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धवला और जयधवला में चूलिकाओं की संख्या पांच बतलाई गई है
१. जलगता
२. स्थलगता
३. मायागता
४. रूपगता
५. आकाशगता
धवला'
१. षट्खण्डागम, पुस्तक १, पृ. ११४
२. कषायपाहुड़, पृ. १३९
जलगमन, जलस्तम्भन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण की विधियों
का प्रज्ञापन ।
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पृथ्वी के भीतर गमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र, वास्तुविद्या और भूमि संबंधी अन्य शुभाशुभ कारणों का प्रज्ञापन । इन्द्रजाल आदि के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या आदि का प्रज्ञापन । सिंह, अश्व, हरिण आदि के परिणमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या का तथा चित्रकर्म काष्ठकर्म, सेप्य कर्म लयन (पर्वत गृह) आदि का
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प्रज्ञापन ।
आकाशगमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या आदि का प्रज्ञापन ।
सूत्र १२३
जयधवला'
नंदी
१. जलस्तम्भन और जलगमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या का तथा अग्नि का स्तम्भन करना, अग्नि का
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भक्षण करना, अग्नि पर आसन लगाना, अग्नि पर तैरना आदि क्रियाओं के कारणभूत प्रयोगों का प्रज्ञापन ।
२. कुल शैल, मेरु, महीधर, गिरि और पृथ्वी आदि पर गमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या का प्रज्ञापन । ३. महेन्द्रजाल का प्रज्ञापन ।
११. (सूत्र १२३ )
ग्यारह अङ्गों में अवान्तर विभागों के नाम अध्ययन, शतक, उद्देशक आदि हैं। दृष्टिवाद के अंतर्गत पूर्वो के विभागों के नाम उनसे भिन्न हैं
वस्तु अनेक प्राभूतों का समुदाय क्षुल्लकवस्तु-छोटे प्राभृतों का समुदाय । प्राभूत-वस्तु का एक अध्याय ।
४. सिंह, हाथी, मृग - विशेष, मनुष्य, वृक्ष, हरिण, वृषभ आदि के रूप में अपने रूप को बदलने की विधि का प्रज्ञापन |
प्राभृत प्राभृत-प्राभूत का एक अंश ।
प्राभृतिका - अध्याय का एक प्रकरण ।
प्राभृत प्राभृतिका - अध्याय का अवान्तर प्रकरण ।
मतधारी हेमचन्द्र ने प्राभूत आदि का अर्थ पूर्वो के अन्तर्गत होने वाले श्रुताधिकार विशेष किया है।' इष्ट- अनुयोगद्वार सू० ५७० ५७२ का टिप्पण ।
५. आकाशगमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपस्या का प्रज्ञापन
३. अनुयोगद्वार, मलधारी हेमचन्द्रीया वृत्ति प. २१६ : नवरं
प्राभृतादयः पूर्वान्तरगताः श्रुताधिकारविशेषाः ।
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