसे कोई आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणी, गणधर अथवा गणावच्छेदक शिष्य अथवा शिष्या पर किसी कारण से तुष्ट होने पर शिष्य अथवा शिष्या की अनुज्ञा दे । वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा है ।
२१. वह अतिव्यवनुशा क्या है ? अचित्त द्रव्यनुज्ञा-जैसे कोई आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणी, गणधर अथवा गणावच्छेदक शिष्य अथवा शिष्या पर किसी कारण से तुष्ट होने पर वस्त्र, पात्र, प्रतिग्रह कम्बल अथवा पादन की अनुशा दे। वह अचित्त द्रव्यअनुज्ञा है ।
२२. वह मिश्र द्रव्यअनुज्ञा क्या है? मिश्र द्रव्यअनुज्ञा - जैसे कोई आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणी, गणधर अथवा गणावच्छेदक शिष्य अथवा शिष्या पर किसी कारण से तुष्ट होने पर भण्ड, अमत्र तथा उपकरण सहित शिष्य अथवा शिष्या की अनुज्ञा दे। वह मिश्र द्रव्यअनुज्ञा है । वह लोकोत्तरिक द्रव्यअनुज्ञा है। वह ज्ञशरीर-भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यअनुज्ञा है । वह नोआगमतः द्रव्यअनुज्ञा है । वह द्रव्यअनुज्ञा है ।
२२. वह क्या है? प्रशा-जो जिसको क्षेत्र की अनुज्ञा देता है जितने क्षेत्र की अथवा जिस क्षेत्र में अनुज्ञा देता है । वह क्षेत्रअनुज्ञा है ।
२४. वह कालअनुज्ञा क्या है ? कालअनुज्ञा - जो जिसको काल की अनुज्ञा देता है जितने काल की अथवा जिस काल में अनुज्ञा देता
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