Book Title: Agam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 212
________________ प्र० ५, सू० १२२-१२४, टि० ११,१२ सूत्र १२४ १२. (सूत्र १२४) प्रस्तुत सूत्र में द्वादशाङ्गी की समग्र विषय वस्तु का प्रतिपादन किया गया है। प्रतिपाद्य विषय के छः युगल हैं१. भाव और अभाव २. हेतु और अहेतु ३. कारण और अकारण ४. जीव और अजीव ५. भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक ६. सिद्ध और असिद्ध । १. भाव और अभाव भाव होने (being) का वाचक है। अस्तित्व की परीक्षा दो दृष्टियों से की जाती है१. द्रव्यार्थिक दृष्टि से अस्तित्व २. पर्यायार्थिक दृष्टि से अस्तित्व । अभाव न होने (non-being) का वाचक है । चूर्णिकार के अनुसार ये दो भावात्मक तत्त्व हैं । अनेकान्त की दृष्टि से इनके अभावात्मक स्वरूप का भी विवेचन किया गया है। १. अजीवत्व की दृष्टि से जीव अभावात्मक है। २. जीवत्व की दृष्टि से अजीव अभावात्मक है। यह द्रव्याथिक दृष्टिकोण है। पर्यायाथिक दृष्टिकोण का उदाहरण यह है१. पटत्व की दृष्टि से घट अभावात्मक है। २. घटत्व की दृष्टि से पट अभावात्मक है। इस प्रकार भाव और अभाव अनन्त हो जाते हैं। जितने भाव है उतने ही अभाव हैं।' २. हेतु और अहेतु जिज्ञासित अर्थ का गमक ज्ञापक साधन हेतु होता है। उसका प्रतिपक्ष अहेतु है। चूर्णिकार ने हेतु के अनेक विकल्प प्रस्तुत किए हैं। सूत्र में अनन्त गमक होते हैं इस अपेक्षा से हेतु अनन्त हैं उनके प्रतिपक्ष अहेतु भी अनन्त हैं।' विस्तार के लिए द्रष्टव्य स्थानाङ्ग ४१५०४ का सूत्र तथा टिप्पण पृ. ५२७ से ५३२ । ३. कारण और अकारण--- जो कार्य का साधक है वह कारण है । प्रयोग और विलसा की दृष्टि से कारण अनन्त हैं। जो जिस कार्य का साधक नहीं है वह उसका अकारण है। वे भी अनन्त हैं।' १. (क) नन्दी चूणि, पृ. ८० : भवनं भूतिर्वा भावः, ते य जीवाऽजीवात्मका अणंता प्रतिबद्धा । 'अणंता अभाव' त्ति अभवनं अभावः अभूतिर्वा । जहा जीवो अजीवत्तण अभावो, अजीवा य जीवत्तेण, घडो पडतण, पडो य घडतेण, एमादि अणंता अभावा प्रतिबद्धा। अहवा जे जहा जावइया भावा तेसि पडिपक्खतो तावइया चेव अणंता अभावा भवंति । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ९३ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २४७ २. (क) नन्दी चूणि, पृ.८० : 'अणंता हेतु' त्ति पंच-दसाबय ववयणेसु पक्खधम्मत्तं सपक्खसतं अभिलसितमत्थसाधकं वयणं हेतू भण्णति, अहवा सव्वजुत्तिजुत्तं वयणं हेतू भण्णति, अहवा सम्वे जिणवयणपहा हेत, प्रतिपातकत्तणतो, जिद्दोसहेतुवयणं व, सुत्तस्स य अणंतगमत्तणतो, एवं अणंता हेतू । भणितपडि बक्खतो य अणंता चेव अहेतू । (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ९३ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २४७ ३. (क) नन्दी चूणि, पृ. ८० : 'अणंता कारण' त्ति कज्ज साधयं कारणं ति, त य पयोग-वीससातो अणंता भाणितव्वा । जं च जस्स असाधकं तं तस्स अकारणं, चक्क-दंडादयो पडस्स, एवं अणंता अकारणा। (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ९३ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २४७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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